वसंत ऋतु / डा मनोरमा चंद्रा ‘ रमा ‘

वसंत ऋतु / डा मनोरमा चंद्रा ‘ रमा ‘

बसंत ऋतु
बसंत ऋतु


आया वसंत आज, भव्य ऋतु मन हर्षाए।
खिले पुष्प चहुँ ओर, देख खग भी मुस्काए।।
मोहक लगे वसंत, हवा का झोंका लाया।
मादक अनुपम गंध, धरा में है बिखराया।।

आम्र बौर का गुच्छ, लदे हैं देखो सारी।
सृजित नवल परिधान, वृक्ष की महिमा भारी।।
ऋतुपति दिव्य वसंत, श्रेष्ठ है कान्ति निराली।
इसके आते मान, सजे हैं गुलशन डाली।।

गया ठंड का जोर, आज ऋतु वसंत आया।
चला दौर मधुमास, शीत का कहर भगाया।।
मौसम लगते खास, रूप है भव्य सुहाना।
हृदय भरे आह्लाद, झूम सब आज जमाना।।

टेसू फूले लाल, वनों को शोभित करते।
भ्रमर हुए मदमस्त, बाग पर नित्य विचरते।।
सरसों का ऋतु काल, नैन को खूब रिझाए।
पीत सुमन का दृश्य, चपल मन को भा जाए।।

*~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’*
रायपुर (छ.ग.)

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।