बेटी पर कविता
एक मासूम सी कली थी
नाजों से जो पली थी
आँखों में ख़्वाब थे और
मन में हसरतें थीं
तितली की मानिन्द हर सु
उड़ती वो फिर रही थी
सपने बड़े थे उस के
सच्चाई कुछ और ही थी
अनजान अजनबी जब
आया था ज़िंदगी में
दिल ही दिल में उस को
अपना समझ रही थी
माँ बाप डर रहे थे
बहनें भी रो रही थीं
नाजों पली वो बेटी
पराई हो चली थी
ससुराल में ना माँ थी
बाप की कमी थी
अपनों की याद दिल में
समोए तड़प रही थी
हर दिन मुश्किलें थीं
हर रात बेकली थी
इज़त की खातिर सब की
वोह ज़ुल्म सह रही थी
नाज़ुक सी वोह तितली
क़िस्मत से लड़ रही थी
अच्छी भली वह गुड़िया
ग़म से गुज़र रही थी
अदित्य मिश्रा
दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
9140628994