निराला प्रकृति- कुंडलिया छंद
निराला प्रकृति निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।प्रकृति…

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह
निराला प्रकृति निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।प्रकृति…
हिन्दी का शृंगार आ सजनी संग बैठआज तुझे शृंगार दूँमेरी प्रिय सखी हिंदीमैं तुझको संवार दूँ । कुंतिल अलकों के बीचऊषा की सजा कर लालिमा,मुकलित कलियों की वेणीजूड़े के ऊपर टांग दूँ।आ सजनी..। ईश वंदन बेंदी शीशफूलपावन स्तुतियों के कर्ण…
हिन्दी हमारी जान है हिन्दी हैं हम..हिन्दी हमारी जान है, हम सबकी जुबान है !! रग-रग में बहता लहू ही है, ये हर हृदय की तान है!! हिन्दी हैं हम..हिन्दी हमारी जान है!! अपने में समाहित कर लेगी..हो शब्द किसी..भाषा…
हिन्दी हमारी शान हिन्दी न केवल बोली भाषा, ये हमारी शान है।मातृभाषा है हमारी, ये बड़ी महान है।।……..चमकते तारे आसमां के , हैं भारत के वासी हम।कोई चंद्र है कोई रवि, कोई यहां भी है न…
इंसान हो तो सदा सदकर्म करो इंसान हो तो सदा सदकर्म करो या चुल्लू भर पानी में डूब मरो चार दिन की चटक चाँदनी फिर तो अंधेरी रात हैये जीवन अभिनय मंच हैकुछ नहीं संग में जात है साँसे मिली…
जय हो तेरी बाँके बिहारी माँखन तुमने बहुत चुराए, बांसुरी तुमने बहुत बजाए,गोपियों को तुम बहुत सताए,माँ को उलहन बहुत सुनाए,ऐसी लीला करके गिरधर, पावन कर दीए धरा हमारी, जाऊँ मैं तुझपे बलिहारी,जय हो तेरी बाँके बिहारी ।। बचपन…
बहुत याद आता हैं बचपन का होना वो बचपन में रोना बीछावन पे सोना,,छान देना उछल कूद कर धर का कोना,,बैठी कोने में माँ जी का आँचल भिगोना,,माँ डाटी व बोली लो खेलो खिलौना,,बहुत याद आता हैं बचपन का होना।।…
कुछ ऐसा काम कर दिखाये हम कुछ ऐसा काम कर दिखाये हम ।दुनियाँ को जन्नत सा बनाएँ हम ।। फिरकापरस्ती का जहर कम हो ।सबका मालिक एक बताएँ हम ।। कोई हिन्दू न कोई मुसलमान हो ।इंसान है इंसान ही…
अपनी भाषा हिन्दी गहरा संबंध है,सादगी और सौंदर्य मेंस्वाभाविकता और अपनत्व में।नकल में तो आती है,बनावट की बू।बोलने में सिकुड़ती हैनाक और भौं।जो है, उससे अलग दिखने की चाह।पकड़ते अपनों से अलग होने की राह।मत सोचिये कि निरर्थक कहे जा…
आओ मिलकर पेड़ लगाएं सूनी धरा को फिर खिलाएंधरती मां के आंचल को हमरंगीन फूलों से सजाएंआओ मिलकर पेड़ लगाएं।। न रहे रिश्तों में कभी दूरियांचाहे हो गम चाहे मजबूरियांमिलकर घर सब सजाएंआओ मिलकर पेड़ लगाएं।। वन की सब रखवाली…