सूखा पर हरा-भरा दरख्त
इन मेरी सूखी टहनियों पर न जाना,
मुझे देख यूँ नजर न चुराना
सूखा दरख्त समझ मुंह न चिढ़ाना,
पतझड को देख दिल में उदासी छाई,
फिर भी चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई,
बहारे फिर भी आयेंगी ये है हकीकत पुरानी,
फिर से हर पत्ता, हर डाल हो जाएगी धानी,
मैं फिर पनपूँगा,मैं फिर पनपूँगा!
नयी शाखाओं, नयी पत्तियों से सज जाऊँगा,
परिन्दें गीत सुनायेंगे,
पथिक शीतलता पायेंगे ।
मैं फिर पनपूँगा,मैं फिर पनपूँगा!!!
माला पहल ‘मुंबई’