काँटों पर चलना सीखे – मनीभाई नवरतन

अब काँटों पर चलना सीखें


अब तक सुमनों पर चलते थे, अब काँटों पर चलना सीखें॥
खड़ा हुआ है अटल हिमालय, दृढ़ता का नित पाठ पढ़ाता।।


बहो निरन्तर ध्येय-सिन्धु तक, सरिता का जल-कण बतलाता।
अपने दृढ़ निश्चय से पथ की, बाधाओं को ढहना सीखें। अब……


हममें चपला-सी चंचलता, हममें मेघों की गर्जन।
हममें पूर्ण चन्द्रमा-चुम्बी, सिन्धु-तरंगों का नर्तन ॥
सागर से गंभीर बनें हम, पवन समान मचलना सीखें। अब ……


अपनी रक्षा आप करें जो, देता उसका साथ विधाता।
अन्यों पर अवलम्बित है जो, पग-पग पर ठोकर खाता।
जीवन का सिद्धान्त अमर है, उस पर हम नित चलना सीखें। अब ….

उठे-उठे अब अन्धकारमय, जीवन-पथ आलोकित कर दें।
निविड़ निशा के गहन तिमिर को, मिटा,आज जग ज्योतित कर दें।
तिल-तिल कर अस्तित्व मिटा दें, दीपशिखा सम जलना सीखें।
अब तक सुमनों पर चलते थे, अब काँटों पर चलना सीखें।

मनीभाई नवरतन

दिवस आधारित कविता