अब काँटों पर चलना सीखें
अब तक सुमनों पर चलते थे, अब काँटों पर चलना सीखें॥
खड़ा हुआ है अटल हिमालय, दृढ़ता का नित पाठ पढ़ाता।।
बहो निरन्तर ध्येय-सिन्धु तक, सरिता का जल-कण बतलाता।
अपने दृढ़ निश्चय से पथ की, बाधाओं को ढहना सीखें। अब……
हममें चपला-सी चंचलता, हममें मेघों की गर्जन।
हममें पूर्ण चन्द्रमा-चुम्बी, सिन्धु-तरंगों का नर्तन ॥
सागर से गंभीर बनें हम, पवन समान मचलना सीखें। अब ……
अपनी रक्षा आप करें जो, देता उसका साथ विधाता।
अन्यों पर अवलम्बित है जो, पग-पग पर ठोकर खाता।
जीवन का सिद्धान्त अमर है, उस पर हम नित चलना सीखें। अब ….
उठे-उठे अब अन्धकारमय, जीवन-पथ आलोकित कर दें।
निविड़ निशा के गहन तिमिर को, मिटा,आज जग ज्योतित कर दें।
तिल-तिल कर अस्तित्व मिटा दें, दीपशिखा सम जलना सीखें।
अब तक सुमनों पर चलते थे, अब काँटों पर चलना सीखें।
Leave a Reply