मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ- मनीभाई नवरत्न

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकरमैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ। मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,अपने मन का गान किया करता हूँ। … Read more

चाह गई चिंता मिटी

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥ रहीम कहते हैं कि किसी चीज़ को पाने की लालसा जिसे नहीं है, उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती। जिसका मन इन तमाम चिंताओं से ऊपर उठ गया, किसी इच्छा के प्रति बेपरवाह हो गए, वही राजाओं के राजा हैं। … Read more

मेरी प्यारी हिन्दी / प्रभात सनातनी “राज’

हिन्दी भारत की राजभाषा और विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है। यह देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और संस्कृत, फारसी, अरबी, तुर्की और अंग्रेज़ी जैसी भाषाओं से प्रभावित है। हिन्दी का साहित्यिक और व्यावहारिक रूप व्यापक है, जिसमें कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और तकनीकी लेखन शामिल हैं। यह भाषा भारतीय संस्कृति, परंपराओं … Read more

संक्रांति पर कविता/ रेखराम साहू

संक्रांति हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को कहा जाता है। वर्ष में कुल 12 संक्रांतियाँ होती हैं, लेकिन सबसे प्रमुख मकर संक्रांति मानी जाती है, क्योंकि इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। संक्रांति पर कविता                   मोह-मकर से मुक्ति-पथ,में गतिमयता,क्रांति।शपथ … Read more

छेरछेरा पर कविता / राजकुमार ‘मसखरे

छेरछेरा छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख लोक पर्व है, जिसे पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन गाँवों में बच्चे और युवा घर-घर जाकर अन्न (धान) मांगते हैं और लोग खुशी-खुशी उन्हें दान करते हैं। इस पर्व का उद्देश्य समाज में दान-पुण्य और सहिष्णुता को बढ़ावा देना है। छेरछेरा पर कविता / राजकुमार … Read more