चाह गई चिंता मिटी

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥ रहीम कहते हैं कि किसी चीज़ को पाने की लालसा जिसे नहीं है, उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती। जिसका मन इन तमाम चिंताओं से ऊपर उठ गया, किसी इच्छा के प्रति बेपरवाह हो गए, वही राजाओं के राजा हैं। … Read more

मेरी प्यारी हिन्दी / प्रभात सनातनी “राज”

            मेरी प्यारी हिन्दी हिंदी भाषा का गुणगान कैसे करूं,हिंदी भाषा का बखान कैसे करूं।अपरिभाषित है मेरी हिंदी भाषा,परिभाषा ही नहीं परिभाषित कैसे करूं।। सबको मान व सम्मान हिंदी देती है,अपना नया रूप एक छोटी सी बिंदी देती है।हलन्त, पदेन, रेफ का महत्व होता है,गद्य पद्य के रूप नए-नए शब्द गढ़ देती है।। हिंदी अपनी … Read more

संक्रांति पर कविता/ रेखराम साहू

                  संक्रांति मोह-मकर से मुक्ति-पथ,में गतिमयता,क्रांति।शपथ सुपथ पर अग्रसर,होना है संक्रांति।। इस चरित्र से देवव्रत बने पितामह भीष्म।बोल रहा इतिहास है,जिनके तप का ग्रीष्म।। दक्षिण को दे दक्षिणा,उत्तर मेंं उपकार।हो जीवन का पूर्व या,पश्चिम फैले प्यार।। हर ऋतुओं की सृष्टि में,स्रष्टा का संदेश।उद्भव,पालन,प्रलय में,ब्रह्मा, विष्णु, महेश।। प्रकृति,प्रभो के प्रेम की,कृति अनुपम प्रत्यक्ष।शांति,क्रांति,संक्रांति सब,पहिए ईश्वर अक्ष।। … Read more

छेरछेरा पर कविता / राजकुमार ‘मसखरे

             छेरछेरा छेरीकछेरा छेर मरकनिन छेर छेरामाई  कोठी  के  धान  ल  हेर  हेरा…. पूस पुन्नी के रिहिस हमला बड़ अगोराअन्नदान परब के,कर लेथन सङ्गी जोरा छेरछेराय बर हम जाबोधर के लाबो झोरा-झोरा… आ जा मनबोधी अउ आ जा मनटोरादिन ह पहावन लागय होगे संझा बेराछत्तीसगढ़ हे धान कटोराहमर धरती दाई के कोरा… घन्टी,घुंघरू,बाजा संग कनिहा … Read more

विश्व हिंदी दिवस पर कविता / राकेश राज़ भाटिया

विश्व हिंदी दिवस पर कविता “यह हिंदी मन के हर भाव की भाषा है” स्नेह भरे हर मन से मन के यह लगाव की भाषा है। जो रिश्तों को अमृत देता है उस आव की भाषा है।।जब अधरों को छू जाती है, हृदय को जीत लेती है,यह हिंदी तो मन में उमड़ते हर भाव की … Read more