आया वसंत आज, भव्य ऋतु मन हर्षाए। खिले पुष्प चहुँ ओर, देख खग भी मुस्काए।। मोहक लगे वसंत, हवा का झोंका लाया। मादक अनुपम गंध, धरा में है बिखराया।।
आम्र बौर का गुच्छ, लदे हैं देखो सारी। सृजित नवल परिधान, वृक्ष की महिमा भारी।। ऋतुपति दिव्य वसंत, श्रेष्ठ है कान्ति निराली। इसके आते मान, सजे हैं गुलशन डाली।।
गया ठंड का जोर, आज ऋतु वसंत आया। चला दौर मधुमास, शीत का कहर भगाया।। मौसम लगते खास, रूप है भव्य सुहाना। हृदय भरे आह्लाद, झूम सब आज जमाना।।
टेसू फूले लाल, वनों को शोभित करते। भ्रमर हुए मदमस्त, बाग पर नित्य विचरते।। सरसों का ऋतु काल, नैन को खूब रिझाए। पीत सुमन का दृश्य, चपल मन को भा जाए।।
चार दिन के जिनगी संगी चार दिन के हवे जवानी चारेच दिन तपबे संगी फेर नि चलय मनमानी।
चारेच दिन के धन दौलत चारेच दिन के कठौता। चारेच दिन तप ले बाबू फेर नइ मिलय मौका।।
चार भागित चार,होथे बराबर गण सुन। चार दिन के जिनगी म चारो ठहर गुण।।
चार झन में चरबत्ता गोठ चारो ठहर के मार। चार झनके संग संगवारी लेगही मरघट धार।। चार झन के सुन, मन म गुण कर सुघ्घर काम। चार झन ल लेके चलबे चलही तोर नाम।।
वीरेंद्र शर्मा की “श्रम के देवता किसान” एक शक्तिशाली हिंदी कविता है जो हमारे समाज में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है। यह उनकी अटूट प्रतिबद्धता और राष्ट्र के पोषण में उनके योगदान की प्रशंसा करता है। यह काव्यात्मक कृति किसानों के अथक प्रयासों और भूमि के साथ उनके दिव्य संबंध की गहरी सराहना करती है। वीरेंद्र शर्मा ने कुशलतापूर्वक किसानों को सच्चे नायकों के रूप में चित्रित किया है जो सभी के लिए खाद्य सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए निस्वार्थ भाव से कड़ी मेहनत करते हैं।
वीरेंद्र शर्मा की “श्रम के देवता किसान” हिंदी में किसान की कड़ी मेहनत के सार और महत्व को खूबसूरती से दर्शाती है। यह किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है, हमारे समाज को बनाए रखने और राष्ट्र को खिलाने में उनकी दिव्य भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह हृदयस्पर्शी कविता एक काव्यात्मक कृति है जो हमारे किसान समुदाय के समर्पण और लचीलेपन की गहरी प्रशंसा करती है। दिव्य मजदूर – किसान एक शक्तिशाली हिंदी कविता है जो हमारे समाज में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है। यह उनकी अटूट प्रतिबद्धता और राष्ट्र के पोषण में उनके योगदान की प्रशंसा करता है। यह काव्यात्मक कृति किसानों के अथक प्रयासों और भूमि के साथ उनके दिव्य संबंध की गहरी सराहना करती है।
शीर्षक: श्रम के देवता – किसान/वीरेन्द्र शर्मा
जाग रहा है सैनिक वैभव, पूरे हिन्दुस्तान का,
गीता और कुरान का।
मन्दिर की रखवारी में बहता ‘हमीद’ का खून है,
मस्जिद की दीवारों का रक्षक ‘त्यागी’ सम्पूर्ण है।
गिरजेघर की खड़ी बुर्जियों को ‘भूपेन्द्र’ पर नाज है,