Category: हिंदी कविता

  • चेहरे पे कई चेहरे / राजकुमार मसखरे

    चेहरे पे कई चेहरे / राजकुमार मसखरे

    चेहरे पे कई चेहरे / राजकुमार मसखरे

    चेहरे पे कई चेहरे / राजकुमार मसखरे


    चेहरे पे लगे हैं कई चेहरे
    इन्हें पढ़ना आसान नही,
    जो दिखती है मुस्कुराहटें
    वो नजरें हैं दूर और कहीं !

    इतने सीधे-सादे लगते हैं
    जो मुखौटा लगाए बैठे हैं,
    ये निर्बलों व असहायों के
    जज़्बातों के गला ऐठें हैं !

    मासूम चेहरा,इरादे खिन्न
    भीतर राज छुपा रखते हैं,
    जब भी मौका मिले इन्हें
    गरल वमन को लखते हैं !

    सूरत पर मत जाओ यारों
    वो सीरत की पता लगाओ,
    न जानें ये कब रंग बदल दे
    फिर कालांतर में पछताओ !

  • रामजी विराजेंगे / रमेश कुमार सोनी

    रामजी विराजेंगे / रमेश कुमार सोनी

    रामजी विराजेंगे / रमेश कुमार सोनी

    shri ram hindi poem.j

    रामजी आए हैं संग ख़ुशियाँ लाए हैं
    सज-धज चमक रही हैं गलियाँ
    पलक-पाँवड़े बिछे हैं सबके
    रंगोलियाँ लगी दमकने
    हो गए हैं सबके वारे-न्यारे
    जन्मों के सोये भाग लगे मुस्काने।

    अभागे चीखते रहे
    ये बनाओ,वो बनाओ-बनेगा वही जो
    ‘होइहैं वही जो राम रुचि राखा’,
    जगमग हैं घर-घरौंदें
    सजधज लौटी है दीवाली
    आनंद मगन नाच रहे हैं नर-नारी
    अवध-सरयू की प्रतीक्षा हुई है पूरी
    रामलला संग आए हैं हनुमन्त जी।

    वनवास संग संकल्प पूर्ण हुआ
    रामलला हम आएँगे
    मन्दिर वहीं बनाएँगे
    गगन चहुँओर गूँजे है
    जय श्री राम के नारों से।

    धन्य हुआ जीवन अपना
    विश्वास हमारा जीत गया
    धन्य जन्म जो काम आया राम के
    पुकार उठा है बच्चा-बच्चा देश का
    जय श्री राम-जय श्री राम।

  • छत्तीसगढ़ में रिश्ता राम के/ विजय कुमार कन्नौजे

    छत्तीसगढ़ में रिश्ता राम के/ विजय कुमार कन्नौजे

    छत्तीसगढ़ में रिस्ता राम के / विजय कुमार कन्नौजे

    छत्तीसगढ़ में रिश्ता राम के/ विजय कुमार कन्नौजे



    छत्तीसगढ़ के मैं रहइया
    अड़हा निच्चट नदान।
    छत्तीसगढ़ में भाॅंचा ला
    मानथन सच्चा भगवान।

    बहिनी बर घातेच मया
    मिलथे गजब दुलार
    दाई के बदला मा बहिनी
    देथे गा मया भरमार।

    कौशल्या दीदी बड़ मयारू
    छत्तीसगढ़ के शान
    जेकर गोदी म जनम धरिस
    श्री राम चंद्र भगवान ।

    बारा बच्छर बन मा काटिस
    छत्तीसगढ़ के कोरा म।
    केवट करा गोड़, धोवइस
    शबरी रिहिस हे अगोरा म।

    सबुत घलो बतावत हावय
    मोर गोठ बिल्कुल सांचा ये।
    धन हवय हमर भाग संगी
    राम छत्तीसगढ़िहा भाॅंचा ये।

    गोड़ धोथन अऊ पांव पडथन
    भाॅचा ला मानथन भगवान
    कवि विजय के अर्जी सुनके
    दरशन दे दे मोला सिया राम।

    वनदेवी रूप में बहू रानी हा
    काटिस अकेला बनवास।
    बाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया
    जग जननी करिस वास।

    गजब मया छत्तीसगढ़ में
    छत्तीसगढ़िहा रिस्ता राम के
    गोड़ धोवव, माथ नवावव
    मर्यादा पुरुषोत्तम राम के।

  • विकलांग नहीं दिव्यांग है हम

    विकलांग नहीं दिव्यांग है हम

    3 दिसम्बर दिव्यांग दिवस :- पर सभी दिव्यांग जनों को सादर समर्पित

    विकलांग नहीं दिव्यांग है हम

    आँखे अँधी है, कान है बहरे ,
    हाथ पांव भी भले विकल ।
    वाणी-बुद्धि में बनी दुर्बलता ,
    विश्वास-हौसला सदा अटल ।

    विकलांग नहीं दिव्यांग है हम

    अक्षमताओं से क्षमता पैदा कर ,
    विकलांग से हम दिव्यांग कहाए ।
    परिस्थितियों से लोहा लेकर ही ,
    काँटो-पथ पर फूल खिलाए ।

    तन दुर्बल है, पर ‘एक-इकाई’ ,
    आठ अरब की संख्या पार ।
    लक्ष्य बड़े ‘हाकिन्स’ से ऊँचे ,
    गहन अंतरिक्ष या समुद्र अपार ।

    कुछ फलने ,कुछ लेने परीक्षा ,
    उसने हमें ऐसा है बनाया ।
    पर पँखो में अरमान हौसला ,
    लक्ष्य हमें आसमान छुवाया ।

    एक अपूर्णता देकर उसने ,
    तीन दिव्यता हममें भर दी ।
    मेहनत कुछ, उसकी रेहमत से ,
    आज जीवन खुशहाली कर दी ।

    हमें हौसलों से, पहुँच बनानी ,
    सृष्टि के कण-कण जीवन ।
    खुशहाल प्रकृति है ,हमें सजानी ,
    तन-मन मानव में संजीवन ।

    कहीं नहीं हम,किसी से कमतर ,
    भले कोई सहारा न हो ।
    मन विश्वास ले, बढ़ते चले हम ,
    तूफान भले ,किनारा न हो ।

    दया के हम आकांक्षी नहीं है ,
    जीना चाहे स्वाभिमान से ।
    ‘अजस्र ‘ उमंग, हममें लहरों सी,
    मन पंख परवाज़, उड़ान चले ।

    डी कुमार–अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)

  • महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    महापर्व संक्रांति / रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    मधुर – मृदु बोल संक्रांति पर , तिल – गुड़ – लड्डू के खाओ
    मिलजुलकर सभी प्रेम – प्यार , समता , सौहार्द बढ़ाओ
    महापर्व संक्रांति लाए सदा , खुशहाली चहुँ ओर ,
    पतंग उड़ाओ , शुभकामनाएँ लेते – देते जाओ ।

    patang-makar-sankranti

    आया – आया करो स्वागत , पर्व संक्रांति का महान
    सपने ऊँचे सजाकर तुम , छू लो विस्तृत आसमान
    आशाओं की उड़े पतंग , थामो विश्वासों की डोर ,
    पुण्य कमाओ आज सभी , देकर प्रेम से कुछ भी दान ।

    कितना बढ़िया पावन , मनमोहक है , खुशी का त्योहार
    अफ़सोस ! आता नहीं मनोहर , यह त्योहार बार – बार
    ख़ुशबू ही ख़ुशबू फैली जा रही , अब तो चारों ओर ,
    गन्ने – रस की खीर , तिल – गुड़ के लड्डू होंगे तैयार ।

    अन्य राज्यों के साथ अब तो , पंजाब भी सराबोर
    गूँजता जा रहा लोहड़ी के , संगीत का मधुर शोर
    सुन्दर मुंदरिए मनोहर गाना , सबको ही है भाता ,
    भंगड़े – गिद्दे के साथ , थामते सब पतंग की डोर ।

    रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘