Category: हिंदी कविता

  • राम को माने राम का नही/राजकुमार ‘मसखरे’

    राम को माने राम का नही/राजकुमार ‘मसखरे’

    राम को माने,राम का नही
    (राम की प्रकृति पूजा)


    ओ मेरे प्रभु वनवासी राम
    आ जाओ अपनी धराधाम,
    चौदह वर्ष तक पितृवचन में
    वन-वन विचरे बिना विराम!

    निषाद राज गंगा पार कराये
    कंदमूल खाकर सरिता नहाए,
    असुरों को राम ख़ूब संहारे
    ऋषिमुनियों को जो थे सताए !

    भूमि कन्या थी सीतामाई
    शेष अवतारी लक्ष्मण भाई ,
    पर्ण कुटी सङ्ग,घास बिछौना
    भील राज सङ्ग करे मिताई !

    सबरी को तारे, अहिल्या उबारे
    गिलहरी,जटायू सङ्ग कागा कारे,
    सङ्ग-सङ्ग रहे रीछ,वानर मितवा
    ऐसे थे प्रभु श्रीराम जी हमारे !

    लोग पूजे, सिर्फ चित्र तुम्हारे
    चरित्र को तुम्हारे जाना नही ,
    राम को तो ये रात-दिन माने
    पर राम का तनिक माना नही !

    — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह

    माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह

    माँ मै आ गया हूँ /कमल कुमार सिंह

    माँ अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी है
    ना सुन सकती है न बोल सकती है
    देख कर भी कुछ कह नही सकती
    काले अंधेर दुनिया मे गुम हो चुकी है
    उम्मीद की किरण अब खो चुकी है
    दुनिया को अलविदा कह चुकी है..
    माँ मै आ गया हूँ

    माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह


    जब वो बीमार थी
    तब उसको इग्नोर करते रहे
    अकेला छोड़ अपनी मस्ती मे डूबे रहे
    बेटा बेटी पैसे का हिसाब करते रहे
    कोन रखेगा उसका जुगाड़ करते रहे
    कही इन्फैक्ट न हो जाऊ हाथ धोते रहे
    माँ मै आ गया हूँ
    दरवाजे बंद अब घर मे नही है
    दूर यात्रा पर निकल गयी है
    सभी के शिकवे खत्म कर गयी
    अब वो न लौट कर आयेगी
    अपने दूध का हिसाब न मांगेगी
    उसकी यादों मे अब जिंदगी खत्म हो जाएगी..
    तुम बस चिल्लाते रहो
    माँ मै आ गया हूँ

    कमल कुमार सिंह
    बिलासपुर

  • रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    tree
    पेड़


    जंगल झाड़ी अउ रूख राई
    प्राणी जगत के संगवारी हे।
    काटथे‌ फिटथे जउन संगी
    ओ अंधरा मुरूख अज्ञानी हे।

    अपने हाथ अउ अपने गोड़
    मारत हवय जी टंगिया।
    अपन हाथ मा घाव करय
    बेबस हवय बनरझिया।।

    पेट ब्याकुल बनी करत हे
    ठेकेदार के पेट भरत हे।
    नेता मन के कोठी भरत हे
    जीव जंतु जंगल के मरत हे।।

    अपने हाथ खुद करत हन
    घांव।
    रूख राई ला काट काट के
    मेटत हवन छांव।
    बिन रूख राई के संगवारी
    शहर बचय न गांव ।

    बिन पवन पुरवईया के संगी
    न पानी रहे न स्वांस।
    बिन प्रकृति सृष्टि जगत नहीं
    रूख राई बड़ हे खास।।

    डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर

  • हसदेव जंगल पर कविता

    हसदेव जंगल पर कविता

    हसदेव जंगल पर कविता

    hansdev ke jangal
    हसदेव जंगल


    हसदेव जंगल उजार के रोगहा मन
    पाप कमा के मरही।
    बाहिर के मनखे लान के
    मोर छत्तीसगढ़ म भरही।।

    कभु सौत बेटा अपन नी होवय,
    सब झन अइसन कइथे।
    सौत भल फेर सौत बेटा नही
    सौतिया डाह हर रइथे।।

    हसदेव जंगल दवई खदान
    सब जंगल ल उजाड़ही।
    बिन दवई बुटी के ,जन-जन ल रोगहा मन मार ही।।

    जंगल झाड़ी काट काट के
    कोयला खदान लगाही।
    ये रोगहा सरकार घलो हा
    परदेशिया मन ल बसाही।।

    का मुनाफा हे हमला जउन
    हमर हसदेव बन उजाड़ ही।
    धरती दाई के छाती कोड़ के
    भीतर कोइला ल खंगालही ।

  • सतनाम पर कविता



    सत के रद्दा बताये गुरू
    सही मारग दिखाये।
    सहीं मारग बतायें गुरू
    जय‌‌‌तखाम ल गड़ाये।।

    चंदा सुरूज ल चिनहाये
    गुरु,जोड़ा खाम ल गड़ाये
    विजय पताका ल फहराये
    साहेब, सतनाम ल बताये।।

    तोरे चरनकुंड के महिमा
    साहेब, जन-जन ल बताये।

    सादा के धजा बबा,
    सादा तिलक तोर माथे में।
    सादा के लुगरा पहिरे हवय
    सफुरा दाई साथ में।।

    मैं घोंडइया देवव बाबा,
    मैं पईंया लागव तोर।
    मोर दुःख ल हरदे बाबा
    निच्चट दासी हावव तोर।।

    संत के रद्दा धराये गूरू
    सही मारग दिखाये।
    मनखे मनखे एक समान
    जन जन ल बताये।।

    रचनाकार,, डॉ विजय कुमार कन्नौजे
    छत्तीसगढ़ रायपुर आरंग अमोदी