Category: हिंदी कविता

  • विदाई के पल पर कविता

    विदाई के पल पर कविता

    विदाई के पल पर कविता

    विदाई के पल पर कविता

    वर्षों से जुड़े हुए कुछ पत्ते
    आज बसंत में टूट रहे हैं ।
    जरूरत ही जिनकी पेड़ में
    फिर भी नाता छूट रहे हैं।

    यह पत्ते होते तो बनती पेड़ की ताकत ।
    इन की छाया में मिलती सबको राहत ।
    पर सबको मंजिल तक जाना है।
    सबने बनाई है अपनी-अपनी चाहत ।
    इन की विदाई से डाल-डाल सुख रहे हैं।
    जरूरत थी जिनकी पेड़ में
    फिर भी नाता छूट रहे हैं ।

    इन पत्तों से ही पेड़ में होती जान ।
    आखिर पत्तों से ही पेड़ को मिलती पहचान।
    यह पत्ते ही भोजन पानी हवा दिला कर ।
    बनते हैं जग में महान ।
    इनके बिना पेड़ के दम घुट रहे हैं ।
    जरूरत थी जिनकी पेड़ में
    फिर भी नाता छुट  रहे हैं ।

    मानो तो जीवन की यही परिभाषा ।
    हर निराशा में छुपी रहती आशा ।
    इनके जगह लेने कोई तो आएगा ।
    यही भरोसा और यही दिलासा।
    पतझड़ के बाद नई कोपले फूट रहे हैं ।

    बरसों से जुड़े हुए पत्ते
    आज बसंत में टूट रहे हैं।
    जरूरत थी जिनकी पेड़ में
    फिर भी नाता छूट रहे हैं।

    मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

  • आओ स्कूल चलें हम

    आओ स्कूल चलें हम

    आओ स्कूल चलें हम,
    स्कूल में खुब पढ़ें हम।
    जब तक सांसे चले,
    तब तक ना रुके कदम ।

    पढ़ लिख के बन जाएं नेहरू।
    खुले गगन में उड़ेगें बन पखेरू।
    गाता रहे हमारी सांसो की सरगम।
    जैसे परी रानी की पायल की छम छम।
    आओ स्कूल चले हम ….

    आज इरादे हैं हमारे कच्चे
    कल पढ़कर हो जाएंगे पक्के ।
    बापू की पथ पर चलकर
    बन जाएंगे हम सच्चे बच्चे
    मिट  जाये उस दिन सारे गम।
    आओं स्कूल चले हम…..

     मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़,

  • कमाए धोती वाला खाए टोपी वाला

    कमाए धोती वाला खाए टोपी वाला

    मजदूर दिवस
    मजदूर दिवस

    तेरी व्यथा,तेरी कथा,समझे ना ये दुनिया।
    लूटा तुझे अमीरों ने, पकड़ा दिया झुनझुनिया ।
    तूने आग में चलके ,पड़ाया रे पांव में छाला ।
    कमाए धोती वाला ,खाए टोपी वाला ।।1।।

    खड़े किए ,तूने सैकड़ों मंजिल ।
    फिर भी निडर तेरा ,दहला ना दिल ।
    तेरे खुन काम से हाथों में ,जब बह आए ।
    जालिम लोगों ने समझा, तू है कातिल ।
    तेरे सपनों पर ,तेरे अपनों पर, लग गया ताला।
    कमाए धोती वाला, खाए टोपी वाला ।।2।।

    जोड़ें तूने रेशा-रेशा ,
    बुनने की तेरी सुंदर पेशा।
    दुनिया के लिए कपड़ा बनाया,
    फिर भी बदन तेरी खुला कैसा।
    तेरे नाम पे ,तेरे काम पे,पड़ गया रे जाला ।
    कमाए धोती वाला, खाए टोपी वाला।।3।।

    मनीभाई नवरत्न

  • ममतामयी माँ -मनीभाई “नवरत्न”

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    ममतामयी माँ

    maa-par-hindi-kavita
    माँ पर कविता

    लाई दुनिया में पीड़ा सहकर।
    बचपन बीता माँ-माँ कहकर।
    स्वर्गानंद लिया गोद में रहकर।
    आशीष रहा उनका मुझ पर।
    एक शख्स में सारी सृष्टि समाई।
    वो  माँ, जो ममतामयी कहलाई।
    सुबह प्यार से वो,  हमें जगाती ।
    भूख से पहले  खाना खिलाती ।
    सही राह में चलना सिखलाती ।
    हर बुराई  से, लड़ना बतलाती।
    रिश्ते-नाते को जो निस्वार्थ निभाई ।
    वो  माँ, जो ममतामयी कहलाई।
    उसे मेरे पसंद का रहता ख्याल।
    मैं खुशनसीब हूँ, जो माँ का लाल।
    खुद से ज्यादा करें मेरी देखभाल।
    माँ!  तू पूजनीय रहे चिरकाल।
    चारदीवारी को, जो घर बनाई।
    वो  माँ, जो ममतामयी कहलाई।

    मनीभाई “नवरत्न”
    भौंरादादर, बसना, महासमुंद(छ.ग.)

  • राणा की तलवार

    राणा की तलवार

    पावन मेवाड़ भू पर जन्मे
    महाराणा प्रताप  शूर वीर
    अकबर से  संघर्ष  किया
    कई वर्षों तक बनकर धीर l
    दृढ़  प्रतिज्ञा  वीरता  में
    नाम तुम्हारा रहे  अमर
    घास की रोटी खाकर तुमने
    शत्रु से किया संग्राम समर l
    तलवारों के वार से जिसके
    अकबर थर थर थर्राता था
    बुलंद हौसलों का सिपाही
    महाराणा वो कहलाता था l
    तलवार हवा में जब चलती
    चहुँ ओर मचाती थी चीत्कार
    होश  उड़ाती  रिपु दल  के
    रणभूमि करती थी हाहाकार l
    हवा की गति से उड़ता चेतक
    राणा की चमकती थी तलवार
    शत्रु दल में हड़कंप था मचता
    देख लरजती तलवार के  वार l
    भाला कवच तलवार सहित
    होते थे  चेतक  पर  सवार
    अकबर की शर्त को राणा ने
    कदापि नहीं किया स्वीकार l
    पतंग सा हवा में उड़ता चेतक
    तलवार  तेज़  बरसाती  थी
    हिन्दू सम्राट राणा के सम्मुख
    सूर्य रश्मियाँ  भी  लजाती थी l
    अदम्य शौर्य तलवार में था
    शत्रु  को  धूल  चटाती  थी
    तेज़ प्रकाश निडर खड्ग ही
    मौत  की  नींद  सुलाती  थी l
    था अद्भुत महाराणा वीर
    तलवार मार  मचाती थी
    निहत्थे को भी देते तलवार
    ये अदा उन्हें श्रेष्ठ बनाती थी l
    मातृभूमि  रक्षा की खातिर
    जंगल  में  कई  वर्ष  बिताए
    विजय मिली मेवाड़ राज्य पर
    महाराणा ने हंसकर प्राण गँवाए l
    कुसुम लता पुन्डोरा
    नई दिल्ली
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद