Category: हिंदी कविता

  • शिक्षक का आशीर्वाद

    शिक्षक का आशीर्वाद

    अमूर्त को मूर्त रूप देकर,जग को दिखलाया है,
    शिक्षक,समाज में ज्ञान का महत्व को बताया है।
    शिक्षक,शिक्षा से अज्ञानी को ज्ञानी है बनाया
    शिक्षक,संसार मे सभी लोगों को है अपनाया।
    बेशक,गुरू – कृपा से शिष्य हुए हैं आबाद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    असहायों का ज्ञान से रोशन होता है जमीर,
    ज्ञान अर्जित सभी करते हैं,गरीब हो या अमीर।
    बुराईयों का अंत कर,फैलाइए ज्ञान का प्रकाश,
    ज्ञान का मंदिर है विद्यालय,क्यों होते हो हताश।
    शिक्षा से,समाज को कुरीतियों से करो आजाद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    अस्पृश्यता,रंगभेद थी समाज की बुराई,
    इनके विरूद्ध “शिक्षा” ने लडी है लडाई।
    सांप्रदायिकता,सती-प्रथा का हुआ है अंत,
    जब आए समाज में,शिक्षा का महान संत।
    अशिक्षा का दैत्य ने,शिक्षा का किया फरियाद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    गरीबी से लडकर,शिष्य बना है बडा अफसर,
    ज्ञान से मिली पहचान,अब जीता है खुलकर।
    सही गलत में फर्क करना वह जान लिया,
    अपने गुरूओं को वह सर्वश्रेष्ठ मान लिया।
    श्रेष्ठ ज्ञान से बन गया,शिष्य एक दिन उस्ताद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    5 सितम्बर को सभी मनाईए ‘शिक्षक दिवस’,
    डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का बढाईए,यश।
    सभी लोगों को शिक्षा के बारे में बताओ,
    अज्ञानता को लोगों के जेहन से हटाओ।
    गुरूजनों,बुद्धिजीवियों को सहृदय धन्यवाद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    हर-एक की दुनिया में,एक ऐसा होता है इंसान,
    अथक प्रयासों से,शिष्य को बनाते हैं वो महान।
    कहता है’अकिल’गुरू के लिए बोलूँ ये बोल,
    “गुरू बनाता है शिष्य का जीवन अनमोल।”
    श्रेष्ठ ज्ञान से बनाईए अपने,बुद्धि को फौलाद,
    जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।

    अकिल खान.
    सदस्य, प्रचारक “कविता बहार” जिला – रायगढ़ (छ.ग.).

  • हिन्दी की पुकार पर कविता

    हिन्दी की पुकार पर कविता

    हिन्दी हिन्द की शान है,हिन्दी हिन्द की जान है,
    हिन्दी हिन्द की वरदान है,हिंदी पर अभिमान है।
    उमंगों के तरंग में,हिंदी है भावनाओं का समंदर,
    एकता का प्रतीक है ये,भर लो हृदय के अंदर।
    हिन्दी है सबसे प्यारी भाषा,करो सभी स्वीकार,
    हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।

    हिंदी की आजादी के लिए,कई वीर हुए कुर्बान,
    अथक-अडिग प्रयत्नों से हिंदी बना है महान।
    अंग्रेजों के साथ,गुलामी का भी हुआ गमन,
    हिन्दी है अपनी जुबाँ,हिन्द है अपना वतन।
    हिंदी की आशियाना में है,मार्मिकता बेशुमार,
    हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।

    पृथ्वी,गगन,पवन,और गवाह है बरसात,
    हिंदी से तृप्त हैं,विश्व के सभी मानव जात।
    हिंदी है सौहार्द, हिंदी है अमन की परिभाषा,
    आजादी हो सर्वत्र,हिंदी की यही है अभिलाषा।
    “सर्वे भवन्तु सुखिनः” हिंदी भाषा की है गुहार।
    हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।

    कभी न मुरझाने वाली हिंदी है,एक चमन,
    हिंदी की महत्ता बयां करती है,धरा-गगन।
    कहता है ‘अकिल’ हिंदी का किजीए रक्षा,
    बड़ी ही शिद्दत से मिली है हिंदी की दीक्षा।
    हिन्द है हमारा वतन,हिन्दी को दो सभी दुलार,
    हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।

    अकिल खान.
    सदस्य, प्रचारक “कविता-बहार” जिला – रायगढ़ (छ.ग.).

  • विद्यालय का श्रृंगार –

    विद्यालय का श्रृंगार

    आशाओं के परिवेश में ये देखो उलझे नजारे हैं,
    बच्चे हैं देश के भविष्य ये कल के सितारे हैं।
    अ,आ,वर्णमाला विद्यालय का प्रथम आयाम है,
    1से 100 तक गीनती बच्चों का व्यायाम है।
    उचित ज्ञान से दूर होता है मन का विकार,
    विद्यार्थीयों से होता है,विद्यालय का श्रृंगार।

    उत्साहित होकर चलते हैं नन्हें पैर,
    न मन मे है मनमुटाव न दिल मे बैर।
    हां,अज्ञानता के कारण लड़ते हैं बच्चे,
    बच्चे क्या जाने? बच्चे होते हैं अच्छे।
    बच्चों के लिए पाठशाला है ज्ञान का संसार,
    विद्यार्थीयों से होता है,विद्यालय का श्रृंगार।

    श्यामपट की खिड़की से भविष्य को निहारते हैं,
    करके अथक प्रयास बच्चे गलती सुधारते हैं।
    विद्यालय में गुरु अहम भुमिका निभाता है,
    गुरू का डांट बच्चों का भविष्य बनाता है।
    शिक्षक मे छलकता है माता-पिता का प्यार,
    विद्यार्थीयों से होता है,विद्यालय का श्रृंगार।

    विद्यार्थी करते हैं अर्जीत अनमोल ज्ञान,
    सच्ची मेहनत से बच्चे बनते हैं महान।
    घर-परिवार सभी का आंखों का तारा,
    मंजिल से बनते हैं ये सभी का प्यारा।
    विद्यार्थी बनते हैं उचित ज्ञान से वफादार,
    विद्यार्थीयों से होता है,विद्यालय का श्रृंगार।

    अकिल खान.
    सदस्य, प्रचारक “कविता-बहार” जिला – रायगढ़ (छ.ग.).

  • सात्विक आहार-शाकाहार/रमेश कुमार सोनी

    सात्विक आहार-शाकाहार/रमेश कुमार सोनी

    शाकाहार पूर्णतः स्वैच्छिक आहारिक आदत है जिसमें केवल पौधों से प्राप्त आहार का सेवन किया जाता है। जिसमें शाकाहारी व्यक्ति अन्य जीवों का साथी बनता है, जो उच्च ऊर्जा और पोषण से भरपूर पौधों का सेवन करता है। यह अपने आपको प्रकृति से जोड़कर अधिक निकट रखते हुए उसके संरक्षण एवं संवर्धन की सोच से जुड़ा हुआ है जो मानवीय सभ्यता के विकास की प्रगतिवादी सोच है।

    सात्विक आहार-शाकाहार/रमेश कुमार सोनी

    सबके अपने पक्ष

    मानव शरीर को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार ही भोजन की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार के तत्व हैं-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, रुक्षांस एवं पानी। इन सभी को उसकी ज़रूरत के अनुसार कोई भी अपनी ज़ेब की ताकत और जीभ के स्वाद के अनुसार उपभोग करता है। यह उसकी अपनी परिस्थिति, पारिवारिक और सामाजिक जीवन शैली पर भी निर्भर करता है कि वह किस पद्धति को अपनाएगा तथापि वह इसे अपनाने के कई बहाने अपने पक्ष में तैयार रखता है। वर्तमान में शाकाहार और मांसाहार के पक्ष में कई लोगों की अपनी भीड़ तर्कों के साथ खड़ी है और किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं है अलबत्ता सभी अपनी शैली को प्रोत्साहित करने के कई आयोजन करते हुए अपने आपको श्रेष्ठ बताते हुए पाए जाते हैं। कहीं-कहीं कोई इसे प्रोत्साहित करने या दिखावे के फेर में ट्रोल किए जाते हैं जो उचित नहीं।

    शाकाहार : विज्ञान सम्मत आहार प्रक्रिया

    शाकाहार वर्तमान में एक विज्ञान सम्मत आहार प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने आपको प्रकृति से जोड़ते हुए ऊर्जा की प्राप्ति के सर्वाधिक निकट होता है, इस तरह वह पर्यावरणीय जीवंतता और इसके संवर्धन का झंडा उठाए हुए है। खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में जो भी उपभोक्ता प्रकृति (उत्पादक) के जितने निकट होगा वह उतनी ही ज्यादा ऊर्जा प्राप्त करेगा और चाहेगा कि उसका भंडार इस दुनिया में अक्षुण्ण रहे। मांसाहार तैयार होने में शाकाहार की तुलना में प्रकृति द्वारा पानी का उपयोग ज्यादा होता है इसलिए पेयजल की गंभीर समस्या को देखते हुए भी शाकाहार को प्राथमिकता दिए जाने की खबरें हैं।

    शाकाहार के प्रकार

    शाकाहार के प्रकार हैं-

    1 वीगन-

    ये केवल साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, नट और बीज का सेवन करते हैं। वे डेयरी उत्पाद नहीं लेते हैं।

    2 लैक्टो शाकाहारी-

    ये शाकाहारी हैं, लेकिन वे दूध, पनीर, दही, मक्खन, घी और क्रीम सहित डेयरी उत्पादों का भी सेवन करते हैं। वे अंडे नहीं खाते हैं ।

    3 ओवो शाकाहारी-

    ये अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, नट्स, बीज और अंडे का सेवन करते हैं लेकिन डेयरी उत्पाद नहीं।

    विकास की गाथा में शाकाहार


    आवश्यक पोषण के मायने मानवीय सभ्यता के विकास की गाथा के साथ बदलते रहा है। वर्तमान में हमारे पास प्रत्येक भोजन के विकल्प सभी के पास उपलब्ध हैं तथापि शाकाहार हमें जीवन में एकाग्रता और सामंजस्य को बढ़ावा देता है। इससे हमारे नैतिक मूल्यों का समर्थन होता है, जो सार्वजनिक हित के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस तरह शाकाहार एक समृद्ध, सात्विक, और संतुलित जीवनशैली को प्रोत्साहित करती है। इस शैली में अनाज,दाल, फल,हरी सब्जियाँ,नट्स और दूध लिया जाता है जिसमें सभी पोषक तत्व के साथ एंटीऑक्सीडेंट की भी पूर्णता हो जाती है। यह मौसमी फलों एवं सब्जियों के उपभोग को भी बढ़ावा देता है इस तरह यह कृषक, माली और गौपालन को स्थानीय स्तर पर समृद्ध करने की भी प्रक्रिया से भी जुड़ा हुआ है।

    कुछ देशों में शाकाहारियों के अपने विशेष अधिकार हैं जबकि इससे जुड़े अर्थशास्त्र की कई गणनाएँ मौजूद हैं। सनातन सभ्यता पद्धति में हिन्दू,जैन एवं बौद्ध धर्म के मतावलंबियों को इसे प्राचीन काल से अपनाते हुए पाया जाता है। शाकाहारी भोजन ग्रहण करने के मामले में भारत विश्व में पहले नम्बर पर है। ईसा पूर्व से ही साधु-संतों के द्वारा शाकाहार में कन्द-मूल लेने से सम्बंधित कई पौराणिक तथ्य मिलते हैं।

    मांसाहार- ग्लोबल वार्मिंग का खतरा

    एक शोध में पाया गया कि आहार से मांस और डेयरी उत्पादों को काटने से किसी व्यक्ति के भोजन से कार्बन फुटप्रिंट को 73 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन से आहार में एक साधारण बदलाव से इन सब से बचा जा सकता है!

    मांसाहारी सिर्फ मांसाहार ही लेते हैं ऐसा नहीं है वे शाकाहार भी यथासमय लेते हैं इस दृष्टि से ये विशुद्ध मांसाहारी नहीं माने जा सकते हैं। कुछ लोग डेयरी प्रोडक्ट को भी शाकाहार से अलग हटाकर देखते हैं। वर्तमान में किसी भी पद्धति को अपनाना पूर्णतः व्यक्तिगत एवं स्वैच्छिक है। मांसाहार पशु क्रूरता, हिंसा और हत्या जैसे जीवन जीने के अधिकार को छीनने से जुड़ा है जो हमें राजसिक और तामसिक भोजन देता है जबकि शाकाहार सात्विक भोजन होता है। पशु चराई और पशु मल कुप्रबंधन से कई गुना ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ जाता है। मांसाहारियों के लंबे,और नुकीले दांत होते हैं जो मनुष्यो के नहीं होते ,मांसाहारियों में छोटी आँतें होती हैं जबकि इंसानों में लम्बी साथ ही पशुओं के यकृत आनुपातिक रूप से बड़े होते हैं जो यूरिक एसिड को बेअसर कर देते हैं। यह भोजन राजसिक या तामसिक होने के कारण ताजा नहीं होता और इसमें उच्च मात्रा में संतृप्त वसा होती है जो रोगकारी हो सकता है।

    जीवन संतुलन में शाकाहारी आदतें

    शाकाहारी आदतें शरीर के वजन सहित कोलेस्ट्रॉल को संतुलित रखने में सहायक है जिससे मोटापा जनित रोग- उच्च रक्तचाप,मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा न्यून होता है। इस पद्धति में विटामिन बी12,कैल्शियम और आयरन की कमी प्रायः देखी जाती है। शाकाहारी होने के लोगों के अपने-अपने तर्क हैं जैसे-स्वास्थ्य,नैतिकता, धर्म,परंपरा एवं पर्यावरण से जुड़ा होना। जंक फूड और शाकाहारी पैकेट बन्द भोजन जैसे- चिप्स, सोडा और कूकीज हानिकारक प्रभाव देते हैं क्योंकि इनमें अतिरिक्त सोडियम,शक्कर और संतृप्त वसा की अधिकता होती है। आजकल कैलोरी गणना और बॉडी मॉस इंडेक्स के आधार पर विशेषज्ञों के सुझाए अनुसार लोग आहार ग्रहण कर रहे हैं।

    प्रकृति के और अपने परिवेश में अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर जो आहार जिसे उचित लगता है वह उसके पक्ष में खड़ा होता है तथापि शाकाहार जीवन शैली इस देश के अनुरुप है जिससे आप अपनाते हुए अपने एवं अपनों के हित की रक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। मेरी आप सभी से यह अपील है कि शाकाहार अपनाते हुए अपने जीवन में करुणा और अहिंसा को बढ़ावा दीजिए।
    हरे भरे जियो और हरे भरे रहो।

    रमेश कुमार सोनी
    रायपुर,छत्तीसगढ़

  • दृश्य के उस पार / रमेश कुमार सोनी

    दृश्य के उस पार / रमेश कुमार सोनी

    उस एक दृश्य में उसकी
    आँख में मैंने गंभीर ख़ौफ़ देखा
    जिसे उन्होंने ही पाल-पोष कर बड़ा किया था
    खून से इतनी मोहब्बत की
    हुजूम चलती है उनके साथ लार टपकाते
    अहंकार से चूर इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं।

    दूसरे दृश्य में करुणा है, लाचारी है कि
    उसका कोई और मालिक है
    माली भी पालता-पोषता है लेकिन
    इसका प्रेम छलावा नहीं होता
    दोनों का सम्बंध भूख मिटाने से है।

    जीभ को यदि लाल रंग पसंद है
    तो गाजर, चुकंदर भी कुछ लोग चुन लेते हैं
    तो कोई अपनी शक्ति दिखाना चाहता है
    फ़र्क तो सदा से ही रहा है
    करुणा और हिंसा में।

    लोग अनजानी परम्परा से बँधे हैं
    लोक लाज का गँड़ासा टँगा है समाज में
    सुरा-सुंदरी इसके साथी हैं
    पेट को इन मृत पशुओं की कब्र बनाकर
    लोग मातम के आँगन में नाच रहे हैं
    दूर बच्चा रो रहा है माँ की गोद में
    आसमान भी ख़ामोश है।

    बेशक अधिकार है आपको रंग चुनने का
    इसके विकल्प भी हैं लुत्फ़ उठाने के लिए
    आप शाकाहार का चश्मा पहनिए
    हरियाली आपके स्वागत में खड़ी मिलेगी
    सच्चे प्रेम और करुणा की किल्लोल करती।

    किसी भूखे को पूछें कि क्या खाएगा?
    वह स्वाद कभी नहीं कहता
    अघाय लोगों की
    लपलपाती जीभ ही ये तय करती है कि
    उसे कौन आहार कब चाहिए।
    ……
    रमेश कुमार सोनी
    रायपुर, छत्तीसगढ़