Category: हिंदी कविता

  • हिन्दी हमारी जान है

    हिन्दी हमारी जान है

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है,
    हम सबकी जुबान है !!

    रग-रग में बहता लहू ही है,
    ये हर हृदय की तान है!!

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है!!

    अपने में समाहित कर लेगी..
    हो शब्द किसी..भाषा का कोई..
    समरस भाव से स्वीकारे…
    अपनी संतान को ज्यों माता कोई!

    यही हमारी मान है …
    ये भारत की शान है !
    रग-रग में बहता लहू ही है..
    ये हर हृदय की तान है !!

    खेतों में टपकते श्रम-जल सी
    ये बहता वायु संदल की …
    भारत की धानी चुनर है ये..
    ये कहता हर किसान है !!

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है!
    रग-रग में बहता लहू ही है ..
    ये हर हृदय की तान है!!

    ऐ हिन्दी! इतना उपकार कर दे ..
    अहिन्दियों का भी उद्धार कर दे !!
    अपने आँचल से इन पर भी …
    ममता की बौछार कर दे ..!!

    हे देववाणी की तनया !….
    तू तो..वत्सलता की खान है
    रग-रग में बहता लहू ही है..
    तू हर हृदय की तान है ..!!

    *-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*
         रायगढ़, छत्तीसगढ़
    मोबाइल नं.7804048925

  • हिन्दी हमारी शान

    हिन्दी हमारी शान

    हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                           ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                            ये बड़ी महान है।।……..
    चमकते तारे आसमां के , 
                             हैं भारत के वासी हम।
    कोई चंद्र है कोई रवि, 
                            कोई यहां भी है न कम।।
    आसमां बनकर सदा, 
                              हिन्दी मेरी पहचान है।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा ,
                              ये हमारी शान है।।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                              ये बड़ी महान है।…
    पूरब है कोई पश्चिम, 
                              कोई उत्तर है दक्षिण।
    अलग अलग है बोलियां, 
                              पर एक सबका है ये मन।।
    अंग भारत के हैं सभी, 
                              पर हिन्दी दिल की है धड़कन।
    एकता में बांधे हमको,
                              इस पर हमें अभिमान है।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                               ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी, 
                             ये बड़ी महान है।।…
    बनी राष्ट्र भाषा राजभाषा,
                             मातृभाषा भी बनी,
    आओ इसको हम संवारें, 
                             हिन्दी के हम हैं धनी।
    गर्व हिन्दी पर है हमको, 
                            एकता में जोड़े सबको।
    आंकते कम हैं इसे जो, 
                             वे बड़े नादान हैं।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा,
                              ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी, 
                               ये बड़ी महान है।।………

                                         …..भुवन बिष्ट
                                  रानीखेत (उत्तराखण्ड)

  • इंसान हो तो सदा सदकर्म करो

    इंसान हो तो सदा सदकर्म करो

    इंसान हो तो सदा सदकर्म करो
    या चुल्लू भर पानी में डूब मरो

    चार दिन की चटक चाँदनी
    फिर तो अंधेरी रात है
    ये जीवन अभिनय मंच है
    कुछ नहीं  संग में जात है

    साँसे मिली है गिनती में
    कभी इसे ना ब्यर्थ करो 

    मुठ्ठी बाँध आए जग में
    बस हाथ पसारे जाना है
    रंगमंच रे दुनिया सारी
    सपनों का ताना बाना है

    पलक खोलकर देख मुसाफिर
    हवाओं  में ना रंग भरो

    कामनाओं की तप्त मरू पर
    मन मृगा भटका जाए
    जाने कब तृष्णा मिटेगी
    मृत्यु बैठी है घात लगाए

    तोड़ दो बंदिशे ब्यर्थ की
    मन पावन निर्मल करो

    मन चंगा तो कठौती में गंगा
    कहते सब मुनि ज्ञानी हैं
    मन को ही साध ले प्यारे
    जिंदगी  आनी जानी है

    काम क्रोध औ मद लोभ से
    मन को सदा विजयी करो

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

  • जय हो तेरी बाँके बिहारी

    जय हो तेरी बाँके बिहारी

    माँखन तुमने बहुत चुराए,
    बांसुरी तुमने बहुत बजाए,
    गोपियों को तुम बहुत सताए,
    माँ को उलहन बहुत सुनाए,
    ऐसी लीला करके गिरधर,
    पावन कर दीए धरा हमारी,
    जाऊँ मैं तुझपे बलिहारी,
    जय हो तेरी बाँके बिहारी ।।


           बचपन में पुतना को मारे,
           कालिया नाग को भी उद्धारे
           अमिट कर दीए सुदामा की मित्रता,
           गुरु सांदीपनी की अनुपम पवित्रता,
           मथुरा पधारे कंश संहारे,
           कंश संहार कर हे प्रिय केशव,
           धन्य कर दीए मथुरा सारी,
           जय हो तेरी बाँके बिहारी ।।

    बड़ा हुए तो माखन छुटा ,
    गोपियों से भी नाता टुटा,
    याद में रोयें राधा प्यारी,
    बांसुरी का भी धुन था न्यारी,
    कहाँ छोड़ चले ओ माधव,
    याद कर रहीं सखी तुम्हारी,
    रास रचैया रास बिहारी,
    जय हो तेरी बाँके बिहारी ।।

          धृतराष्ट्र की सभा में देखो,
          दुराचारों का भीड़ है भारी,
          बीच सभा में ओ मोहन,
          खींच रहा है चीर हमारी,
          अब देर मत करो मदन मुरारी,
          बचाओ आकर लाज हमारी,
          लीलाधर गोवर्धनधारी ,
          जय हो तेरी बाँके बिहारी ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • बहुत याद आता हैं बचपन का होना

    बहुत याद आता हैं बचपन का होना

    वो बचपन में रोना बीछावन पे सोना,,
    छान देना उछल कूद कर धर का कोना,,
    बैठी कोने में माँ जी का आँचल भिगोना,,
    माँ डाटी व बोली लो खेलो खिलौना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना।।

    बहुत याद आता हैं बचपन का होना


    गोदी में सुला माँ का लोरी सुनाना,
    कटोरी में गुड़ दूध रोटी खिलाना,,
    नीम तुलसी के पते का काढा पीलाना,,
    नहीं सोने पर ठकनी बूढ़ीया बुलाना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।।


    घर के पास में छोटी तितली पकड़ना,,
    वो तितली उड़ा फिर दूबारा पकड़ना,,
    लेट कर मिट्टीयो में बहुत ही अकड़ना,,
    अकड़ते हुए मा से आकर लीपटना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।।।


    दादा के कानधे चढ़ गाँव घर घुम आना,,
    रात में दादा दादी का किस्सा सुनाना,,
    छत पर ले जा चंदा मामा दीखाना,,
    दीखाते हुए चाँद तारे गिनाना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।।


    गाँव के बाग से आम अमरूद चुराना,,
    खेत में झट दूबक खीरे ककड़ी का खाना,,
    पकड़े जाने पर मा को उलहन सुनाना,,
    फिर गुस्से में माँ से मेरा पिट जाना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।।।


    दीन भर खेत में बाबू जी का होना,,
    इधर मैं चलाऊ शरारत का टोना,,
    गुरु जी का हमको ककहरा खिखाना,,
    दूसरे घर में जा माँगकर मेंरा खाना,,
    बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।
    हाँ बहुत याद आता हैं बचपन का होना ।।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया