Category: हिंदी कविता

  • कुछ ऐसा काम कर दिखाये हम

    कुछ ऐसा काम कर दिखाये हम

    कुछ ऐसा काम कर दिखाये हम ।
    दुनियाँ को जन्नत सा बनाएँ हम ।।

    फिरकापरस्ती का जहर कम हो ।
    सबका मालिक एक बताएँ हम ।।

    कोई हिन्दू न कोई मुसलमान हो ।
    इंसान है इंसान ही कहलाएं हम ।।

    बस्तियाँ अब बहुत जला ली हमने ।
    झोपड़ी में एक दीपक जलाएँ हम ।।

    हवा भी इस कदर जहरीली हो गई ।
    खुले मैदान में सांस न ले पाएं हम ।।

    कर्म से ही अहिंसा बेमानी लगती है ।
    मन वचन से अहिंसा अपनाएं हम ।।

                         ‘ पंकज ‘

  • अपनी भाषा हिन्दी

    अपनी भाषा हिन्दी    

    गहरा संबंध है,
    सादगी और सौंदर्य में
    स्वाभाविकता और अपनत्व में।
    नकल में तो आती है,
    बनावट की बू।
    बोलने में सिकुड़ती है
    नाक और भौं।
    जो है, उससे अलग दिखने की चाह।
    पकड़ते अपनों से अलग होने की राह।
    मत सोचिये कि निरर्थक कहे जा रही,
    क्योंकि अब मैं अपनी बात पे आ रही।

    बात साफ है,
    हिन्दी और अंग्रेजी की,
    देशी और विदेशी की।
    दम लगा देते हैं एक का
    बोलने का लहजा सीखने में।
    कमी तो फिर भी रह ही जाती है,
    कुछ कहने में।
    हिंदी बोलने में उनके
    हर दो शब्द बाद अंग्रेजी है,
    लगता है बात शान से सहेजी है।

    पर अपनी भाषा का तो
    होता है निराला अंदाज ।
    बिना किसी बनावट के
    किया गया आगाज।
    बसे हैं इसमें अपने रीत रिवाज,
    बजते हैं इसी में हमारे हर साज।
    आती इसमें अपनी माटी की
    सौंधी गंध,
    बसती है इसमें माँ की रक्षा की सौगन्ध।
    पावन प्राणवायु सी
    जो करती श्वांसों का संचार
    मादक पुहुप सुरभि सी,
    करती जिजीविषा का प्रसार।
    परींदे के नूतन परों सी,
    जो भरते उन्मुक्त उड़ान।
    सप्त सुरों के साधन सी
    छिड़ता जीवन का राग।
    अदृश्य के आराधन सी
    सधता जिससे विराग
    हिंद की होती विश्व में
    हिंदी से ही पहचान।
    हिंदी से  ही पहचान।

    पुष्पा शर्मा”कुसम”

  • आओ मिलकर पेड़ लगाएं

    आओ मिलकर पेड़ लगाएं

    Poem on plantation || वृक्षारोपण पर कविता

    सूनी धरा को फिर खिलाएं
    धरती मां के आंचल को हम
    रंगीन फूलों से सजाएं
    आओ मिलकर पेड़ लगाएं।।

    न रहे रिश्तों में कभी दूरियां
    चाहे हो गम चाहे मजबूरियां
    मिलकर घर सब सजाएं
    आओ मिलकर पेड़ लगाएं।।

    वन की सब रखवाली करें
    सूखे लकड़ियो से काम चलाएं
    कैसे न खुश होंगी फिजाएं
    आओ मिलकर पेड़ लगाएं।।

    अगर करोगे वन विनाश
    बीमारियों का घर में होगा वास
    भू में स्वच्छ वातावरण बनाएं
    आओ मिलकर एक पेंड लगाएं।।

    क्रान्ति, सीतापुर, सरगुजा छग

  • कलम से वार कर

    कलम से वार कर

    kalam

    परिणाम अच्छे हो या बुरे,,
    उसे सहर्ष स्वीकार कर,,
    किसी को दोषी मत ठहरा,,
    अपने आप का तिरस्कार कर,,
    समीक्षा कर अंतःकरण का,,
    और फिर कलम से वार कर ।।

           जहाँ तुम्हें लगे मैं गलत हूँ,,
           वहाँ बेझिझक अपनी हार कर,,
           अपने चिंतन शक्ति को बढ़ाकर,,
            तुम ज्ञान का प्रसार कर,,
            अपने अन्दर अटूट विश्वास कर ले,,
            और फिर कलम से वार कर।।

    साथ दे या न दे कोई,,
    तो भी तुम उसका आभार कर,,
    अधिकार किसी का छीना जाय,,
    तो अपनी बातों से उस पर प्रहार कर,,
    निस्काम भाव निःस्वार्थ सेवा में,,
    फिर कलम से वार कर ।।

          आएगी तुम्हारी भी बारी,,
          अपनी बारी का इंतज़ार कर,,
          विश्वास रखो तुम भी महान होगे,,
          बस अपने गुणों का निखार कर,,
           हे मानव अपने ऊपर अधिकार रख,,
          और फिर कलम से वार कर ।।

    रचना:बाँकेबिहारी बरबीगहीया

  • सखी वो मुझसे कह कर जाते

    सखी वो मुझसे कह कर जाते

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    नैनन मेरे नीर भर गये
    हृदय किया आशंकित है
    गये होगें जिस मार्ग पे चलके
    उस पथ उनके पग अंकित है
    जाना ही था जब प्रियतम को
    थोडी देर तो रह कर जाते !!१!!
    *सखी वो मुझसे*……………..

    भोर भयी जब देखा मुडकर
    प्रियतम सेज दिखे ना हमें
    हृदय हुआ जो पीडित उस क्षण
    कहूँ वो कैसे व्यथा तुम्हें
    सह लेती हर तडपन पर यूँ
    प्रियतम ना मुझको छल कर जाते !!२!!
    *सखी वो मुझसे*…………..

    कैसे तुमने सोचा प्रियतम
    पथ की तेरे मैं बाधक थी
    जरा देर को मिलते मुझसे मैं
    तेरे मार्ग की साधक थी
    तुम्हें मुक्त मै करती खुद से,
    मैल हृदय से धुलकर जाते !!३!!
    *सखी वो मुझसे*…………….

    शिवांगी मिश्रा