शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “ददरिया” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति और विशेषकर ददरिया गीत पर केंद्रित है। ददरिया छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय गीत है जो अपनी भावुकता और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से ददरिया गीत की सुंदरता, उसके पीछे की भावनाएं और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।
ददरिया पर कविता
काव्य विधा : – रोला
दर्द भरे हिय गीत, कहे हैं सुनों ददरिया।
यह वियोग श्रृंगार, भरे हैं कहते तिरिया।।
नर नारी मिल साथ, गीत में नाचे गाएँ।
रहे पंक्ति दो जान, नैन दोनों मटकाएँ।।
इक दूजे को साथ, प्रश्न हैं करते प्यारे।
दूजा उत्तर देत, झूमके तन मन वारे।।
भिन्न – भिन्न रख वाद्य, सदा उत्सव में गाते।
प्रेम पीर की बात, सहज हिय तक पहुँचाते।।
खेत और खलिहान, काम जब करते रहते।
गीत ददरिया साथ, सुरों में साजे कहते।।
यादव जी बृजलाल, ख्याति में नाम बनाये।
है रिकार्ड में नाम, स्वयं ये कर दिखलाये।।
एकल में भी लोग, गीत का गायन करते।
करे कभी संवाद, युगल में भी हैं रहते ।।
रानी कहते लोग, गीत की इसको जानो ।
जुड़े दर्द हिय प्रांत , प्रेम में इसको मानो।।
व्याख्या:
यह कविता ददरिया गीत को एक भावुक गीत के रूप में चित्रित करती है जो लोगों के दिलों को छू लेता है। कवि ने ददरिया को “दर्द भरे हिय गीत” और “वियोग श्रृंगार” बताया है। इसका अर्थ है कि यह गीत प्रेम और वियोग की भावनाओं को व्यक्त करता है। कवि ने ददरिया को नर और नारी के बीच के रिश्ते का प्रतीक बताया है।
कवि ने ददरिया को एक सामाजिक गीत भी बताया है जो लोगों को एक साथ लाता है। कवि ने कहा है कि लोग ददरिया गाते हुए नाचते हैं और एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं। कवि ने ददरिया को “खेत और खलिहान” में गाए जाने वाले गीत के रूप में भी चित्रित किया है। इसका अर्थ है कि ददरिया लोगों के दैनिक जीवन का एक हिस्सा है।
कवि ने ददरिया को एक ऐसी कला बताया है जो लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है। कवि ने कहा है कि ददरिया गीत लोगों के दिलों में प्रेम और दर्द की भावनाओं को जगाता है।
कविता का सार:
यह कविता ददरिया गीत की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस गीत को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें ददरिया गीत के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।
निष्कर्ष:
शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “ददरिया” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें ददरिया गीत के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।
अतिरिक्त जानकारी:
- ददरिया आमतौर पर महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
- ददरिया में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।
- ददरिया को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।
यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।
यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।
रोला छंद के बारे में:
रोला छंद दोहे का ही एक रूप है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 13 अक्षर होते हैं।
कविता में रोला छंद का प्रयोग:
कवि ने इस कविता में रोला छंद का प्रयोग कर भावों को अधिक प्रभावशाली तरीके से व्यक्त किया है। रोला छंद की लय और ताल ददरिया गीत की भावनाओं को बखूबी बयां करती है।
कविता का सारांश:
कवि ने इस कविता में ददरिया गीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने का प्रयास किया है। उन्होंने ददरिया को एक ऐसे गीत के रूप में चित्रित किया है जो लोगों के दिलों को छू लेता है और उन्हें एक साथ लाता है।