काम पर कविता/ सुकमोती चौहान

काम पर कविता

लाख निकाले दोष, काम होगा यह उनका।
उन पर कर न विचार, पाल मत खटका मन का।
करना है जो काम, बेझिझक करते चलना।
टाँग खींचते लोग, किन्तु राही मत रुकना।
कुत्ते सारे भौंकते, हाथी रहता मस्त है।
अपने मन की जो सुने, उसकी राह प्रशस्त है।

ये दुनिया है यार, चले बस दुनियादारी।
बन जायेगा बोझ, शीश पर जिम्मे भारी।
कितना कर लो काम, कर न सकते खुश सबको।
काम करो बस आज, बुरा जो लगे न रब को।
इतना करना भी बहुत, बड़ा काम है जान ले।
खुद पर है विश्वास तो , जीवन सार्थक मान ले।।

डॉ सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया, महासमुंद, छ ग

दिवस आधारित कविता