मैं जीने लगी

मैं जीने लगी

Hindi Poem ( KAVITA BAHAR)

वक्त का सरकना
और उनके पीछे
मेरा दौड़ना
  ये खेल निरन्तर
   चल रहा है
कहाँ थे और
कहाँ आ गये।
   कलेन्डर बदलता रहा
   पर मैं यथावत
जीने की कोशिश
भागंमभाग जिन्दगी
    कितना समेटू
मैं जीवन रुपी जिल्द
संवारती रही, और
पन्ने बिखरते गये।
   एक कहावत सुनी
और जीवन सुखी हो गया
आप सब भी सुनिए
जब दर्द और कड़वी गोली
सहन होने लगे
  समझो जीना आ गया
और मैं जीने लगी।

*मधु गुप्ता “महक”*

Leave a Comment