तन पर कविता-रजनी श्री बेदी

तन पर कविता

हर मशीन का कलपुर्जा,
मिल जाए तुम्हे बाजार में।
नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे,
हो  चाहे उच्च व्यापार में।

नकारात्मक सोचे इंसा तो,
 सिर भारी हो जाएगा।
उपकरणों की किरणों से  ,
 चश्माधारी  हो जाएगा।
जीभ के स्वादों के चक्कर में,
न डालो पेनक्रियाज को मझधार में।
नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे,
हो चाहे उच्च व्यापार में।

तला हुआ जब खाते हैं,
लीवर की शामत आती है।
बड़ी आंत भी मांसाहारी,
भोजन से डर जाती है।
तेलमय भोजन को छोड़ो,
दया करो ह्रदय संहार में।
नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे,
हो चाहे उच्च व्यापार में।

बासी खाना खा कर हमने,
 छोटी आँत पर वार किया।
खा कर तेज़ नमक को हमने ,
रक्त प्रवाह बेहाल किया।
पीकर ज्यादा पानी,बचालो,
किडनी को हरहाल में।
नहीं मिलते हैं,तन के पुर्जे,
हो चाहे उच्च व्यापार में।

मत फूंको सिगरेट को,
और न फेफड़ों को जलाओ तुम।
रात रात भर जाग जाग न,
पाचन क्रिया बिगाड़ो तुम।
अब भी वक़्त बचा है बन्दे,
खुश रहलो घर परिवार में।
नहीं  मिलते हैं तन के पुर्ज़े
हो चाहे उच्च व्यापार में।

सारे सुख हैं बाद के होते,
पहला सुख निरोगी काया
जब तन पीड़ित होता है,
तो न भाए,दौलत माया।
प्रतिदिन योग दिवस अपनालो,
सुंदर जीवन संसार मे।
नहीं मिलते हैं,तन के पुर्जे 
हो चाहे उच्च व्यापार में।

रजनी श्रीबेदी
जयपुर
राजस्थान
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद