Category: अन्य काव्य शैली

  • मातृभूमि- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मातृभूमि- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    उसकी आँखों का पानी
    सूख चुका था

    उसकी मरमरी बाहें
    आज भी
    इंतजार कर रही हैं उसका

    जो गया तो
    फिर वापस नहीं आया

    ये उसका पागलपन नहीं

    उसकी आत्मा की आवाज है

    जो बरबस ही दरवाजे की और
    ढकेल देती है उसे

    इन्तजार है उसे उस पल का

    जो उसे टूटने से बचा ले

    ये उसका पुत्र प्रेम है जिसने

    उसने अंदर तक विव्हल किया है

    वो गया था कहकर

    जीतूंगा और वापस लौटूंगा

    सियाचिन की वादियों में

    लड़ा वो वीर बनकर

    दुश्मनों को पस्त कर

    फिर निढाल हो शांत हो गया

    पहन तिरंगा कफ़न पर

    मातृभूमि पर न्योछावर

    परमवीर बन गया वह ….

  • मैंने माँ से पूछा? वंशिका यादव

    माँ बेटी

    आज मैने माँ से पूछा कि क्या आप बिस्तर लगाते वक्त अब भी याद करती हैं?तो माँ ने कहा मेरे बच्चे जल्दी घर आजा मुझे तेरी याद आती है।

    आज मेरी आँखे नम थी, और गला कुछ रुंधा सा था,क्योंकि मैं आज रोयी थी।तब शाम को मैने मम्मी को फोन किया और पूछा कि आप कैसे हो?माँ का अगला सवाल मुझसे था, चल तु बता तु रोयी क्यों है?
    मैंने माँ से पूछा? गद्य,वंशिका यादव

  • कठपुतली मात्र हैं हम

    कठपुतली मात्र हैं हम

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कुछ भ्रांतियां ऐसी जो, हास्यास्पदसी लगती हैं
    कहावतें भी जीवन का, प्रतिनिधित्व करती हैं।।
    ज़मीं पे गिरी मिठाई को, उठाकर नहीं खाना है,
    वो बोले मिट्टी की काया, मिट्टी में मिल जाना है।।

    बंदे खाली हाथ आए थे खाली हाथ ही जाएंगे,
    फिर बेईमानी की कमाई, साथ कैसे ले जाएंगे।।
    रात दिन दौलत, कमाने में ही जीवन बिताते हैं,
    वो मेहनत की कमाई झूठी मोह माया बताते हैं।।

    पति-पत्नी का जोड़ा, जन्म-जन्मांतर बताते हैं,
    फिर क्यों आये दिन, तलाक़ के किस्से आते हैं।।
    सुना है बुराई का घड़ा एक न एकदिन फूटता है,
    फिर बुरे कर्म वालों का, भ्रम क्यों नहीं टूटता है।।

    ऊपर वाले के हाथों की कठपुतली मात्र हैं हम,
    फिर क्यों लोग, स्वयं-भू बनने का भरते हैं दम।।
    उसने भू-मण्डल, मोहक कृतियों से सजाया है,
    फिर क्यों उसके अस्तित्व पर सवाल उठाया है।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
    9928305806

  • मनीभाई के पिरामिड रचना

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★कलम,कागज,कलमकार★
    मैं
    एक
    अबूझ
    तुकबंदी
    कलमकार
    होता ज्यों व्यथित
    देता उसे आकार
    है मेरे सहचर
    कलम कागज
    मुखर नहीं
    मुझ जैसा
    निशब्द
    दोनों
    ही।

    मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★मरणासन्न★

    ये
    मेरी
    कौन सी
    है अवस्था
    जहाँ से अब
    दिखता है सच
    होने लगा पवित्र
    कैसी भुलभुलैया
    अब चला पता
    मरणासन्न
    हकीकत
    जिन्दगी
    दिखा
    दी।

    “मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★रिश्ते नातों का जाल★

    ये

    जग
    अजीब
    जहाँ पर
    होती सबकी
    अलग जिन्दगी
    तथापि समाहित
    रिश्ते नातों का जाल
    खट्टी मीठी यादें
    आगे बढ़ाती
    कहानी को
    हरेक
    सिरे
    में।
    “मनीभाई” नवरत्न,
    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★क्रांति का सैलाब ★

    है

    कष्ट
    अन्याय
    सह जाना
    क्यों नहीं लाते
    क्रांति का सैलाब
    एकता मशाल से
    सबके कमाल से
    हमारी खामोशी
    उन्हें बल दे
    हौसला दे
    अन्यायी
    होने
    की।
    “मनीभाई”नवरत्न”
    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★नैतिकता की पाठ ★

    हो

    रहे
    मां बाप
    असहाय
    अनैतिकता
    बढ़ रही आज
    भारी आवश्यकता
    नैतिकता की पाठ
    सभी को पढ़ना
    मांग बढ़ी
    प्रबल
    आज
    की।
    “मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★न माने हार ★

    ये
    जान
    प्रयास
    है नाकाम
    न माने हार
    हसूँ निराधार
    लोग कहे बावला
    गम से है हारा
    बना असभ्य
    सामाजिक
    नहीं है
    अब
    ये।
    “मनीभाई”नवरत्न”

  • पेड़ बुलाते मेघ -हाइकु संग्रह की समीक्षा , हाइकुकार-रमेश कुमार सोनी एवं समीक्षक-डॉ.पूर्वा शर्मा-वड़ोदरा

    पेड़ बुलाते मेघ -हाइकु संग्रह की समीक्षा , हाइकुकार-रमेश कुमार सोनी एवं समीक्षक-डॉ.पूर्वा शर्मा-वड़ोदरा

    प्रकृति का आह्वान : पेड़ बुलाते मेघ- डॉ. पूर्वा शर्मा

    हाइकु
    कविता संग्रह

    गत कुछ वर्षों में हिन्दी हाइकु का क्षेत्र बहुत व्यापक होता जा रहा है । दिन-प्रतिदिन नवीन संग्रहों के प्रकाशन से हाइकु विधा समृद्ध होती जा रही है । ‘पेड़ बुलाते मेघ’ रमेश कुमार सोनी जी का द्वितीय हाइकु संग्रह है । इनके प्रथम हाइकु संग्रह ‘रोली अक्षत’ की भाँति ही इस संग्रह की भूमिका भी हाइकु जगत की सुपरिचित एवं सुस्थापित हाइकुकार डॉ. सुधा गुप्ता जी ने लिखी है । ज्ञात है कि ‘हाइकु’ सत्रह वर्णों से सुसज्जित विधा है । ‘पेड़ बुलाते मेघ’ संग्रह को सत्रह विविध शीर्षकों – शारदे का सहारा, चीखें बेटियाँ, वो क्या है, प्रीत नगर, सृष्टि महके , मौसम के अंदाज़, चिड़िया रानी, मौसम बिगड़ा है, स्वच्छता अपनाएँ, पानी बाज़ार, भोर से साँझ, चौदहवीं का चाँद, उत्सव, रिश्तों की संजीवनी, जीत का बीज, किराये का मकान, दुनियादारी में विभाजित किया गया है । माँ सरस्वती का वंदन करते हुए ‘शारदे का सहारा’ शीर्षक से कवि ने बत्तीस हाइकु प्रस्तुत किए हैं । आज के इस आधुनिक युग में भी कन्या भ्रूण हत्या की समस्या हमारे समाज में फैली हुई है । इस ज्वलंत समस्या से चिंतित हाइकुकार के कुछ विचार हाइकु के रूप में ‘चीखें बेटियाँ’ शीर्षक के अंतर्गत देखे जा सकते हैं –
    गर्भ में डरी / मारो काटो वार्ता से / कन्या बेचारी । (पृ. 17)
    बच्चे ईश्वर का रूप है । बच्चे की तुतली बोली की मिठास माँ के क्रोध को शांत कर देती हैं, लेकिन बाल-मजदूरी से उनका बचपन खत्म हो रहा है । यहीं नहीं आजकल पढ़ाई में चल रही प्रथम स्थान की दौड़ ने बच्चों के जीवन को एक बंद कमरे में सीमित कर दिया है –
    अंको की दौड़ / बच्चे घरों में कैद / मैदान सूने । (पृ. 20)
    प्रेम भाव बहुत निराला है । एक बार जो प्रीत के नगर में बस जाए उसका मन तो बस फिर वहीं बस जाता है, लाख कोशिश कर लो फिर भी प्रीत के नगर से निकलना मुश्किल है । इस तरह के भाव लिए कई हाइकु ‘प्रीत नगर’ में देखे जा सकते हैं –
    पुरानी चिट्ठी / प्यार का शिलालेख / सुगंध ताज़ी । (पृ. 28)
    हमारी सृष्टि बहुत ही सुन्दर है । भौंरे का गुंजन प्रणय तो न जाने कितने गीत सुना जाता है । गुलाब, चंपा, चमेली, जूही, रजनीगंधा गेंदा आदि फूलों के खिलने से सृष्टि का सौन्दर्य बढ़ जाता है एवं कवि की दृष्टि में यह सुन्दर सृष्टि और भी सुंदरतम प्रतीत हो रही है । ‘सृष्टि महके’ शीर्षक के अंतर्गत सृष्टि के सौन्दर्य को निहारते हुए कवि हृदय कह उठता है –
    रात की रानी / ओढ़े श्वेत चुनरी / मस्त कुँवारी । (पृ. 30)
    घास-बिरवा / वर्षा में होते युवा / शरद गौना । (पृ. 32)
    कवि ने बड़ी ही अनूठी उपमा देते हुए तरबूज- कद्दू को पेटू, भुट्टे के सुनहरी बालों को उसकी दाढ़ी कहा है, –
    बड़े पेटू हैं / कुम्हाड़ा-तरबूज / बैठे न उठे । (पृ. 31)
    भुट्टे की दाढ़ी / मीठे दाने सजाती / झरती जाती । (पृ. 31)
    शिशिर पेड़-पौधों की टहनियों से सभी पत्तों को छीन लेता है । बिन पत्तों के पेड़ की इस अवस्था को रमेश जी ने दिगंबर कहा है, रूपक का सुंदर प्रयोग देखिए –
    लिबास देता / दिगंबर पौधों को / बसंत राजा । (पृ. 37)
    नज़र घुमा कर देखें तो कहीं बसंत में खिले नव पल्लव नज़र आते हैं और कहीं ग्रीष्म की मार से तरबूज पालथी मार के रेत में बैठा नज़र आता है । भीषण ताप एवं गर्मी से झुलस रहे सभी पेड़-पौधे बरखा रानी की प्रतीक्षा करते हुए मेघों को आवाज़ दे रहे हैं –
    भिगोने आया / पेड़ बुलाते मेघ / कहे रुको तो । (पृ. 44)
    बरखा में भीगे इस खुशनुमा मौसम को देखकर तो परिंदे भी फुगड़ी खेलकर ख़ुशी मना रहे हैं –
    फुगड़ी खेले / गिलहरी परिंदे / पेड़ गिनते । (पृ. 50)
    फूलों के पानी बचाने के अंदाज़ को तो देखिए –
    ओस बूँदों से / फूल नहाते रोज / पानी बचाते । (पृ. 54)
    अँधेरे को चीर भोर का आगमन कितना सुखद होता है । ऐसा लगता है कि उषा रानी सूर्य का रथ लेकर दिशाओं को जगाने निकली हो । भोर से साँझ के न जाने कितने ही सुन्दर चित्र हम देख सकते हैं । कुछ सुन्दर बिम्ब एवं ‘शर्माती भोर’ में मानवीकरण की छटा कुछ इस तरह है –
    स्वागत भोर / तृणों ने सजा लिए / मोती के थाल । (पृ. 61)
    शर्माती भोर / कुनमुनाती उठी / साँझ उबासी । (पृ. 61)
    फ़ाग-होली, दीपावाली-नववर्ष, राखी आदि विविध त्योहारों के रंग भी इस संग्रह में दिखाई देते हैं, यथा –
    रँगरेज वो / जिसे चाहे रंग दे / कोरा रहा मैं । (पृ. 65)
    हमारी ज़िंदगी विभिन्न रिश्तों से गूँथी हुई है । हर रिश्ता अपने आप में महत्त्वपूर्ण है । माँ की ममता, बेटी की विदाई, देवरानी-जेठानी की नोंक-झोंक, पति-पत्नी का प्रगाढ़ प्रेम अथवा लिव-इन रिलेशनशिप या वृद्धों का कथा-व्यथा इन सभी को हम बड़े करीब से देखते हैं । कुछ रिश्ते बड़े ही प्यारे होते हैं –
    वर्षों के बाद / महाप्रसाद खाया / माँ ने खिलाया । (पृ. 70)
    बेटी खेलती / वक्त संग फुगड़ी / बढ़ती जाती । (पृ. 71)
    किसी भी रिश्ते को निभाना आसान नहीं, कई बार तो स्वयं को झोंककर रिश्तों को बचाना पड़ता है । लेकिन नई पीढ़ी को तो यह और भी मुश्किल लगता है –
    नया संस्कार / युवा पीढ़ी चाहती / रिश्तों से मुक्ति। (पृ. 74)
    मृत्यु शाश्वत है, शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है – इस बात को रमेश जी ने कुछ इस तरह कहा है –
    तन संवारे! / किराये का मकान / आत्मा को जान । (पृ. 79)
    प्रस्तुत संग्रह विभिन्न विषयों से संबद्ध अनेक भावपूर्ण हाइकु लिए हुए है लेकिन प्रकृति विषयक हाइकु बहुत सुन्दर बन पड़े हैं । कवि ने अपने आसपास होने वाली विविध घटनाओं / समस्याओं को अभिव्यक्त किया है और इसलिए कहीं-कहीं सीधे-सादे कथन को हाइकु के वर्णक्रम में पेश करते हुए सपाट बयानी के शिकार हो गए हैं –
    बुरा न सोचे / अच्छे को अच्छा कहें / टाँग ना खींचे । (पृ. 89)
    कुल मिलाकर यह संग्रह एक अच्छा हाइकु संग्रह है, रमेश जी को इस संग्रह के लिए शुभकामनाएँ एवं साधुवाद । भविष्य में भी रमेश जी द्वारा रचित हाइकु का रसास्वदन प्राप्त होता रहे ऐसी कामना करते हैं ।

    हाइकु संग्रह : पेड़ बुलाते मेघ, हाइकुकार : रमेश कुमार सोनी, पृष्ठ : 100, संस्करण : 2018, मूल्य : 310 /- प्रकाशक : सर्वप्रिय प्रकाशन, 1569 प्रथम मंजिल, चर्च रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली – 110006