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  • महामानव अटल बिहारी बाजपेयी पर कविता

    महामानव अटल बिहारी बाजपेयी पर कविता

    महामानव अटल बिहारी बाजपेयी पर कविता

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    मानवता के प्रेणता थे।
                राष्ट के जन नेता थे।
    भारत माँ के थे तुम लाल।
           प्रजातंत्र में किया कमाल।।
    विरोधी भी कायल थे।
             दुश्मन भी घायल थे।।
    पत्रकार व कवि सुकुमार।
            प्रखर वक्ता में थे सुमार।।
    जीवन की सच्चाई लिखने वाले।
         सबके दिलो को जीतने वाले।।
    तुम्हारे मृत्यु पर दुनिया रोया है।
    आसमान मे घने कोहरे होया है।।
    प्रकृति मे कभी -कभी ,
                   हमने ऐसा देखा है।  
    महामानव के रूप में,
                  हमने तुम्हे देखा है।।
    माँ भारती ने अपना  ,
               दुलारा लाल खोया है।
    तम्हारे वदाई पर,
                 पुरी दुनिया रोया है।।

           चिन्ता राम धुर्वे
    ग्राम -सिंगारपुर(पैलीमेटा)

  • मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ

    मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ,

    मैं हर पत्थर में तुम्हीं को देखता हूँ,
    जब आँखों से मोहब्बत देखता हूँ।
    अब जल्दी नहीं कि सामने आओ मेरे,
    मैं तो तस्वीर भी दूर कर देखता हूँ।
    जहां में सब उजाले में देखते हैं तुम्हें,
    मैं तो अंधेरे में तेरा चेहरा देखता हूँ।
    सब तुझमें, खुद को देखना चाहते थे,
    मैं चाहता ही नहीं हूँ, बस देखता हूँ।
    अजीब है न किसी की उल्फ़तें देखना,
    मगर किरदार में, मैं हूँ, तो देखता हूँ।
    मेरी हरकतों ने बतलाया होगा “चंचल”,
    मैं किस कदर ग़ज़ल में उसे देखता हूँ।


    सागर गुप्ता “चंचल”

  • नमन करुँ मैं अटल जी

    नमन करुँ मैं अटल जी

    नमन करुँ मैं अटल जी तुमको नत हो बारम्बार,
    जन्म लिया भारत भूमि पर ,जन नेता अवतार।


    बन अजातशत्रु तुमने मन मोह लिया जन जन का
    भारत माँ पे निछावर हो,अर्पण किया तन मन का
    नमन करुँ हे संघ प्रचारक, कवि हृदय जन नेता।
    राजनीति के प्ररेक पोषक,राष्ट्र भक्ति प्रणेता।


    नमन करे ये कलम लेखनी ,बुझी हुई बती को
    जिसने जीवित कर दी है भारत की थाती को।
    नमन करुँ हे ओज दिवाकर, त्याग तुम्हारा अर्पण
    अश्रु पूरित नैनों से मैं करती सुमन समर्पण

    सरिता कोहिनूर

  • इन गुलमोहरों को देखकर

    कविता/निमाई प्रधान’क्षितिज’

    इन गुलमोहरों को देखकर

    दिल के तहखाने में बंद
    कुछ ख़्वाहिशें…
    आज क्यों अचानक
    बुदबुदा रही हैं?
    महानदी की…
    इन लहरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    शाही अपना भी रूतबा था
    मामाजी के गाँव में!!
    बचपन में हम भी..
    हुआ करते थे राजकुमार..
    सुबहो-शाम घूमा करते थे
    नाना की पीठ पर होके सवार..
    हमारे हर तोतले लफ्ज़ आदेश..
    और हर बात फरमानी थी !
    उनका कंधा ही सिंहासन था
    और आंगन राजधानी थी !
    अपना दरबार तो बैठता था
    वहाँ पीपल की छांव में!
    शाही अपना भी रूतबा था
    मामाजी के गाँव में!!

    क्यों बचपन छटपटाता है?
    पीपल के…
    इन मुंडेरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    ‘क्षितिज’ के पार खिसकती
    नन्हीं ढिबरी लिबलिबाती
    पहाड़ी की उस चोटी पर..
    और चंदा-मामा आ गये हैं
    दूधिली-मीठी-रोटी पर…!
    हम रोते-हँसते-खिलखिलाते
    सब रोटी चट कर जाते थे,
    और ‘चंदा मामा आओ न’
    कहकर गुनगुनाते थे !!

    क्यों नानी के हाथों से
    वो खाना याद आता है ?
    कबूतरों के..
    इन बसेरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    पगडंडियों से सरकते
    सूरजमुखी के खेतों में…
    कहीं बचपन खिलखिलाता था !
    धूल,धुआँ और कोयले से आगे
    एक कांक्रीट की बस्ती में कैद…
    आज यौवन तिलमिलाता है ।

    दशहरे-दिवाली की छुट्टियों में
    क्यों भागता है मन?
    शहर की चकाचौंध से दूर
    पहाड़ी के पार…
    अमराई से झांकते हुए
    इन सवेरों को देखकर !!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!
    *-@निमाई प्रधान ‘क्षितिज’*

  • चिड़िया पर कविता

    थके पंछी

    थके पंछी आज
    फिर तूँ उड़ने की धारले,
    मुक्त गगन है सामने
    तूँ अपने पंख पसारले।

    देख नभ में, नव अरुणोदय
    हुआ प्रसूनों का भाग्योदय,
    सृष्टि का नित नूतन वैभव
    साथियों का सुन कलरव
    अब हौंसला संभाल ले ।

    शीतल समीर बह रहा
    संग-संग चलने की कह रहा,
    तरु शिखा पर झूमते
    फल फूल पल्लव शोभते
    त्याग दे आलस्य निद्रा
    अवरुद्ध मग विकास का
    आज अब तो तूँ खोज ले।

    सरिता की बहती धारा
    झरते निर्झर का नजारा,
    धर्म उनका सतत बढना
    जब तक ना मिले किनारा।
    व्यवधान की परवाह न कर
    बढने का मंत्र विचार ले।

    टूट जायेंगे अड़चनों के शिखर,
    संशय चट्टानें जायेंगी, बिखर
    मुस्कुराती मंजिलों का काफिला,
    सामने आ जायेगा नजर ।
    बढ खुशी से मिली हुई
    सौगत को संभाल ले।
    तूँ अपने पंख पसार ले

    पुष्पा शर्मा”कुसुम”