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  • पशु पक्षियों की पाठशाला ( कविता )

    पशु पक्षियों की पाठशाला ( कविता )


    सुबह हुई है देखो भाई,
    पशु पक्षियों ने कक्षा लगाई,
    कौवा बोला ‘क’ से मैं,
    कोयल बोली ‘क’ से मैं,
    कबूतर बोला ‘क’ से मैं,
    ख से मैं हूँ खरगोश,
    बोला सब हो जाओ खामोश,
    न करो तुम आपस में लड़ाई,
    हमने अपनी अपनी पहचान बनाई,
    ‘ग’ से बोले गधे भाई,
    एकता में है शक्ति समाई
    इतने में आये घोड़े महाराज, सुंदर कपडे पहन कर साज,
    आपस में मत उलझो भाई,
    मिलजुल कर हम करेंगे पढ़ाई,
    रानी,रोशन हमसे सीखेंगे झूम झूम
    पढ़ लिख कर उनका निखरेगा रूप,
    घूम घूम कर हम पढ़ाई का महत्व समझायेंगे .,
    हर बच्चे को पाठशाला भिजवाएंगे।।

    माला पहल मुंबई से

  • मैंने चाहा तुमको हद से -मनीभाई

    मैंने चाहा तुमको हद से -मनीभाई

    मैंने चाहा तुमको हद से,
    कोई खता तो नहीं।
    मैंने मांगा मेरे राम से
    कोई ज्यादा तो नहीं।
    तू समझे या ना समझे
    तू चाहे या ना मुझे चाहे
    इसमें कोई वादा तो नहीं।

    तेरी भोली बातें सुनूं,
    या देखूं ये निगाहें
    कैसे संभालूं दिल को,
    कैसे छुपाऊं आहें।
    तेरे पास पास रहूं,
    तेरे साथ साथ चलूं
    इसकी कोई वजह तो नहीं।

    तुम मेरे कल हो,
    और आज हों अभी,
    तुमसे मेरे काम हो,
    आराम हो अब सभी।
    तुमसे हर बात कहूं ,
    पूरे दिन सात कहूं।
    तुझे ना सोचूं कोई
    ऐसी जगह तो नहीं।

    मनीभाई नवरत्न

  • मेरी जीवन यात्रा

    मेरी जीवन यात्रा

    मेरी ये यात्रा
    मुट्ठी बंद शून्य से
    अशून्य की ओर।
    जैसे ही नैन खुले,
    चाहिए खिलौने।
    और एक चमकता भोर।

    पाने की तलाश।
    जिसकी बुझे ना प्यास।
    ये कुछ पाना ही बंधन है ।
    पर जो मिल रहा
    मन कैसे कह दे
    सब धोखा है, उलझन है।

    ये जो घोंसला तिनकों का
    मेरी आंखो के सामने।
    जिसमें आराम है सुरक्षा है।
    ठंड में गरम
    और गर्म में शीतल ।
    लगता बहुत अच्छा है।

    मेहनत से जुटा
    जो कुछ भी
    लगती हमारी उपलब्धि ।
    पर जो बांट न सके
    उसका क्या वजन
    वो मात्र एक रत्ती।

    ये क्या अर्जन?
    ये क्या धन ?
    धिक ऐसा जीवन
    सब व्यर्थ गया।
    जो सौंप ना पाऊं मूल्य
    भावी जन को
    तो समझो सब अनर्थ गया।

    समय और स्वेद से
    जुटाए गये दो सिक्के।
    फेंके नहीं जाते आसानी से।
    घोंसला बना जो सुंदर
    पसीना है जिसमें
    बना तो नहीं महज बानी से।

    मुझे आभास था
    मैं खुश हूं।
    पर मेरा ज्ञान थोथा और उथला।
    जब जब डाल हिले
    आक्रांत होता भय से
    टिक ना पायेगा मेरा घोंसला।

    क्या यही जीवन का स्वाद
    मैंने जी भर खाया
    कराहता पेट फूलन से।
    समझा था स्वयं को
    मिश्री का दाना
    क्यों तरसता रह गया घुलन से।

    अच्छा होता
    उड़ जाता घोंसला
    बताता क्या होता जीवन?
    भूलभुलैया से मुक्त होता
    उड़ता बेबसी तोड़ के
    पा तो जाता मुक्त गगन।

    मैं टिकने के चक्कर में
    नापना ही भूल गया
    अपना ये सफर।
    निरर्थक बातों में
    जश्न ही मनाता
    इसीलिए दूर ही रह गया शिखर।

    अब मेरी यात्रा
    अशून्य से शून्य की ओर
    फिर मुड़ चला है।
    जैसे शाम की बेला में
    पंछी थक हार के
    वृक्ष को आ चला है।

    मनीभाई नवरत्न

  • क्रिकेट पर कविता| POEM ON CRICKET IN HINDI

    हमारे देश में घर-घर में क्रिकेट मैच देखा जाता है क्रिकेट मैच के दौरान टीवी देखते वक्त घर का माहौल खास हो जाता है। पति पत्नि का नोक झोंक और क्रिकेट का वर्णन करती हुई मनीभाई का यह कविता जरूर पढ़िए।

    क्रिकेट पर कविता| POEM ON CRICKET IN HINDI

    क्रिकेट पर कविता| POEM ON CRICKET IN HINDI

    क्रिकेट का खेल है, रोमांच से भरपूर।
    दिल धड़कने को , हो जाता है मजबूर ।।

    चीखें निकलती जब खिलाडी होता आउट।
    और मन में छा जाता , बेचैनी का क्लाउड।

    छक्के लगे ताली बजी, आंखे तरेरे बीवी।
    रिमोट छीनकर बोले, मैं अब देखूंगी टीवी।।

    बोलती सदा, इस क्रिकेट ने किया नुकसान।
    लगता है इस देश के लिए , ये धर्म से महान।

    मैं कहूं कुछ काम नहीं, टीवी देखने के सिवा।
    एक ही झटके में वो हो जाती मुझसे खफा।।

    उसी मौके एक खिलाड़ी ने फिर मारा छक्का।
    एक बार फिर उसको लगा जोरों का धक्का।।

    खेल के रोमांच देख पूछ लिया कहां का मैच।
    उसी समय विरोधी खिलाड़ी ने लपका कैच।।

    मैं और क्या करता, मेरे रंग में भंग पड़ गया।
    क्रिकेट देखते देखते , कब उससे लड़ गया ?

    भारत पाक के मैच जैसे, अब है गहमागहमी।
    लाइट के चले जाने से, बढ़ गई और गरमी ?

    लाइट के आने से, फिर मन में उल्लास छाया।
    बीवी का गुस्साया चेहरा भी, मुझे अति भाया।

    रिमोट दे बीवी को, बैठ गया मैं उससे सटकर।
    उसने भी क्रिकेट देखी, रिमोट पकड़े कसकर।।

    परिवार संग क्रिकेट देखने का अलग ही मजा है ।
    जीते तो घर में पार्टी, और हारे तो लगता सजा है।

    मनीभाई नवरत्न

  • गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

    गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

    hindi poem on Animals
    जानवरों पर कविता

    पैरा भूँसा ,कांदी-कचरा,कोठा कोंन सँवारे,
    हड़ही होगे ,बछिया कहिके रोजेच के धुत्कारे।।

    बगियाके बुधारू ,छोड़िस,
    गउधन आन खार।
    बांधे-छोरे जतने के,
    झंझट हे बेकार।।

    बछिया आगे शहर डहर अउ
    पारा-पारा घुमय।
    कोनो देदे रोटी-भात
    लइका मन ह झुमय।।

    देखते-देखत बछिया संगी
    घोसघोस ले मोटागे।
    चिक्कन-देहें ,दिखन लागय
    मन सबके हरसागे।।

    आना होगे एक दिन संगी
    बुधारू के हाट।
    देख परिस ,बछिया ल
    लालच करिस घात।।

    धरे-धरिस बछिया ल
    बछिया ह लतियारे।
    पुचकारय त बुधारू ल
    बछिया मुड़ म मारय।।

    आँखी डबडब होवत रहय
    गउधन के संगवारी।
    मन म गुनत-सोंचत रहय
    ये कइसन रखवारी…
    अउ ये कइसन गद्दारी….???


    धनराज साहू बागबाहरा