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  • कौन आवाज उठाए – पंडित अमित कुमार शर्मा

    कौन आवाज उठाए – पंडित अमित कुमार शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बदल गई जिंदगी देश के
    उगते सूरज की
    लगा ग्रहण अब उनके उम्मीद की
    सारे सपने टूट गए मां बाप की।

    चार दीवारों के बीच हर पल
    किताबो के साथ जीते हैं
    हर रातों को वो दिन समझते है
    एक एक पैसे से सफ़लता की
    कहानी लिखते है।

    देश को शिखर तक ले जाने में
    हर खुशी अपनी लूटाते है
    घर के सारे सुख छोड़ कर
    हर दिन कलम चलाते हैं।

    दुनियां मे कामयाबी हासिल करने में
    जवानी बिता देते है
    भारत मां को हर दिशा में
    सम्मान दिलाते है।

    जब आज अपने हक के लिए बोले
    मेहनत कर अपने अधिकार मांगे
    चला पर जम कर हम लाठी
    जब गलत के खिलाफ आवाज उठाए।

    देश के राजनीति का जरिया
    बन गए हम
    किस से कहें अपने दर्द
    यहां सब तानाशाह बन गए
    मेरे सपनों का कोई दाम नही
    सब कुर्सी के लालच में पड़े।

    पढ़ाई छोड़ दे अब हम सब
    करे अब नेताओं की गुलामी
    घरवाले आस लगाए बैठे
    बेटे की लगेगी सरकारी नौकरी।

    कब होगा हम सबका सपना साकार
    कब तक चलती रहेगी हम पर लाठियों की बौछार
    हम देश के लिए पढ़ते हैं
    कब मिलेगा हमें अपना अधिकार।

    मां-बाप के मेहनत की
    कैसे कर्ज उतारे
    घर में सब भूखे रहकर
    हमको पढ़ाई लिखाये।

    कहां लगेगी नौकरी हमारी
    यहां तो घर में घुसकर
    चलाते लाठी
    कौन आवाज उठाएगा
    सब खा लिए हैं पैसों की थाली।

    हम अकेले पड़े हैं छात्र
    किस पर भरोसा करे अब
    हर पग पर होने लगी दलाली
    किस से कहें हाल अब।

    अपने दर्द को अब हम शब्दों में
    बयां कर रहे है
    कोई तो हमारी मदद करें
    कवि अमित संदेश लिख रहे है।

    पंडित अमित कुमार शर्मा
    प्रयागराज उत्तर प्रदेश

  • राम का आना /अजय विश्वकर्मा

    राम का आना /अजय विश्वकर्मा

    राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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    राम का आना /अजय विश्वकर्मा

    बालक रूप में राम का आना,
    सतयुग में धरती का उद्धार कराना।
    अधर्मी निशाचरों का पाप मिटाया,
    संत महात्माओं का कल्याण कराया।


    अयोध्या के इक्ष्वाकुवंश का मान बढाया,
    संसार को मर्यादा का पाठ पढ़ाया ।
    श्रापित शिला बनी अहिल्या को मोक्ष दिलाया,
    निर्दोष पतिव्रता सती का कलंक मिटाया।


    जातपात ऊंच-नीच का भेद हटाया,
    सभी जीवों को अपना संबंधी बनाया।
    लंका चढ़ाई कर जानकी को छुड़ा लाए ,
    अहंकारी अंधे दशानन का आतंक मिटाए।


    हे कमलनयन इस कलियुग में आए,
    मानवजाति को दुराचारियों से बचाएँ ।
    चांद सी शीतलता, कोमलता, उदारता,

    प्रेमलता आपको प्राप्त हो ।

    आप पर हो धन की वर्षा सुख समृद्धि

    इस शरद पूर्णिमा की रात को ।

    प्रभु आप पर सोमरस अमृत बरसाए ,

    अपने जीवन में सर्वदा आप सुख ही सुख पाये।

    मैं आपकी सेवा करूं तन, मन और धन से

    ऐसा दुर्लभ क्षण मुझे प्राप्त हो।

  • पोस्टर ब्वाय लगते हैं -अनिल कुमार वर्मा

    पोस्टर ब्वाय लगते हैं -अनिल कुमार वर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बैनर छाप लोग नेता नहीं, पोस्टर ब्वाय लगते हैं -अनिल कुमार वर्मा


    जब से प्लास्टिक फ्लेक्स का चलन हुआ है तब से इसका उपयोग बहुत ज्यादा हो गया है। जन्मदिन, उत्सव, त्यौहार, स्वागत और नववर्ष की बधाई के बहाने आज तथाकथित नेता अपने बड़े बड़े फोटो लगे हुए बैनर लगवा रहे हैं। इस तरह के फ्लेक्स प्लास्टिक से तैयार हो रहे है। इसमें इस्तेमाल होने वाले रंग पर्यावरण के लिए हानिकारक होते है। ये बैनर की उम्र बहुत छोटी होती है। ये कचरे बनकर गंदगी का शक्ल ले लेती है। ऐसे फ्लेक्स पंद्रह से बीस रुपये फिट में मशीनों से बनाए जाते है। फ्लेक्स कुछ मिनटों, कुछ घंटों या कुछ दिनों के लिए ही लगाए जाते है, जो पैसों की बर्बादी है।

    लखि सुवेष जग बंचक जेऊ, वेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ।।
    उघरहिं अंत न होइ निबाहू, कालनेमि जिमी रावन राहू।।


    पर आजकल के युवाओं में पोस्टर ब्वाय बनने का शौक चढ़ा है। ज्यादातर ये वे लोग होते हैं, जिन्हें न समाज सेवा से मतलब है, न धर्म कर्म से और न ही इन लोगों ने कोई ऐसा काम किया है जिससे देशवासियों को गर्व हो। ये ऐसे लोग हैं, जो सामने भेंट हो जाने पर बड़े बुजूर्गों को शिष्टाचार भी नहीं करते। अपनी उम्र के लोगों से ये रे, बे, के साथ अभिवादन करते हैं। हाँ फ्लेक्स में बधाई के ऐसे शब्द लिखाते है, जैसे इनसे महान शिष्टचारी कोई नहीं है। सामान्य जीवन में लोगों के हाथ तोड़ने वाले चेहरे भी फ्लेक्स में हाथ जोड़े हुए दिखाई देते है। काम तो काम जिनकी शक्ल भी अशोभनीय है, उनकी तस्वीरे फ्लेक्स में इतने आकर्षक दिखाई पड़ते है कि लगता है, ये फिल्मी सितारे है।

    धार्मिक फ्लेक्स में लोगों की फोटो देखकर लगता है कि, यही सबसे बड़े भक्त हैं। गणेशोत्सव, दुर्गोत्सव आदि में पंडाल से भी ज्यादा बड़े बड़े फ्लेक्स लगाए जाते है। ये बैनर छाप लोग सोचते होंगे कि फ्लेक्स में फोटो सजाकर वे नेता बन गए। समाज सेवक बन गए। हीरो बन गए। मगर सच यह है कि कोई फ्लेक्स बनवा लेने से नेता नहीं हो जाता। नेता वह होता है, जो स्वार्थ के लिए नहीं लोक कल्याण के लिए सतत काम करते है, जो जनहित में अन्याय के खिलाफ आगे आए। जो सबको साथ लेकर चले। जो फिजुलखर्ची न हो। जो सादगी पसंद हो। जो आडंबरहीन हो। जो प्लास्टिक की बैनर में नहीं जनता की दिलो राज करते हो, वहीं नेता है।


    आज के राजनीतिक कार्यक्रमों में कार्यक्रम स्थल पर चापलूस किस्म के लोग इतने अधिक फ्लेक्स लगा देते हैं कि, मंच में विराजित अभ्यागतों को फ्लेक्स के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता । सांसद, मंत्री, विधायक के रोड सो में सड़क के दोनों किनारे, चौक चौराहों में फ्लेक्स का पहाड़ खड़ा कर दिया जाता है। जैसे घोड़े की आँखों में पट्टा लगा दिया जाता है, वह सीधा ही देख पाता है। ठीक वैसा ही फ्लेक्स के परदे नेताओं की आँखों को ढँक लेते है। ताकि मंच से नेता सिर्फ अपने चमचो को देख सके। कई बार फ्लेक्स लगाने के लिए जगह के नाम पर विवाद हो जाता है। ऐसे ही नेताओं के स्वागत के लिए, पोस्टरब्वाय बड़े ललाईत होते है। मंच में नेता के आसपास खड़े होने के लिए ऐसे लोग भारी मशक्कत करते है। अगर इन लोगों के साथ नेता जी ने सेल्फी खिंचा लिया, तो चापलूस लोग ऐसा महसूस करते हैं, मानो उन्हें अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त हो गया।


    आजकल की सरकारे भी कई योजनाओं के प्रचार प्रसार में अपनी तस्वीरे लगवा रहे है। ऐसा लगता है कि ये नेता अपने घर के पैसों से फ्लेक्स और होर्डिंग लगवा रहे है। ये ऐसा कुछ जताना चाहते हैं मानो ये नहीं होते तो, वे काम ही नहीं होते। आज के नेताओ को पोस्टरगिरी का नशा इतना अधिक हो गया है कि, वे मंदिर और भगवान तक को अपने विज्ञापन का साधन बना रहे हैं। सरकारी पैसे का उपयोग व्यक्तिगत प्रचार के लिए किया जाना देश के पैसों का दुरुपयोग है।


    फ्लेक्स का धुंआधार प्रयोग दिखावा, फिजुलखर्ची, पर्यावरण का नुकसान तो है ही, साथ ही इससे उन हुनरमंद चित्रकारों का रोजगार छिन गया, जो पेंटिंग करके अपना जीवनयापन करते थे। पहले कपड़ों में बैनर बनाए जाते थे, जो टिकाउ होते थे। जिसमें हाथों की कला दिखती थी। देखने वाले पूछते थे कि किस पेंटर ने बैनर बनाया है। हाथों से विज्ञापन के बोर्ड भी चित्रकार ही बनाते थे। आज एक आदमी लाखों का प्रिंटर लगाकर सैकड़ों का रोजगार लूट लेता है। कलाकारों को हाथों का काम नहीं मिलने से कला भी उनसे दूर हो रही है। फ्लेक्स के इस तरह से फिजुल उपयोग पर रोक लगनी चाहिए। साथ ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में अनावश्यक फ्लेक्स पर पाबंदी हो। अगर इंसान के परिश्रम, व्यवहार, संबंध अच्छे होंगे तो उन्हें फ्लेक्स बैनर छपवाने की कतई आवश्यकता नहीं है।
    ✍🏽
    अनिल कुमार वर्मा
    सेमरताल

  • लाला लाजपत राय -सन्त राम सलाम

    लाला लाजपत राय -सन्त राम सलाम

    लाला लाजपत राय – सन्त राम सलाम द्वारा रचित

    हाथ जोड़ने से नहीं मिलेगा,
    न भीख और न कोई अधिकार।
    आजादी के लिए बनना होगा,
    गरम लोहा से बनकर हथियार।।

    लाल बाल पाल गरम दल के नेता,
    भारतीय क्रांतिकारी में नाम गिनाए।
    पुलिस अफसर सांडर्स को गोली से,
    राज गुरु व भगतसिंह ने मार गिराए।।

    गुलाब देवी थी लाजपत राय की माता,
    जिसने भारत को वीर सपूत दिया।
    पंजाब केसरी वीर बनकर के भारत में,
    गरम दल के नेता लाल नाम से मशहूर किया।।

    बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल,
    आजादी के दीवाने विश्वासी सहभागी बने,
    स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार से।
    क्रांतिकारी बन कर अंग्रेजों के सामने तने।।

    साहित्य लेखन और पत्रकारिता में रूचि,
    देश भक्ति से ओत-प्रोत दिग्गज नेता बने,
    आजादी दिलाने हेतु गुलाम भारत को,
    साइमन कमीशन के विरोध में मैदान में तने।।

    भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में लाला जी,
    स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विख्यात हुए।
    पंजाब नेशनल बैंक के संस्थापक और,
    लक्ष्मी बीमा कंपनी के स्थापना भी किए।।

    लाठी चार्ज में बुरी तरह से घायल हुए,
    जब विरोध में अडिग थे साइमन कमीशन के।
    17 नवम्बर 1928 को विदा लिए दुनिया से,
    क्रान्तिकारियों के हाथों में छोड़े बिना मिशन के।

    ✍️सन्त राम सलाम
    भैंसबोड़(बालोद),छत्तीसगढ़।

  • मैं हिंदुस्तान हूं – शशि मित्तल “अमर”

    मैं हिंदुस्तान हूं – शशि मित्तल “अमर”

    tiranga


    लहर-लहर लहराए तिरंगा
    बीच अशोक चक्र महान हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं………..

    तीन रंगों से सजा तिरंगा
    श्वेत,हरा,केसरिया की शान हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं…………..

    भगत, सुभाष,आजाद की धरती
    वीरांगना रानी झांसी की पहचान हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं…………….

    हिंदू -मुस्लिम,सिख- ईसाई
    आपास में हैं सब भाई-भाई
    अलौकिक भाईचारे की जान हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं…………..

    हिमालय खड़ा पहरेदार सा
    गंगा,यमुना,सरस्वती का धाम हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं…………….

    12 ज्योतिर्लिंगों से पूजित धरा
    कंकर-कंकर मेंभी शंकर अवतार हूं
    हां मैं हिंदुस्तान हूं…………….

    लिपट तिरंगे में आ जाते शहीद
    फिक्र नहीं निज प्राणों की करते
    मैं वो बलिदान हूं।
    हां मैं हिंदुस्तान हूं………….

    यहां कल-कल,छल-छल बहती नदियां
    जहां पूजे जाते पेड़ और गौ माता
    मैं वो देश महान हूं!
    हां मैं हिंदुस्तान हूं………….

    शशि मित्तल “अमर”
    मौलिक एवं स्वरचित