गणपति अराधना- कवयित्री क्रान्ति
गणपति अराधना विघ्नहारी मंगलकारीगणपति लीला अनेक-2 सज रहे हैं मंडप प्रभुबज रहे हैं देखो तालझूम रहे हैं भक्त तुम्हारेप्रभु कर उनका उद्धारविघ्नहारी…………….गणपति…………..2 हर घर में तेरी छवि प्रभुतू ही सबका तारण हारदुखियों की झोली भर देप्रभु कर इतना उपकारविघ्नहारी……………..गणपति……………..2 जल रहे हैं दीपक प्रभुमिट रहा है अंधकारतेरे ही गुणगान से आजगूंज रहा देखो संसारविघ्नहारी…………गणपति…………….2