अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही ! सूर – कबीरा के “धरा” में,देखो “बेटी” जुल्म सह रही !!
यहाँ – वहाँ, जाऊँ – कहाँ, पग – पग में बैठा दानव है ! किसको मैं असुर कहूँ” मां”, किसको मानूंगी मानव है !! इंसानियत अब नजर न आता , हैवानियत “बेटी” सह रही ! अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!
अब नहीं प्रेमभाव नयन में,बहती रगों में क्रूरता है ! हैवान विचरण करे जहाँ में, दरिंदे पहरा करता है !! इन शैतानों की शिकार “बेटी”, देखो कैसे सह रही ! अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!
न भेजो मुझे इस “मही”में, मां कोख में मुझे रहने दो ! न सह सकूँ दुख कलिपन में, “भू”बंजर “बेटी” बिना रहने दो !! सह न सकूँ “मां” अब तेरी आंसू , अरजी “बेटी” ये कह रही ! अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!