दर्द के रूप कविता
स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।
परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है।
निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,
हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है।
धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,
हैं धरते देह ईश्वर,पाप-मुञ्चित लोक होता है।