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  • दर्द के रूप कविता

    दर्द के रूप कविता

    स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।
    परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है।

    निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,
    हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है।

    धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,
    हैं धरते देह ईश्वर,पाप-मुञ्चित लोक होता है।

     
    —– R.R.Sahu
  • तेरे लिए पर कविता- R R SAHU

    तेरे लिए पर कविता

    दिन की उजली बातों के संग,मधुर सलोनी शाम लिखूँ।
    रातें तेरी लगें चमकने,तारों का पैगाम लिखूँ।।

    पढ़ने की कोशिश ही समझो,जो कुछ लिखता जाता हूँ।
    गहरे जीवन के अक्षर की थाह कहाँ मैं पाता हूँ।।

    है विराट अस्तित्व मगर मेरी छोटी मर्यादा है।
    इसको ही सुंदर कर पाना समझो नेक इरादा है।।

    मेरी बातों में खोजो तो,बस इतना ही पाओगे।
    अपनी खोज चला हूँ करने,क्या तुम भी अपनाओगे।।

    मंजिल जिसको समझा था मैं पाया तो जाना पथ है।
    दिशा-दशा अनभिज्ञ दौड़ता जाता यह जीवन-रथ है।।

    नहीं कहा जा सकता मुझसे औरों का कर्तव्य कभी।
    अपना कर्म करें खुद निश्चित जीवन होगा भव्य तभी।

    ——–R.R.Sahu

  • जिंदगी पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जिंदगी पर कविता

    आज सुबह-सुबह
    मित्र से बात हुई
    उसने हमारे
    भलीभांति एक परिचित की
    आत्महत्या की बात बताई
    मन खिन्न हो गया

    जिंदगी के प्रति
    क्षणिक बेरुखी-सी छा गई
    सुपरिचित दिवंगत का चेहरा
    उसके शरीर की आकृति
    हाव-भाव
    मन की आँखों में तैरने लगा

    किसी को जिंदगी कम लगती है
    किसी को जिंदगी भारी लगती है
    जिंदगी बुरी और मौत प्यारी लगती है

    जिंदगी जीने के बाद भी
    जिंदगी को अहसास नहीं कर पाते
    मिथ्या रह जाती है जिंदगी

    जिंदगी मिथ्या है तो–
    मिथ्या-जिंदगी कठिन क्यों लगती है ?
    मिथ्या-जिंदगी से घबराते क्यों हैं ?

    पल भर में आती है मौत
    इतनी आसान क्यों लगती है?
    इतनी सच्ची क्यों लगती है ?

    भागना छोड़ो,सामना करो
    मिथ्या जिंदगी को आकार दो
    मिथ्या जिंदगी को सार्थक बनाओ

    जिंदगी खिलेगी
    जिंदगी महकेगी
    मरने के बाद
    अमर होगी जिंदगी

    मौत को अपनाओ मत
    वह खुद अपनाती है
    अपनाओ जिंदगी को
    जो तुम्हें अमर बनाती है।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479
  • बेटी की व्यथा पर कविता -दूजराम -साहू

    बेटी की व्यथा पर कविता

    beti mahila
    बेटी की व्यथा

    करूण रस –

    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !
    सूर – कबीरा के “धरा” में,देखो “बेटी” जुल्म सह रही !!

    यहाँ – वहाँ, जाऊँ – कहाँ, पग – पग में बैठा दानव है !
    किसको मैं असुर कहूँ” मां”, किसको मानूंगी मानव है !!
    इंसानियत अब नजर न आता , हैवानियत “बेटी” सह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    अब नहीं प्रेमभाव नयन में,बहती रगों में क्रूरता है !
    हैवान विचरण करे जहाँ में, दरिंदे पहरा करता है !!
    इन शैतानों की शिकार “बेटी”, देखो कैसे सह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    न भेजो मुझे इस “मही”में, मां कोख में मुझे रहने दो !
    न सह सकूँ दुख कलिपन में, “भू”बंजर “बेटी” बिना रहने दो !!
    सह न सकूँ “मां” अब तेरी आंसू , अरजी “बेटी” ये कह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    दूजराम साहू

    निवास -भरदाकला
    तहसील- खैरागढ़
    जिला- राजनांदगांव (छ.ग.)

  • बेटियों के नसीब में कविता- डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

    बेटियों के नसीब में कविता


    बेटियों के नसीब में, जलना ही है क्या
    काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या

    विषम परिस्थितियों में ढलना ही है क्या
    सबके लिए खुद को बदलना ही है क्या

    धोखा छल-प्रपंच में छलना ही है क्या
    पत्थर दिल के वास्ते पिघलना ही है क्या

    अधूरी मर्जियाँ हाथ मलना ही है क्या
    हर क्षण चिंताओं में गलना ही है क्या

    बेटियों के नसीब में जलना ही है क्या
    काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’