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  • करना हो तो काम बहुत हैं

    करना हो तो काम बहुत हैं

    नेकी के तो धाम बहुत हैं
    करना हो तो काम बहुत हैं।
    सोच समझ रखे जो बेहतर
    उनके अपने नाम बहुत हैं।
    प्रेम रंग गहरा होता है
    रंगों के आयाम बहुत हैं।
    गुण सम्पन्न बहुत होते हैं
    वैसे तो बदनाम बहुत हैं।
    इश्क़ खुदा से सीधी बातें
    मन हल्का आराम बहुत है।
    लक्ष्य एक पर पंथ अलग हैं
    सभी में ताम झाम बहुत हैं।
    ✒कलम से
    राजेश पाण्डेय अब्र
      अम्बिकापुर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • हमारी भाग्य विधाता मां

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    हमारी भाग्य विधाता मां

    ना शब्द है ना कोई बात,
    जो मां के लिए लिख पाऊं,
    उसके चरणों में मैं,
    नित-नित शीश झुकाऊं,
    जग जननी है मां,
    हमारी भाग्य विधाता मां।
    गीली माटी की तरह ,
    वो हमको गढ़ती है,
    संस्कार की रौशनी ,
    वो हममें भर्ती है,
    कौन करेगा ये सब,
    मां ही तो करती है।
    कढ़ी धूप में शीतल छाया,
    हरदम रहता मां का साया,
    उसकी गोद में आकर ,
    जन्नत का सुख मैंने पाया,
    इतनी ममता लुटाती है,
    और कौन ,मां ही करती है।
    ममता की बरसात है वो,
    प्यार की वो प्यास  है वो,
    अपने बच्चों की खुशियों
    की मुस्कान है वो,
    मां तो मां है हमारे ,
    जीवन की आधार है वो
    कितनी रातें कितनी सपनों,
    का उसने त्याग किया,
    तब जाकर उसने हमारे ,
    सपनो को साकार किया,
    उसका मान और सम्मान करें,
    चाहे कितना बलिदान करें ,
    कभी भी ये कर्ज उतार,
    नहीं पायेंगे,
    उसकी श्रद्धा से शीश  हम ,
    झुकाएगे,
    मां तो सिर्फ मां है
    नित -नित शीश झुकाएंगे।
    पूनम दूबे अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
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  • समय -देवता

    समय -देवता

    देव,दनुज,नाग,नर,यक्ष,सभी
    नित मेरी महिमा गाते हैं।
    सत्ता सबसे ऊपर मेरी,
    सब सादर सीस झुकाते हैं।।1
    देव मैं महान शक्तिशाली,
    हूँ अजर,अमर,अविनाशी मैं।
    सर्वत्र मेरा ही शासन है,
    नित प्रवहमान एकदिशीय मैं।।2
    मेरी प्रवाह के साथ-साथ,
    जो अपनी कदम बढ़ाते हैं।
    पुरुषार्थी,परिश्रमी जन ही,
    जीवन-फल लाभ उठाते हैं।।3
    पूजते जन श्रद्धा-भक्ति से ,
    हरदम फल पाते मन सन्तोष।
    अति शीघ्र रीझ मैं जाता हूँ,
    जैसे देवों में आशुतोष।।4
    हैं ऋद्धि-सिद्धि मेरी दासी,
    चाकरी बजातीं हैं नित प्रति।
    मंगल करतीं हरदम उनका,
    निष्ठा रखते जो मेरे प्रति।।5
    स्वर्गस्थ कल्पवृक्ष,कामधेनु,
    इच्छित दाता हैं देवों का।
    देते नत मेरी आज्ञा से
    फल,कर्मशील को कर्मों का।।6
    नवनिधि-अष्टसिद्धियों का भी
    दाता मानव मुझको जानो।
    साधक पाते फल पूज मुझे,
    तुम ब्रह्मगिरा अमृषा मानो।।7
    हूँ रौद्ररूप भैरव मैं ही,
    काल का काल मैं महाकाल।
    देता हूँ दंड निकम्मों को,
    जो कर्मच्युत और हैं अलाल।।8
    जो मेरा रखते ध्यान नहीं,
    करते रहते नित्य निरादर।
    खर्राटे भर सोते रहते,
    विचरते पशुवत जिंदगी भर।।9
    अलसाये,अकर्मठ ही यहाँ,
    किस्मत का रोना रोते हैं।
    विधि हो जाते उनके विरूद्ध,
    निकम्में जन मुझे खोते हैं।।10
    खोकर मुझको रोते हैं जन,
    अवसर की फिर से चाह लिये।
    सर धुनते,मिंजते हैं हाथ,
    क्यों तब हमनें यह नहीं किये??11
    अवसर मिले नहीं बार-बार?
    रुष्ट समय-देवता हो जाते।
    अवज्ञा कर माया में भूले,
    वे सफल कहो कब हो पाते??12
    युगल किशोर पटेल
    सहायक प्राध्यापक(हिन्दी)
    शासकीय वीर सुरेंद्र साय महाविद्यालय गरियाबंद
  • तू ही मेरा प्रारब्ध है माँ”

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    तू ही मेरा प्रारब्ध है माँ”

    वंदन अर्चन हे जन्मदायिनी
    सबसे  प्यारा  शब्द है   माँ
    पहचान मेरी तेरे आँचल से
    तू  ही  मेरा  प्रारब्ध  है माँ l
    तू ही  मेरी पहली धड़कन  है
    तू  ही मेरी अंतिम साँस है  माँ
    महिमा मंडन तेरा कर न पाऊँ
    जीवन का दिव्य प्रकाश है माँ l
    अस्तित्व दिलाने को धरती पर 
    माँ   सहस्रों  कष्ट उठाती है
    कुछ लिखने बैठूं तुझ पर तो
    ये लेखनी मेरी रुक जाती है l
    शब्दों में बांधना मुश्किल है माँ
    तेरी ममता, समर्पण प्यार को
    नतमस्तक नमन करता ईश्वर
    तेरे  करुणा के भण्डार को l
    त्याग,स्नेह, कष्टों में खिलना
    तेरा  आचरण  व्यवहार  है
    संतान ही तेरी आशा है माँ
    तुझसे  ही  घर  संसार  है l
    पीड़ा दुख  में जब होती माँ
    हमारे सुख साधन है जुटाती
    अश्क़ हमारे खुद पीकर माँ
    मीठे  सपनों में  है  सुलाती  l
    कर्तव्यपरायण, कर्मनिष्ठ हो
    धरती सा धैर्य है रखती माँ
    धूप में बरगद की छाया सी
    जीवन सुरभित है करती माँ l
    प्यार भरा  है हृदय में  तेरे
    असीम,अनंत,अथाह,अपार
    संस्कारों की खान है माँ तू
    दामन में  तेरे भरा  दुलार l
    त्याग तपस्या की  तू मूरत
    जीवन  का है तू दूजा नाम
    गीता,कुरान,बाइबल भी तू
    माँ  तू  ही  है  चारों धाम l
    ये  जीवन तेरी  देन है माँ
    जन्म  मिला तुझे  पाकर
    ममता का मीठा झरना है तू
    माँ तू सुख सरिता का सागर l
    कुसुम लता पुन्डोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
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  • माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं।
    भू से भारी वात्सल्य तेरा, जिसका कोई तोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    हो आँखों से ओझल लाल यदि, पड़े नहीं कल अंतर में।
    डोले आशंकाओं में चित, नौका जैसे तेज भँवर में।
    लाल की खातिर कुछ भी सहने मे, तेरे मन में गोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    खुद गीले में सो कर भी, सूखे में तू उसे सुलाए।
    देख उपेक्षा चुप से रो लेती, ना सपने में भी उसे रुलाए।
    सुनती लाख उलाहने उसके, फिर भी मन में झोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    लाल की खातिर सारे जग से, निशंकोच वैर तू ले लेती।
    दो पल का सुख उसे देने में, अपना सर्वस्व लुटा देती।
    तेरे रहते लाल के माथे, बल पड़ जाए ऐसी पोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    रूठे तेरा लाल कभी तो, मुँह में कलेजा आ जाता।
    एक आह उसकी सुन कर, तम आँखों आगे छा जाता।
    गिर पड़े कहीं वो पाँव फिसल, तो तेरे मुख में बोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    तेरा लाल हँसें तो हे माता, तेरा सारा जग हँसता।
    रोए लाल तो तुझको माता, सारा जग रोता दिखता।
    ‘नमन’ तेरे वात्सल्य को हे माँ, इससे कुछ अनमोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद