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  • कलम से वार कर

    कलम से वार कर

    kalam

    परिणाम अच्छे हो या बुरे,,
    उसे सहर्ष स्वीकार कर,,
    किसी को दोषी मत ठहरा,,
    अपने आप का तिरस्कार कर,,
    समीक्षा कर अंतःकरण का,,
    और फिर कलम से वार कर ।।

           जहाँ तुम्हें लगे मैं गलत हूँ,,
           वहाँ बेझिझक अपनी हार कर,,
           अपने चिंतन शक्ति को बढ़ाकर,,
            तुम ज्ञान का प्रसार कर,,
            अपने अन्दर अटूट विश्वास कर ले,,
            और फिर कलम से वार कर।।

    साथ दे या न दे कोई,,
    तो भी तुम उसका आभार कर,,
    अधिकार किसी का छीना जाय,,
    तो अपनी बातों से उस पर प्रहार कर,,
    निस्काम भाव निःस्वार्थ सेवा में,,
    फिर कलम से वार कर ।।

          आएगी तुम्हारी भी बारी,,
          अपनी बारी का इंतज़ार कर,,
          विश्वास रखो तुम भी महान होगे,,
          बस अपने गुणों का निखार कर,,
           हे मानव अपने ऊपर अधिकार रख,,
          और फिर कलम से वार कर ।।

    रचना:बाँकेबिहारी बरबीगहीया

  • सखी वो मुझसे कह कर जाते

    सखी वो मुझसे कह कर जाते

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    नैनन मेरे नीर भर गये
    हृदय किया आशंकित है
    गये होगें जिस मार्ग पे चलके
    उस पथ उनके पग अंकित है
    जाना ही था जब प्रियतम को
    थोडी देर तो रह कर जाते !!१!!
    *सखी वो मुझसे*……………..

    भोर भयी जब देखा मुडकर
    प्रियतम सेज दिखे ना हमें
    हृदय हुआ जो पीडित उस क्षण
    कहूँ वो कैसे व्यथा तुम्हें
    सह लेती हर तडपन पर यूँ
    प्रियतम ना मुझको छल कर जाते !!२!!
    *सखी वो मुझसे*…………..

    कैसे तुमने सोचा प्रियतम
    पथ की तेरे मैं बाधक थी
    जरा देर को मिलते मुझसे मैं
    तेरे मार्ग की साधक थी
    तुम्हें मुक्त मै करती खुद से,
    मैल हृदय से धुलकर जाते !!३!!
    *सखी वो मुझसे*…………….

    शिवांगी मिश्रा

  • पहचान पर कविता

    पहचान पर कविता

    कैद न करो बस पिंजरे में
    हमें नही चाहिए पूरा जहान ।
    अपने को मानते हो श्रेष्ठ तो
    हमें भी बनने दो नारी महान ।।
    जहाँ कोई मालिक न हो
    और न हो यहाँ कोई गुलाम ।
    दोस्ती का रिश्ता हो बस
    दोस्ती ही हो हमारी पहचान ।।
    आजादी नहीं चाहिए तुमसे
    बस बनी रहे मेरी भी शान ।
    जहाँ कोई छोटा- बड़ा न हो
    सबको मिले यहाँ मान-सम्मान ।।
    साथ चलना है सदा तुम्हारे
    लेकर अपने मन के अरमान ।
    मेरा तो बस यही ‘सपना’ है
    मिले धरती, वही खुला आसमान ।।

    अनिता मंदिलवार “सपना”

  • माता पिता पर कविता

    माता पिता पर कविता

    धन्य – धन्य माता -पिता ,धन्य आपका प्यार I
    तन देकर ‘माधव’ किया ,बहुत बड़ा उपकार ll

    ब्रह्मा , विष्णू   बाद   में , नन्दी  के  असवार I
    ‘माधव’   पहले  मात -पितु , बन्दउँ बारम्बार ll

    कोरे कागज पर लिखा , तुमने भला  सुलेख I
    ‘माधव’ जैसा आज हूँ , अपनी ही छवि देख Il

    मात – पिता  साकार इक , ईश्वर का ही अंश I
    कभी  माफ़  करता नहीं  ‘माधव’ दे  जो दंश ll

    चुकता कर सकता नहीं ,मात-पिता का कर्ज I
    ‘माधव’ नहीं बिसारिये , याद रखो निज फर्ज ll

    सन्तोष कुमार प्रजापति ‘माधव’
    कबरई जि. – महोबा ( उ. प्र. )

  • आह्वान गीत – नारी शक्ति को समर्पित

    आह्वान गीत – नारी शक्ति को समर्पित

    आह्वान गीत

    अभी और लड़ाई लड़नी है,तुमको  अपने अधिकार की |
    चुप होकर मत बैठो तुम,भेरी भरो हुंकार की ||

    कितनी सदियां बीत गईं,पर तुम्हें न वो सम्मान मिला |
    चिंतन करना होगा तुम्हें,अपने निरादर हार की || अभी और…

    आज भी तुम अपवित्र हो,मंदिर(सबरीमाला) में प्रवेश वर्जित है |
    कितनी कुत्सित-घृणित सोच है देखो इस संसार की ||अभी और..

    विधवा,कुलक्षणा,सती,टोनही;येे सब किसने नाम दिए |
    पूछो अग्नि परीक्षा क्यों,तुम्हारी ही हर बार की ||अभी और….

    दोयम दर्जे में हो अभी भी तुम,यह बात भूल नहीं जाना |
    बस अच्छे नारे हैं यहां,काग़ज़ी नीति सरकार की ||अभी और…

    कभी कभी कोई बहन भी,तुम्हारी दुश्मन होती है |
    स्वार्थ में करती है बचाव,जब वह गुनहगार की ||अभी और….

    शोषण करने को तुम्हारा,पग-पग में बैठे लोग यहां |
    कोई बाबा के वेश में तो,कोई ड्यूटी में पहरेदार की ||अभी और

    दुष्टों का संहार करो तुम,दुर्गा- चंडी-काली बनकर |
    ममता के संग में है ज़रूरत कभी-कभी तलवार की ||अभी और….

    अंधविश्वास-कुरीति से,तुमको बाहर आना होगा |
    आसमान छूने की बात,वरना है बेकार की || अभी और….

    शिक्षा को तुम ढाल बनाओ,कवच आत्मनिर्भरता को |
    बेड़ियां काट के बाहर निकलो,तुम घर और चारदीवार की ||


                  रमेश गुप्ता ‘प्रेमगीत’
                    सूरजपुर(छ.ग.)
                 मो- 9977507715