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  • मन में जो तू ठान ले /  रामनाथ साहू  ” ननकी “

    मन में जो तू ठान ले /  रामनाथ साहू  ” ननकी “

    मन में जो तू ठान ले /  रामनाथ साहू  ” ननकी “

    मन में जो तू ठान ले ,कुछ भी करले मीत ।
    हौसला  गिराना नहीं , होगी निश्चित जीत ।।
    चरण  स्पर्श है बंदगी , कृपा  करे  सब  संत ।
    मन के कल्मष मेट दे, करे सकल दुख अंत ।।
    लोगों यह तन कुंभ है ,भरा हुआ  जल राम ।
    राख जतन के मानवा, करले अमर स्वनाम ।।
    धन्यवाद माँ आपको , सौंपा सकल जहान ।
    ममता  अक्षय दे  गई , माँ तू  सदा  महान ।।
    जब नैराश्य करे उधम , निहार तू घनश्याम ।
    प्रार्थना हिय अंतर जगे , बल दे श्री भगवान ।
                      ~   रामनाथ साहू  ” ननकी “
                              मुरलीडीह ( छ. ग. )
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  • उठो सपूत

    उठो सपूत


    ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला

    उठो सपूत राष्ट्र के,  जगा रही तुम्हें  धरा।
    पुनः महान देश हो, विचार ये करो जरा।1
    प्रबुद्ध देशवासियों, न ढील दो लगाम को।
    बिना किसी विराम के, करो नवीन काम को।2
    एकाग्र हो यकीन से, निशान साध तीर के।
    बिना मिले न लक्ष्य के, रुके न पैर वीर के।3
    जहां कहीं बवाल हो, व नाक का सवाल हो।
    न भूल हो यदा कदा, नहीं कभी मलाल हो।4
    भरा नवीन जोश हो, नहीं समाप्त रोष हो।
    सभी दिलों पे राज हो, नहीं कहीं प्रदोष हो।5
    महीन सी इबारतें, लिखी गईं जहां कहीं।
    सम्हाल लें संवार लें,  रहें सदा मिटे नहीं।6
    सुधार देश में करें, जला मशाल ज्ञान की।
    यहां सदा बने तभी,बात राष्ट्र शान की।7
    प्रवीण त्रिपाठी, उदयपुर, 03 जनवरी 2019
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  • जीवन की डगर

    जीवन की डगर

    कुछ तुम चलो,कुछ हम चलें,
    जीवन की डगर पर साथ चले।
    लक्ष्य को पाना है एक दिन,
    निशदिन समय के साथ चलें।
    सुख दु:ख के हम सब साथी,
    अपनत्व प्यार बाँटते चलें।
    अटल विश्वास हमारा मन में,
    मंज़िल की ओर हम बढ़ चलें।
    हिम्मत,परिश्रम और लगन से,
    अनेक बाधाओं के पार चलें।
    मोह माया के इस भँवर जाल से,
    भक्ति की नैया से भव तर चलें।
    नफरत की अजब इस दुनिया में,
    सद्भाव के नए तराने गाते चलें।
    प्रत्येक राहगीर के मन मंदिर में,
    दिव्य ज्ञान के दीप जलाते चलें।
    पथ में मिल जाए गर दीन-दुखी,
    ‘रिखब’सबको गले लगाते चलें।
    कुछ तुम चलो,कुछ हम चलें,
    जीवन की डगर पर साथ चलें।
    ® रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
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  • सुख दुख पर कविता

    सुख दुख पर कविता

    सुख का सागर भरे हिलोरे।
    जब मनवा दुख सहता भारी।
    सुख अरु दुख दोनों ही मिलकर।
    जीवन की पतवार सँभारी।
    दुखदायी सूरज की किरणें।
    झाड़न छाँव लगे तब प्यारी।
    भूख बढ़े अरु कलपै काया।
    रूखी सूखी पर बलिहारी।
    पातन सेज लगे सुखदायक।
    कर्म करे मानव तब भारी।
    लेय कुदाल खेत कूँ खोदे।
    स्वेद बूँद टपके हदभारी।
    मानुष तन कू सार यही है।
    सुख दुख लोगन कू हितकारी।
    ऐसो खैल रचे मनमोहन,
    ‘भावुक’ जाय आज बलिहारी!!
    ~~~~भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
    टापरवाड़ा!!!
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  • सरस्वती वंदना

    सरस्वती वंदना

    माँ सरस्वती शारदे
    बुद्धि प्रदायिनी ज्ञानदायिनी
    पद्मासना श्वेत वस्त्रा माँ
    अज्ञानता हर ज्ञान दे माँ हंसवाहिनी।
    तेरे चरणों की पावन रज कण
    ललाट पर मेरे सुशोभित रहे माँ
    विस्तार हो मेरे ज्ञान का असीमित
    कलम मेरी वरदहस्त रहे माँ।
    धूप दीप नैवेद्य शुभ अर्चन वंदन
    कष्ट पीर विपत्ति हर दे माँ मेरे
    ज्ञानचक्षु का दिव्य प्रकाश दे माँ
    विशाल शब्द शक्ति हो माँ पास मेरे।
    हे वीणावादिनी कमल आसनी
    उज्ज्वल दिव्य प्रकाश दे माँ
    अज्ञान तम का निस्तार कर दे
    सफलता का निर्मल आकाश दे माँ।
    वाग्देवी महामाया महारूपा तू है माँ
    ज्योतिपुंज महाभागा तू ही सुखदायिनी
    सौभाग्य उदय हो आशीष से माँ
    करबद्ध नमन माँ ज्ञान प्रदायिनी।
    कुसुम लता पुंडोरा
    नई दिल्ली
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