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  • स्वीकारो प्रणाम माँ नर्मदे

    स्वीकारो प्रणाम माँ नर्मदे


    प्रणाम  है  अहो  प्रणाम ,  जयति माँ नर्मदे ।
    पतित पावनी  अभिराम ,  जयति माँ नर्मदे ।।
    हे कलि कलुष निवारिणी , जयति माँ नर्मदे ।
    अखण्डित  तपश्चारिणी , जयति माँ नर्मदे ।।
    मेकल  सुता  सिद्धिप्रदा , तुमको  प्रणाम है ।
    दीनों  पर  करती  कृपा , तुमको  प्रणाम है ।।
    सप्तमी  मकर  दिवाकर , तुम  अवतार धरे ।
    अमरकंठ  उद्गगम वर , जन  उपकार करे ।।
    समोद्भवा   भव मोचिनी  , हे जटा शंकरी  ।
    प्रिय लचक चाल सर्पिणी , महारस मंजरी ।।
    कलि  मल  हरणी  नर्मदे , हे भवानी  महा ।
    श्रुति  वेद  नमत  सर्वदे , हे  भवानी  महा ।।
                        ~  रामनाथ साहू ” ननकी “
                              मुरलीडीह ( छ. ग. )
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • हर पल उत्सव सा मनालें

    हर पल उत्सव सा मनालें – केवरा यदु “मीरा “

    holi
    holi

    जिंदगी चार दिन की  चलो गीत गालें ।
    हँस लें हम खुद औरों  को भी हँसालें ।
    चाहें तो जिन्दगी को हम इस तरह सजालें ।
    हर दिन दिवाली होली उत्सव मनालें ।


    न बेरंग जीवन  हो संग मिलकर संवारें ।
    रहें हरपल मगन छूटे हँसी के फव्वारें।
    न हो भूखा पड़ोसी चलो मिल बाँट खालें।
    जिंदगी का हर पल उत्सव सा मनालें ।


    बेंटियों को रावण से  चल कर बचालें ।
    सिसकती हुई बेटियों को हम हँसालें ।
    रंगों की होली  से तन मन  रँगालें ।
    दुश्मन रहे न कोई  मीत सबको बनालें ।


    जिंदगी है उत्सव  नहीं उदासी हम पालें
    चलो आज  सबको गले से लगालें।


    केवरा यदु “मीरा “
    राजि

  • सच में लिपटा झूठ

    सच में लिपटा झूठ

    सच में लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!
    कलुषित कर्म को, धवल सूट में सजते देखा!
    लीपापोती सब जग होती,
    कुलटा नार हाथ ले ज्योती!
    खसम मार वो निज हाथों से’
    सती सावित्री बनते देखा!
    सचमें लिपटा झूठ,सरासर  बिकते देखा!!…..(१)
    बाजारों का हाल बुरा है।
    हाट हाट में ये पसरा है।
    मीठी बातों से जनता को,
    व्यापारी से ठगते देखा!
    सचमें लिपटा झूठ,सरासर  बिकते देखा!!…..(२)
    अखबारों के वारे न्यारे,
    लुच्चे नेता दिखे बैचारे!
    राजनिती की कच्ची रोटी,
    उल्टे तव्वै सिकते देखा!
    सचमें लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!!……(३)
    आडंबर का गोरखधंधा,
    गेरू रंग का कसता फँदा!
    बाबाओं के आश्रमों में,
    बालाओं को लुटते देखा!
    सचमें लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!!…..(४)
    ~~~भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
    टापरवाड़ा!!
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  • भावना और भगवान

    भावना और भगवान

    .             
    यदि सच्ची हो भावना,मिल जाते भगवान।
    जग में सच्चे बहुत हैं,अच्छे दिल इंसान।।
    देश हमारे हैं बहुत, दाता अरु धन वान।
    संसकारों संग भरा,प्यारा  हिंदुस्तान।।
    मुझे गर्व है शान है,मेरा देश महान।,
    जल,थल संग वायु चले,आज हमारे यान।।
    जिसमें बैठे गगन को, छू जाए संतान।
    नव पीढी को मैं भले, देऊँ ऐसा ज्ञान।।
    पारस्परिक विचार को,करते सदा प्रणाम।
    उन्नत नित करते रहें,नए नए आयाम।।
    खुशियों से भरपूर है, सबको यह पैगाम।
    बन कर्मठ करते रहें,नित्य निरंतर काम।।
    होगा संगत देश के,अपना ऊँचा नाम।
    नेक भावना राखिए, कहलाएँ भगवान।।
    करते हैं सद्कर्म ही, विदुषी अरु विद्वान।
    इंसानों की भावना,कहै उन्हें भगवान ।।
    कवयित्री: डॉ० ऋचा शर्मा
    करनाल(हरियाणा)
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  • राष्ट्रवाद पर कविता

    राष्ट्रवाद पर कविता

    बाँध पाया कौन अब तक सिंधु के उद्गार को।
    अब न बैरी सह सकेगा सैन्य शक्ति प्रहार को।1
    तोड़ डालें सर्व बंधन जब करे गुस्ताखियाँ।
    झेल पायेगा पड़ोसी शूरता के ज्वार को।2
    कांपता अंतःकरण से यद्यपि बघारे शेखियाँ।
    छोड़ रण को भागने खोजा करे अब द्वार को।3
    मानसिकता में कलुष है छल प्रपंचों में जुटा।
    कूटनीतिक योग्यता से अवसर न दें अब वार को।4
    देश ने है ली शपथ हम आक्रमण न करें कभी।
    हम सजग सैनिक खड़े हैं राष्ट्र के विस्तार को।5
    राष्ट्रवादी भावना हम में भरी है कूट कर।
    जाति धर्म न बाँट पाये अब हृदय उद्गार को।6
    सैनिकों से प्रेरणा ले देश अब फिर एक हो।
    आज पनपायें पुनः सब राष्ट्रवाद विचार को।7
    कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
    नई दिल्ली, 10 फरवरी 2019
    मोबाइल 7340145333
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