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  • मेरी मातृभूमि

    मेरी मातृभूमि

    स्वर्ग  से   सुंदर   भू   भारती ।
    भानु शशि नित्य करे आरती ।।
    गौरव   गान  श्रुति  वेद करते ।
    प्रातः नमन ऋषि हृदय भरते ।।
    उर्वर  भूमि  सजी  इठलाती ।
    श्रम बिन्दु से प्यास  बुझाती ।।
    सौंधी  सुगंध  पवन  मचलते ।
    मंजु मधुक मधु कंठ विहरते ।।
    देवभूमि    हे  दिव्य  रसोमय ।
    साधक जीवन करती निर्भय ।।
    प्राची   हिमाद्रि   उतंग  श्रेणी ।
    प्रगटी जहाँ सुरसरि त्रिवेणी ।।
    जलधि पद को अविराम धोते ।
    रक्षक खड़े अब तक न सोते ।।
    सुख  समृद्धि  धानी   आँचल ।
    करती कृपा  सदा बन बादल ।।
                       ~  रामनाथ साहू  ” ननकी “
                              मुरलीडीह ( छ ग )
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • नैन पर दोहे

    नैन पर दोहे

      नैन पर दोहे

    दुनिया    के   सबसे   बड़े, , जादूगर  ये  नैन।
    इनके बिन मिलता कहाँ ,भला किसी को चैन?
    कमल-नयन   श्रीराम  हैं , त्रिलोचन  महादेव।
    सृजन  प्रलय  के  हेतु   हैं  ,ये  देवों  के  देव।
    नयन   समंदर   झील हैं   ,नैन  तीर  तलवार।
    नैन   जिसे  ले   डूबते,  अलग  कहाँ  उद्धार।
    नील-गगन  भी  नयन  हैं , जिन  में तारे मौन।
    मन -पंछी  उड़ते  यहाँ  ,रोक सका  है  कौन?
    खारा -दरिया ये नयन ,बनते जब – जब नाव।
    तोड़  भाव  बंधन  सभी , धोते   पलकें पाँव।

    सुनील_गुप्ता केसला रोड सीतापुर

    सरगुजा छत्तीसगढ
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • लाल तुम कहाँ गये

    लाल तुम कहाँ गये


    * मेरे आँगन  का उजियारा था
    माँ बाप के आँख का तारा था
    सीमा पर तुझको भेजा था
    पत्थर  का बना  कलेजा था
    पर मैने यह नहीं   सोचा  था।
    तू मुझे छोड़  कर जायेगा 
    माँ बाप को  रुलवायेगा ।
    क्यों पुलवामा  में सो गये ।
    लाल तुम कहाँ गये ।

    कहता था ब्याह रचाऊँगा
    प्यारी सी बहू   मैं  लाऊँगा
    फिर झूले में  तुझे झुलाऊँगा
    खाना माँ तुम्हे खिलाऊँगा
    कैसे  सपने दिखा  चले गये
    लाल तुम कहाँ गये ।
    बूढ़ी आँखे  अब  रोती   है
    हरपल आँचल  को भिगोती है
    खो गई आँख की  ज्योति   है
    बेटा  तू   हीरा   मोती है ।
    बिन कहे कुछ क्यों  चले गये ।
    लाल तुम कहाँ गये ।
    पापा का तू ही  सहारा था
    तू  मेरा  राज  दुलारा    था
    बहनों का भाई  प्यारा था
    बस्ती वालों का  रखवारा  था ।
    क्यों मुझे तड़पते छोड गये
    लाल तुम कहाँ गये ।
    लाल तुम कहाँ गये ।
    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • हिम्मत न हार

    हिम्मत न हार


    आज  नहीं  तो  ये  कल  होगा ।
    प्रश्न  यहीं  का   है  हल  होगा ।।
    जीवन  जीये  जा   मत   रोना ।
    यार   हताशा   में  मत   होना ।।
    मान   पहेली   तू   लग   पीछे ।
    हिम्मत  को बांधो  कस भींचे ।।
    जीत  चलो  बाजी  उलझा  है ।
    बंधन  तोड़़ा  जो  निकला  है ।।
    तू  इतिहासों  कोे  लिखता जा ।
    कर्ज अभी  से ही  गिनता जा ।।
    जो  अब  भी चाहे  कर  ले  तू ।
    कर्म  प्रभा  से  जी  भर ले  तू ।।
                     ~  रामनाथ साहू ” ननकी “
                            मुरलीडीह ( छ. ग. )
    चंपकमाला (रुक्मति ) छंद :—– 10 वर्ण ।                
     भगण मगण सगण गुरु ।
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • मनीभाई की तांका

    मनीभाई की तांका

    नंद के लाला
    ब्रज का तू गोपाला
    है भोला भाला
    भाये बांसुरी तेरी
    छाये प्रेम घनेरी।।

    -मनीभाई

    मनीभाई की तांका


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    नाचते देखा
    देव विसर्जन में
    लोगों को
    लिए फूहड़पन
    डीजे केे तरानों में।
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    मैं नहीं एक
    मेरे रूप अनेक
    मैं ही ना जानूँ 
    मेरी हकीकत को
    मुझसे मिला दे तू।
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    मनीभाई ‘नवरत्न’

    मनीभाई की ताकाँ

    आता न कल
    महाकाल विजेता
    कर तो शुरू
    अपना अभियान
    लाना गर तूफान।