12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। भारत में उनके जनमाँ दिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी की बुद्धिमत्ता और अद्भुत उत्तर पूरी दुनिया का कायल थी। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन रखा।
स्वामी विवेकानंद पर कविता
गेरूआ वस्त्र, उन्नत मस्तक, कांतिमय शरीर ।
है जिनकी मर्मभेदी दृष्टि, निश्छल, दिव्य,धीर।।
युवा के उत्थान हेतु तेरे होते अलौकिक विचार ।
आपके विचार से चल रहा आज अखिल संसार।।
शिकागो में पुरी दुनिया को दिया धर्म का ज्ञान।
राजयोग और ज्ञानयोग हेतु, किए व्याख्यान।।
हे नरेन्द्र, परमहंस शिष्य ,स्वामी विवेकानंद।
आप सा युगवाहक,युगदृष्टा होते जग में चंद।।
हे महान तपस्वी मनस्वी, राष्ट्रभक्त, हे स्वामी।
हे दर्शनशास्री, अध्यात्म के अद्वितीय ज्ञानी।।
सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को आत्मसात कर डाली।
हे महान! तुम ब्रह्मचारी विलक्षण प्रतिभाशाली।।
हे महामानव महात्मा, भारत के युवा संन्यासी ।
विश्व में जो पहचान दिलायें गर्व करे भारतवासी।।
✍बाँके बिहारी बरबीगहीया
स्वामी विवेकानंद जी पर कविता
विश्व गुरु का पद पाकर भी,
नहीं कभी अभिमानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//१//
सूक्ष्म तत्व का ज्ञान जिन्हें था,
मानव जन्म प्रवर्तक थे।
दिन दुखी निर्धन पिछड़ो का,
यह तो परम समर्थक थे।
धरती से अम्बर तक जिसनें,
पावन ध्वज फहराया था।
प्रेम-भाव के रीति धर्म का,
जग को मर्म बताया था।
तपते रेगिस्तानों में जो,
आशाओं के पानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//२//
नहीं झुके थे,नहीं रूके थे,
आगे कदम बढ़ाते थे।
मानवता के मर्म भेद को,
जग को सदा पढ़ाते थे।
किया पल्लवित मन बागों को,
लेप लगाकर घावों में।
प्रखर ओज शुचिता भरते थे,
बूझ रहें मनभावों में।
ज्ञान दान करने के पथ में,
सबसे बढ़कर दानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
//३//
विपदाओं को दूर करें जो,
लक्ष्य वही थे कर्मो में।
भेद नहीं करते थे स्वामी,
कभी किसी के धर्मो में।
भगवा पट धारणकर हम भी,
जग में अलख जगाएंगे।
“कोहिनूर”अब विश्व गुरु के,
पग में सुमन चढ़ाएंगे।
जीवन की परिभाषाओं में,
जिनसे पुण्य कहानी थे।
संत विवेकानंद जगत में ,
वेदांतो के ज्ञानी थे।।
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
विवेकानंद जी को शब्दांजलि-बाबू लाल शर्मा
विभा—
विभा नित्य रवि से लिए, धरा चंद्र बहु पिण्ड!
ज्ञान मान अरु दान दो, रवि सम रहें प्रचंड!!
विभा विवेकानंद की, विश्व विजेत समान!
सभा शिकागो में उदय, हिंद धर्म विज्ञान!!
चंद्र लिए रवि से विभा, करे धरा उजियार!
ज्ञानी कवि शिक्षक करे, शशिसम ज्ञान प्रसार!!
विभात—-
रवि रथ गये विभावरी, नूतन मान विभात!
संत मनुज गति धर्मपथ, ध्रुवसम विभा प्रपात!!
रात बीत फिर रवि उदय, ढले सुहानी शाम!
होता नित्य विभात है, विधि से विधि के काम!!
विभूति–
रामकृष्ण थे संतवर, परमहंस गुण छंद!
पूजित महा विभूति गुरु, शिष्य विवेकानन्द!!
संत विवेकानंद जी, ज्ञानी महा विभूति!
गृहण युवा आदर्श कर, माँ यश पूत प्रसूति!!
शर्मा बाबू लाल मैं, लिख कर दोहे अष्ट!
हे विभूति शुभकामना, मिटे देश भू कष्ट!!
© बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
वही विवेकानंद बने
कलुष कर्म मानव जीवन में,
नहीं गले का फंद बने।
जो मन साधन करे योग का,
वहीं विवेकानंद बने।
उठो जागकर बढ़ो निरंतर,
जब तक लक्ष्य नहीं मिलता।
ज्ञान नीर बिन मन बागों में,
सुरभित पुहुप नहीं खिलता।
कर्म योग अरु ज्ञान योग बिन।
जीवन यह अंधेरा है,
जब प्रकाश ही नहीं रहे तो,
क्या तेरा क्या मेरा है।
परम ज्ञान के पुंज है स्वामी,
पुण्य परम् मकरंद बने।
जो मन साधन करे योग का,
वहीं विवेकानंद बने।।
धर्म ध्वजा को हाथ थाम कर,
जग को पाठ पढ़ाया है।
भारत भू का धर्म सभा में,
जिसने मान बढ़ाया है।
मानवता की सेवा करके,
जिसने जन्म गुजार दिया।
जन जन के निज प्रखर ज्ञान से
खुशियों का संसार दिया।
स्वामी जी की शुभ विचार को,
धार मनोज मकरंद बने ।
जो मन साधन करें योग का ,
वही विवेकानंद बने ।।
दीक्षा लेकर परमहंस से ,
चले सदा बन अनुगामी ।
भले उम्र छोटी थी लेकिन,
बने रहे जग के स्वामी ।
जिसने जग को दिव्य ज्ञान से ,
समझाई थी परिभाषा ।
जो पढ़ ले इसके जीवन को ,
पूर्ण करें मन अभिलाषा ।
कोहिनूर ने जब कोशिश की ,
तब यह अनुपम छंद बने ।
जो मन साधन करें योग का ,
वही विवेकानंद बने।।
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)
भारत की पावन माटी में
o राजेन्द्र राजा
भारत की पावन माटी में अनगिन संतों ने जनम लिया।
अपने दर्शन की भाषा में मानवता का संदेश दिया ।
ऐसे संतों में एक संत जैसे अंबर में ध्रुवतारा ।
जिसके चरणों की रज लेने आतुर था भूमंडल सारा ॥
इस भोगवाद के जीवन को उसने जाने रख दिया कहाँ ?
जो कभी ‘नरेंद्र’ कहाता था बन गया विवेकानंद यहाँ ।।
संयम का अर्थ बताने को पहना उसने भगवा बाना ।
हिंदुत्व भावना के ध्वज को फहराने निकला दीवाना ।।
पुरवा के झोंके ने जाकर पछुवा का रंग बदल डाला।
जब उच्छृंखलता ने झुककर संयम को पहनाई माला ॥
वह गया शिकागो तक दौड़ा भारत की महिमा गाने को ।
भारत है सबका धर्मगुरु दुनिया को सच बतलाने को ।
बचपन के खेल खिलौने तज वह पीड़ाओं से खेला था।
वह मनुज नहीं था साधारण बजरंगबली का चेला था।
उसकी तेजस्वी आभा से सूरज भी शरमा जाता था ।
उसकी ओजस्वी वाणी से हिम तक भी गरमा जाता था ।
अध्यात्मवाद की गंगा को वह भूमंडल पर लाया था।
अद्वैतवाद की महिमा को जाकर सबको समझाया था ॥
पुरुषार्थ, त्याग का मूर्तरूप या स्वयं धर्म की परिभाषा ।
सहचर था वह हर पीड़ित का था दीन-दुःखी जन की आशा ॥
जैसे चंदन बिखराता है अपने तन से चहुँ ओर गंध ।
ऐसे ही बिखराने आया वह महामानव अपनी सुगंध ॥
हर हिंदू से वह कहता था ‘हिंदू’ होने पर गर्व करो ।
भारत माँ को माँ कहने में ना कहीं किसी से कभी डरो।।
रोम्या रोलाँ तक ने जिसको अपने घर में सम्मान दिया।
सबने भारत के बेटे को युग का प्रवर्तक मान लिया ।।
झुक गया गगन भी धरती पर सुनने संन्यासी की वाणी।
हर्षित होकर पग धोने को मचला था सागर का पानी ।।
वह देश नहीं रहता जीवित जिसकी भाषा मर जाती है।
भाषा है निज माँ की बोली जग में पहचान कराती है।
उस महापुरुष के चरणों में करता हूँ शत-शत बार नमन ! ऐसे ही पुष्पों से मेरे भारत का खिलता रहे चमन ॥
भारत की गुरुता का जिसने
० धनंजय ‘धीरज’
भारत की गुरुता का जिसने,
इस धरती पर ध्वज फहराया।
संत विवेकानंद, विश्व को
करके विजय, लौटकर आया ॥
भारतीय संस्कृति का गौरव,
मान गई मानवता सारी।
आत्म और अध्यात्म ज्ञान में,
भारत सम्मुख, विश्व भिखारी ॥
समझ गए थे संत, विश्व का
भारत ही कल्याण करेगा।
आत्म ज्ञान की, भूख जगत् की,
और न कोई शांत करेगा ।
ईश्वर दर्शन किया उन्होंने,
सेवा करने में जन-जन की।
सेवा पथ, हम भी अपनाएँ,
अभिलाषा है, अपने मन की ॥