Tag: Hindi poem on Shri Ganesh Chaturthi

भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी : गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नौ दिन बाद गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है।

  • विघ्न हरो गणराज-सुधा शर्मा

    विघ्न हरो गणराज

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    हे गौरी नंदन हे गणपति,प्रथम पूज्य  महराज।

    कृपा करो हे नाथ हमारे,विघ्न हरें गण राज।।

    घना तिमिर है छाया जग में, भटक रहा इंसान।  

    भूल गया जीवन मूल्यों को ,बना हुआ शैतान।।

     हे दुख भँजन आनंददाता,करिए  पूरी आस।

    रोग दोष सकल दूर करके,हरिए क्लेशविषाद ।।

    प्रथम पूजनीय हो प्रभू जी,पूजे सब संसार। 

    शुद्धि बुद्धि करिए गणराजा,हरिए सभी विकार।।

    दर्प दलन किया था आपने,देकर चंद्रदेव को शाप।

    कला हीन होकर तब भगवन,मिला विकट  संताप।

    काम क्रोध मद लोभ डूबकर,भूले जो सदचाह।

    पथ प्रदर्शक बनें बुद्धि प्रवर,दो विवेक की राह।।

    विनती इतनी है  गणनायक,हो शान्ति परिवेश। 

    मानवता सदभावना खिले,सदा सुखी हो देश।।

     सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़

  • गणपति स्वागत है- माधुरी डडसेना

    गणपति स्वागत है

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    पधारिये गिरजाशिव नन्दन, गणपति स्वागत है।

    बुद्धि प्रदाता हे दुख भंजन  सदा शुभागत है।।

    मुसक वाहन प्रखर प्रणेता,जग के नायक हो।

    प्रथम पुज्य तुम हो अग्रेता,  सुख के दायक हो

    विश्वासों का दीप जलाये,    हम शरणागत है।

    पधारिये गिरजा शिव नन्दन,   गणपति स्वागत है ।। 

    मात पिता में ब्रह्मण्ड बसा,   बतलाया जग को ।

    आशीष पा जगत जननी का,  प्रथम हुए मग को।।

    रिद्धि सिद्धि के तुम हो दाता,शुभ अभ्यागत है।

    पधारिये गिरजाशिव नन्दन,गणपति स्वागत है ।।

    ध्यान धरे श्रद्धा से तुमको,  मनवांच्छित मिलता।

    शील विवेक साथ मिले उसे ,  जो तुम पर रिझता।

    हे लम्बोदर विघ्नविनाशक,   अब प्रत्यागत है ।।

    बुद्धि प्रदाता हे दुख भंजन ,  सदा शुभागत है ।

    हाथ जोड़ सुन विनय हमारी,  करूँ मैं वन्दना।

    विपदा को कर दूर हमारी,  करूँ मैं अर्चना।

    भारत अखण्ड रहे सदा,   सिद्ध तथागत है ।।

    पधारिये गिरजशिव नन्दन,   गणपति स्वागत है ।।

  • बासुदेव अग्रवाल नमन – गणेश वंदना

    गणेश वंदना
     

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    मात पिता शिव पार्वती, कार्तिकेय गुरु भ्राता।
    पुत्र रत्न शुभ लाभ हैं, वैभव सकल प्रदाता।।
     
    रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज-कर से मुख सोहे।
    काया बड़ी विशाल जो, भक्त जनों को मोहे।।
     

    भाद्र शुक्ल की चौथ को, गणपति पूजे जाते।
    आशु बुद्धि संपन्न ये, मोदक प्रिय कहलाते।।
     
    अधिपति हैं जल-तत्त्व के, पीत वस्त्र के धारी।
    रक्त-पुष्प से सोहते, भव-भय सकल विदारी।।
     

    सतयुग वाहन सिंह का, अरु मयूर है त्रेता।
    द्वापर मूषक अश्व कलि, हो सवार गण-नेता।।
     
    रुचिकर मोदक लड्डुअन, शमी-पत्र अरु दूर्वा।
    हस्त पाश अंकुश धरे, शोभा बड़ी अपूर्वा।।
     

    विद्यारंभ विवाह हो, गृह-प्रवेश उद्घाटन।
    नवल कार्य आरंभ हो, या फिर हो तीर्थाटन।।
     
    पूजा प्रथम गणेश की, संकट सारे टारे।
    काज सुमिर इनको करो, विघ्न न आए द्वारे।।
     

    भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
    एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
     
    विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
    रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।
     

    ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर।
    वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
     
    मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।

    ‘बासुदेव’ विनती करे, सफल करो सब काजा।।

    मुक्तामणि छंद 

    विधान:-
     

    दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
    ‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
     

    मुक्तामणि चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके विषम पद 13 मात्रा के ठीक दोहे वाले विधान के होते हैं तथा सम पद 12 मात्रा के होते हैं। 
    इस प्रकार प्रत्येक चरण कुल 25 मात्रा का 13 और 12  मात्रा के दो पदों से बना होता है।
     दो दो चरण समतुकांत होते हैं। 
    मात्रा बाँट: विषम पद- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा, सम पद- 8+2+2 कुल 12 मात्रा।
    अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य है।


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया