Tag: #महेन्द्र कुमार गुदवारे

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 महेन्द्र कुमार गुदवारे के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • सबसे प्यारी भाषा हिन्दी – महेन्द्र कुमार

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    सबसे प्यारी भाषा हिन्दी – महेन्द्र कुमार

    kavita

    सबसे सुन्दर, सबसे न्यारी,
    सबसे प्यारी भाषा हिन्दी।
    अक्षर-अक्षर, महत्वपूर्ण है,
    महत्वपूर्ण है इसमें बिन्दी।

    मातृभाषा कहलाती है यह,
    सिखलाए जिसे पहले माता।
    भारत की पहचान है हिन्दी,
    ऐसा बतलाते हैं सब ज्ञाता।

    अक्षर-अक्षर के उच्चारण,
    ओंठ,नाक संग जिव्हा बोले।
    भिन्न-भिन्न रसास्वादन कर,
    कण्ठ है जो भाव को घोड़े।

    तमिल,कन्नड़,तेलगू,बंगाली,
    मलयालम,उड़िया,गुजराती।
    सब के सब ही यह भाषाएं,
    हिन्दी में ही बोली जाती।

    गर्व है हमें अपनी हिन्दी पर,
    हिन्दी हमारी पहचान है।
    सब भाषाओं में सबसे ऊपर,
    यह भारत की शान महान है।

    हम सब मिलकर आगे आएं,
    आओ कोई अभियान चलाएं।
    घर – घर से दिल्ली तक में,
    यह हिन्दी राष्ट्रभाषा हो जाए।

    महेन्द्र कुमार गुदवारे बैतूल

  • विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    आज पर्यावरण पर संकट आ खड़ा हुआ है . इसकी सुरक्षा के प्रति जन जागरण के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 5 मई को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया है . कविता बहार भी इसकी गंभीरता को बखूबी समझता है . हमने कवियों के इस पर लिखी कविता को संग्रह किया है .

    विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    Save environment
    poem on trees

    सुकमोती चौहान रुचि की कविता

    आओ ले संकल्प ये,सभी लगाये पेड़।
    पर्यावरणी हरितिमा,छाँव रहे हर मेड़।।

    अंधाधुन पेड़ कट रहे,जंगल हुआ वीरान।
    पर्यावरणी कोप से, हो तुम क्यों अंजान।।

    आक्सीजन कम हो चला, संकट में है जीव।
    दिन दिन निर्बल हो रही,पर्यावरणी नींव।।

    जल जीवन की मूल है,इसे करे मिल साफ।
    करे नहीं पर्यावरण,कभी मनुज को माफ।।

    बचाइए पर्यावरण,यही हमारी जान।
    हरी भरी जब हो धरा,यही हमारी शान।।


    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    विनोद सिल्ला की कविता

    दूषित हुई हवा
    वतन की 
    कट गए पेड़
    सद्भाव के 
    बह गई नैतिकता 
    मृदा अपर्दन में 
    हो गईं खोखली जड़ें
    इंसानियत की 
    घट रही समानता 
    ओजोन परत की तरह
    दिलों की सरिता
    हो गई दूषित 
    मिल गया इसमें
    स्वार्थपरता का दूषित जल
    सांप्रदायिक दुर्गंध ने 
    विषैली कर दी हवा
    आज पर्यावरण 
    संरक्षण की 
    सख्त जरूरत है। 

    -विनोद सिल्ला

    रेखराम साहू पर कविता

    सभ्यता का हाय कैसा ये चरण है ।
    रुग्ण जर्जर हो गया पर्यावरण है ।
    लुब्ध होकर वासना में लिप्त हमने,
    विश्व में विश्वास का देखा मरण है।
    लक्ष्य जीवन का हुआ ओझल हमारा,
    तर्क का,विज्ञान का,धूर्तावरण है ।
    द्रव्य संग्रह में सुखों की कामना तो,
    ज्ञान का ही आत्मघाती आचरण है ।
    हो न अनुशासन न संयम तो समझ लो,
    मात्र,जीवन मृत्यु का ही उपकरण है ।
    भाग्य है परिणाम कृत्यों का सदा ही,
    कर्म की भाषा नियति का व्याकरण है ।
    नीर,नीरद,वायु मिट्टी हैं विकल तो,
    सृष्टि के वरदान का ये अपहरण है ।
    पेड़-पौधे संग करुणा की लताएँ,
    कट रहीं, संवेदनाओं का क्षरण है ।
    है तिमिर पर ज्योति की संभावना भी,
    सत्य-शिव-सौंदर्य, ही केवल शरण है ।
    कर प्रकृति-उपहार का उपयोग हितकर,
    प्रेम का प्रतिबिम्ब ही पर्यावरण है ।

    रेखराम साहू

    शशिकला कठोलिया की कविता

    वृक्ष लगाने की है जरूरत,                          
    पर्यावरण बचाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                               
    मानव तुझे जलाने को ।

    जो लोग कर रहे हैं ,
    वनों का विनाश ,
    क्या उन्हें पता नहीं ,
    इसी में है उनकी सांस ,
    गांव शहर सब लगे हुए हैं ,
    अपना घर सजाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    हर कोई कर रहे हैं ,
    प्रदूषण का राग अलाप ,
    पर कोई नहीं बदलता ,
    अपना सब क्रियाकलाप ,
    मिलकर समझाना होगा ,
    अब तो सारे जमाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    पर्यावरण बचाने की ,
    हम सब की है जिम्मेदारी ,
    संभल जाओ लोगों ,
    नहीं तो पछताओगे भारी ,
    एक अभियान चलाना होगा,
    जन-जन को समझाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    वृक्ष ना काटो वृक्ष लगाओ ,
    विश्व में हरियाली लाओ ,
    सालों साल लग जाते हैं ,
    एक पेड़ उगाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                             

    मानव तुझे जलाने को ।

    श्रीमती शशि कला कठोलिया, उच्च वर्ग शिक्षिका, 
    अमलीडीह, पोस्ट-रूदगांव ,डोंगरगांव,
    जिला- राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

    महेन्द्र कुमार गुदवारे की कविता


    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पेड़ मित्र है, पेड़ है भाई,
    पेड़ से होता, जीवन सुखदाई।
    एक , एक सबको बतलाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पर्यावरण करे शुद्ध हमारा,
    प्रदुषण का है, हटे पसारा।
    आगे आओ सब, आगे आओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पेड़ से सुन्दरता है आए,
    जो है सबके मन को भाए।
    नेक विचार यह मन मेंं लाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    फल , फूल ,पत्तियाँ ,छाल के,
    एक , एक सब कमाल के।
    दवा ,औषधि अनमोल बनाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    सच्चा साथी है यह जीव का,
    सुखमय जीवन के नीव सा।
    इससे कतई तुम दूर न जाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    ~~~~~
    महेन्द्र कुमार गुदवारे ,बैतूल

  • विश्व धरोहर दिवस पर कविता

    विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस, (World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सके।

    poem on world heritage day
    poem on world heritage day

    विश्व धरोहर दिवस पर कविता (18 अप्रैल)

    प्रमुख धरोहर है हमारे,
    पूर्वजों से जो पाए संस्कार।
    इससे ही होता है निर्मित,
    हम सबका ही व्यवहार।

    संस्कारों के साथ संस्कृति,
    यह भी महत्वपूर्ण है भाई।
    आपके अपनों के बीच यह,
    नहीं वह बनने देता खाई।

    स्वतंत्रता जो मिली हमें है,
    इसका बहुत ही मंहगा दाम।
    सेनानियों के बलिदान का,
    इतिहास में लिखा काम।

    संस्कार, संस्कृति और स्वतंत्रता,
    इनका अपना विशेष महत्व है।
    बड़े जतन से इसे संभालें,
    सुख – संतोष के ये प्रमुख तत्व है

    महेन्द्र कुमार गुदवारे,बैतूल

  • पेड़ लगाओ पर कविता (poem on plant trees)

    वृक्ष लगाने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि वे कार्बन डाइऑक्साइड और श्वास ऑक्सीजन का आदान-प्रदान करते हैं। पर्यावरण में ऑक्सीजन की जरूरत सभी को होती है। पेड़ों न केवल कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं बल्कि वातावरण से कई अन्य हानिकारक गैसों को भी अवशोषित करते हैं जिससे वातावरण को ताजगी मिलती है।पेड़ के इन्ही गुणों पर आधारित है पेड़ लगाओ पर कविता

    पेड़ लगाओ पर कविता
    poem on trees

    पेड़ लगाओ पर कविता

    पेड़ न काटो पेड़ लगाओ

    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पेड़ मित्र है, पेड़ है भाई,
    पेड़ से होता, जीवन सुखदाई।
    एक , एक सबको बतलाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।


    पर्यावरण करे शुद्ध हमारा,
    प्रदुषण का है, हटे पसारा।
    आगे आओ सब, आगे आओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।


    पेड़ से सुन्दरता है आए,
    जो है सबके मन को भाए।
    नेक विचार यह मन मेंं लाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।


    फल , फूल ,पत्तियाँ ,छाल के,
    एक , एक सब कमाल के।
    दवा ,औषधि अनमोल बनाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ


    सच्चा साथी है यह जीव का,
    सुखमय जीवन के नीव सा।
    इससे कतई तुम दूर न जाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।


    महेन्द्र कुमार गुदवारे ,बैतूल