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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • पुराने दोस्त पर कविता

    पुराने दोस्त पर कविता

    हम दो पुराने दोस्त
    अलग होने से पहले
    किए थे वादे
    मिलेंगे जरूर एक दिन

    लंबे अंतराल बाद
    मिले भी एक दिन

    उसने देखा मुझे
    मैंने देखा उसे
    और अनदेखे ही चले गए

    उसने सोचा मैं बोलूंगा
    मैंने सोचा वह बोलेगा
    और अनबोले ही चले गए

    उसने पहचाना मुझे
    मैंने पहचाना उसे
    और अनपहचाने ही चले गए

    वह सोच रहा था
    कितना झूठा है दोस्त
    किया था मिलने का वादा
    मिला पर
    बोला भी नहीं
    मुड़कर देखा भी नहीं
    चला गया

    बिलकुल वही
    मैं भी सोच रहा था
    कितना झूठा है दोस्त
    किया था मिलने का वादा
    मिला पर
    बोला भी नहीं
    मुड़कर देखा भी नहीं
    चला गया

    हम दोनों
    एक-दूसरे को झूठे समझे
    हम दोनों
    वादा खिलाफी पर
    एक-दूसरे को जीभर कोसे

    इस तरह हम
    दो पुराने दोस्त मिले।

    नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    975585247

  • मिलकर पुकारें आओ -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    मिलकर पुकारें आओ !


    फिर मिलकर पुकारें आओ
    गांधी, टालस्टाय और नेल्सन मंडेला
    या भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और सुभाष चन्द्र बोस की
    दिवंगत आत्माओं को
    ताकि हमारी चीखें सुन उनकी आत्माएं
    हमारे बेज़ान जिस्म में समाकर जान फूंक दे
    ताकि गूंजे फिर कोई आवाजें जिस्म की इस खण्डहर में
    ताकि लाश बन चुकी जिस्म में लौटे फिर कोई धड़कन
    ताकि जिस्म में सोया हुआ विवेक जागे,सुने,समझे
    और अनुत्तरित आत्मा के सवालों का जवाब दे
    ताकि एक बार फिर उदासीन जिस्म से फूटे कोई प्रतिरोध का स्वर
    इसीलिए दिवंगत आत्माओं को
    फिर मिलकर पुकारें आओ !

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

     9755852479
    
  • हम तो उनके बयानों में रहे -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    हम तो उनके बयानों में रहे

    हम जब तक रहे बंद मकानों में रहे।
    वे कहते हैं हम उनके ज़बानों में रहे।1।

    उनके लिए बस बाज़ार है ये दुनियाँ
    गिनती हमारी उनके सामानों में रहे।2।

    मुफ़लिसी हमारी तो गई नहीं मगर
    हमारी अमीरी उनके तरानों में रहे।3।

    जो बड़े जाने-पहचाने लगते हैं अब
    कभी हम भी उनके बेगानों में रहे ।4।

    उसने घास नहीं डाली ये और बात है
    कभी हम भी उनके दीवानों में रहे।5।

    पूछो मत हमारे हालात की हकीकत
    हम तो केवल उनके बयानों में रहे।6।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    9755852479

  • जिंदगी पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जिंदगी पर कविता

    आज सुबह-सुबह
    मित्र से बात हुई
    उसने हमारे
    भलीभांति एक परिचित की
    आत्महत्या की बात बताई
    मन खिन्न हो गया

    जिंदगी के प्रति
    क्षणिक बेरुखी-सी छा गई
    सुपरिचित दिवंगत का चेहरा
    उसके शरीर की आकृति
    हाव-भाव
    मन की आँखों में तैरने लगा

    किसी को जिंदगी कम लगती है
    किसी को जिंदगी भारी लगती है
    जिंदगी बुरी और मौत प्यारी लगती है

    जिंदगी जीने के बाद भी
    जिंदगी को अहसास नहीं कर पाते
    मिथ्या रह जाती है जिंदगी

    जिंदगी मिथ्या है तो–
    मिथ्या-जिंदगी कठिन क्यों लगती है ?
    मिथ्या-जिंदगी से घबराते क्यों हैं ?

    पल भर में आती है मौत
    इतनी आसान क्यों लगती है?
    इतनी सच्ची क्यों लगती है ?

    भागना छोड़ो,सामना करो
    मिथ्या जिंदगी को आकार दो
    मिथ्या जिंदगी को सार्थक बनाओ

    जिंदगी खिलेगी
    जिंदगी महकेगी
    मरने के बाद
    अमर होगी जिंदगी

    मौत को अपनाओ मत
    वह खुद अपनाती है
    अपनाओ जिंदगी को
    जो तुम्हें अमर बनाती है।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479
  • जन्म लेती है कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जन्म लेती है कविता- 

    सूरज-सा चिरती निगाहें
    संवेदनाओं से भरी दूरदर्शी निगाहें
    अहर्निश हर पल
    घूमती रहती है चारों ओर

    दृश्यमान जगत के
    दृश्य-भाव अनेक
    सुंदर-कुरूप,अच्छे-बुरे,
    अमीरी-गरीबी, और भी रंग सारे

    भावों की आत्मा
    शब्दों की देह धरकर
    जन्म लेती है कविता।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
         9755852479
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद