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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • सुबह पर कविता

    सुबह पर कविता

    सुबह सबेरे दृश्य
    सुबह सबेरे दृश्य

    सुबह-सुबह सूरज ने मुझे
    आकर हिचकोला
    और पुचकारते हुए बोला
    उट्ठो प्यारे
    सुबह हो गई है
    आलस त्यागो
    मुँह धो लो

    मैंने करवट बदलते हुए
    अंगड़ाई लेते हुए
    लरजते स्वर में बोला
    सूरज दादा
    बड़ी देर में सोया था
    थोड़ी देर और सोने दो न
    मुझे आज
    अपने उजास के बदले
    थोड़ा-सा अंधकार दो न

    सूरज दादा ने
    हँसते हुए बोला
    अरे पगले !
    जो है नहीं मेरे पास
    वह तुम्हे कैसे दूँ

    सच के पास झूठ
    ज्ञान के पास अज्ञान
    कैसे मिलेगा..?

    समय के इस म्यान में
    या तो तलवार रहेगा
    या नहीं रहेगा।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • आख़िर गुस्तागी पर कविता

    आख़िर गुस्तागी पर कविता

    अहम से भरा मूर्तिमान
    राजन ऊँचे आसन पर
    विराजमान था
    चाटुकार मंत्रीगण
    उनके नीचे इर्द गिर्द बैठे हुए थे

    दरबार में मेरी पेशी थी
    मुझे ही मेरी गुस्ताख़ी पता नहीं था
    मुझ पर कुछ आरोप भी नहीं थे
    मन ही मन सोचा–
    आख़िर मेरी पेशगी क्यों..?
    मन से ही उत्तर मिला
    हाँ ! यह पेशगी राजा के ‘अहम’ के वास्ते होगा

    राजन बस लगातार
    चिल्लाता रहा
    घुड़कता रहा
    बकता रहा
    घूरता रहा

    मैं था एकदम खामोश
    नतमस्तक
    बस लगातार
    सुनता रहा
    गुनता रहा
    और ढूँढता रहा
    शायद हो या न हो
    फिर भी
    अपने जिस्म के एक-एक कोने में
    शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं में
    तलाशता ही रहा
    अपने ‘अहम’ का बचा खुचा कोई अंश

    आखिरकार मिला मुझे
    मेरे ‘अहम’ का एक छोटा-सा अंश
    जो था बिलकुल
    निष्क्रिय, निस्तेज और अनुपयोगी
    कुरेदा उसे बार-बार
    और जगाया उसे जैसे-तैसे

    जब मेरा ‘अहम’ जागा
    मैंने भी नज़रें उठाई
    तीख़ी नज़रों से
    ऊँचे आसन पर विराजे
    राजन को घूरा

    सहम गया वह सहसा
    उसकी गोल-गोल,बड़ी-बड़ी आँखें सिकुड़ गई
    उसका ‘अहम’ कहीं दुबक गया

    वह अपनी दबी ज़ुबान से
    बस इतना कहा–
    “आज दरबार की कार्यवाही यहीं पर मुलतवी की जाती है।”

    फिर दरबार नहीं लगा
    मुझे दोबारा बुलाया भी नहीं गया
    बिना अपील, बिना दलील के
    मुझ पर कार्यवाही हुई
    तड़ीपार किया गया मुझे

    मुझे अपनी गुस्ताख़ी अब भी नहीं पता है
    सिवाय इसके कि दरबार में पहली बार
    आज मैंने नज़रें उठाई थी
    और ललकारा था राजन के ‘अहम’से भरे साम्राज्य को।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • आविष्कारों पर कविता

    आविष्कारों पर कविता

    ये जो रेफ्रीजरेटर
    वैज्ञानिकों ने बनाया है
    कमाल है
    सब्ज़ी भाजी को सड़ने नहीं देता
    और खाने पीने की चीजों को
    रखता है बड़ा ठंडा-ठंडा कुल-कुल

    ये एयर कंडीशनर भी
    बड़े कमाल के हैं
    बड़ी ज़ल्दी ही
    छू मंतर कर देती है
    हमारे शरीर की सारी तपन

    इतने आविष्कारों के बावजूद
    इन दिनों
    एक भी मशीन
    नहीं है हमारे पास
    जो लोगों की
    मनसिकता को सड़ने से
    और दिमाग को गरम होने से
    बचाकर रखता
    हमेशा तरोताज़ा और ठंडा-ठंडा कुल-कुल।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • मुझे पता है कविता

    मुझे पता है कविता

    खौफ़ में क्या बोलेगा मुझे पता है।

    रात को दिन बोलेगा मुझे पता है।1।

    वक़्त आने पर  मेरे पक्ष में

    कोई नहीं बोलेगा मुझे पता है।2।

    साजिशें हैं उनकी गवाह भी उनके

    जज क्या बोलेगा मुझे पता है।3।

    ज़ुल्म के ख़िलाफ़ इस जंग में

    आखिर ईमान बोलेगा मुझे पता है।4।

    मेरी सच्चाई धरती के साथ

    आसमान बोलेगा मुझे पता है।5।

    हुकूमत गई फिर उनके ख़िलाफ़

    ज़र्रा-ज़र्रा बोलेगा मुझे पता है।6।

    नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    9755852479

  • लिखना पर कविता

    लिखना पर कविता

    kalam

    क्या आप कविता लिखना चाहते हैं ?
    यदि हाँ तो दो विकल्प है आपके पास

    पहला विकल्प यह कि–
    उनके लिए कविताएं लिखना
    एक बड़ी चुनौती लेना है
    इसमें कठिन संघर्ष और खतरों के अंदेशे भी हैं बहुत सारे

    दूसरा विकल्प यह कि–
    उनके लिए कविता लिखना
    अवसरों के दरवाज़े खोलना है
    इसमें पुरस्कार और सम्मान की संभावनाएं भी हैं बहुत सारे

    अपनी कविता में क्या लिखना चाहते हैं आप
    यह आपको ही तय करना है
    दोनों ही विकल्प खुले हैं आपके लिए
    या तो कविता लिखकर चुनौती ले लो
    या फिर कविता लिखकर खोल लो बंद अवसरों के दरवाजे।

    बताइये क्या लिखना चाहते हैं आप..?

    नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479