बेपरवाह लोग पर कविता

बेपरवाह लोग पर कविता ये उन लोगों की बातें हैंजो लॉकडाउन,कर्फ़्यू, धारा-144जैसे बंदिशों से बिलकुल बेपरवाह हैं जो हजारों की तादात मेंकभी आनन्द विहार बस स्टेंड दिल्लीमेंयकायक जुट जाते हैंतो कभी बांद्रा रेल्वे स्टेशन मुम्बई मेंअचानक इकट्ठे हो जाते हैं ये कोई एकजुट संगठित ताकत नहीं हैकिसी सोची-समझी साज़िश का हिस्सा भी नहीं हैइनके कोई … Read more

काम बोलता है पर कविता

काम बोलता है पर कविता वह बचपन से हीकुछ करने से पहलेअपने आसपास के लोगों सेबार-बार पूछता था…यह कर लूं ? …वह कर लूं ? लोग उन्हें हर बारचुप करा देते थेमाँ से पूछा-पिता से पूछादादा-दादी और भाई-बहनों से पूछापूछा पूरे परिवार सेसारे सगे संबंधियों सेदोस्त-यार और शिक्षकों से भी पूछा किसी ने भी उसे … Read more

मानसिकता पर कविता

मानसिकता पर कविता आज सब कुछ बदल चुका हैमसलन खान-पान,वेषभूषा,रहन-सहन औरकुछ-कुछ भाषा और बोली भी आज समाज की पुरानी विसंगतियां, पुराने अंधविश्वासऔर पुरानी रूढ़ियाँलगभग गुज़रे ज़माने की बात हो गई हैआज बदले हुए इस युग में-समाज मेंअब वे बिलकुल भी टिक नहीं पाती अब काम पर जाते हुएबिल्ली का रास्ता काट जानाबिलकुल अशुभ नहीं माना … Read more

मगर पर कविता

मगर पर कविता जब तक तारीफ़ करता हूँउनका होता हूँयदि विरोध मेंएक शब्द भी कहूँउनके गद्दारों में शुमार होता हूँ साम्राज्यवादी चमचेमुझे समझाते हैंबंदूक की नोक परअबे! तेरे समझ में नहीं आताजल में रहता हैऔर मगर से बैर करता है अच्छा हुआवे पहचान गए मुझेमैं पहचान गया उन्हें हक़ीक़त तो यही हैन कभी मैं उनका … Read more

जंगल पर कविता

जंगल पर कविता अब धीरे-धीरे सारा शहरशहर से निकलकर घुसते जा रहा है जंगल मेंआखिर उसे रोकेगा कौन साथी…?शहर पूरे जंगल को निग़ल जाएगा एक दिनआने वाली हमारी पीढ़ी हमसे ही पूछेगीखो चुके उस जंगल का पताहम क्या जवाब देंगे उन्हेंशहर की ओर इशारा करते हुए कहेंगेयही तो है बाकी बचा तुम्हारे हिस्से का जंगलहमारे … Read more