वृक्षारोपण पर कविता

वृक्षारोपण पर कविता गिरा पक्षी के मुहं से दानाबस वही हुवा मेरा जनम!चालिस साल पुराना हु मैजरा करना मुझ पे रहम!! आज भी मुझको याद हैवह बिता जमाना कल!पहली किरण लि  सुर्य कीथा बहुत ही सुहाना पल!! जब था मै नया-नया तोथा छोटा सा आकार!धिरे-धिरे बड़ा हुआ तोफिर बड़ा हुआ आकार!! झेलनी पड़ी बचपन मे … Read more

मै भी एक पेड़ हूं मत काटो

मै भी एक पेड़ हूं मत काटो   (१)गली गली में मै हूं, छाया तुम्हे देता हूं।खेतों की पार में हूं, वर्षा भी कराता हूं।शीतल हवा देता हूं ,चुपचाप मै रहता हूं।देखो भाई मत काटो,मै भी एक पेड़ हूं।।                  (2)मीठा फल देता हूं , खट्टा फल देता … Read more

धुआँ घिरा विकराल

धुआँ घिरा विकराल बढ़ा प्रदूषण जोर।इसका कहीं न छोर।।संकट ये अति घोर।मचा चतुर्दिक शोर।।यह भीषण वन-आग।हम सब पर यह दाग।।जाओ मानव जाग।छोड़ो भागमभाग।।मनुज दनुज सम होय।मर्यादा वह खोय।।स्वारथ का बन भृत्य।करे असुर सम कृत्य।।जंगल किए विनष्ट।सहता है जग कष्ट।।प्राणी सकल कराह।भरते दारुण आह।।धुआँ घिरा विकराल।ज्यों उगले विष व्याल।।जकड़ जगत निज दाढ़।विपदा करे प्रगाढ़।।दूषित नीर समीर।जंतु समस्त अधीर।।संकट में अब प्राण।उनको कहीं न त्राण।।प्रकृति-संतुलन ध्वस्त।सकल विश्व अब त्रस्त।।अन्धाधुन्ध विकास।आया जरा न रास।।विपद न यह लघु-काय।शापित जग-समुदाय।।मिलजुल करे उपाय।तब यह टले बलाय।।बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकियाकविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

धरती हमको रही पुकार

धरती हम को रही पुकार । समझाती हमको हर बार ।। काहे जंगल काट रहे हो ।मानवता को बाँट रहे हो ।इससे ही हम सबका जीवन,करें सदा हम इससे प्यार ।। धरती हमको रही पुकार ।। बढ़ा प्रदूषण नगर नगर में ।जाम लगा है डगर डगर में ।।दुर्लभ हुआ आज चलना है ,लगा गन्दगी का … Read more

विनाश की ओर कदम

विनाश की ओर कदम नदी ताल में  कम  हो  रहा  जलऔर हम पानी यूँ ही बहा  रहे हैं।ग्लेशियर पिघल रहे  और  समुन्द्रतल   यूँ ही  बढ़ते  ही जा रहे  हैं।।काट कर सारे वन  कंक्रीट के कईजंगल  बसा    दिये    विकास   ने।अनायस ही विनाश की ओर कदमदुनिया  के  चले  ही  जा  रहे   हैं ।।पॉलीथिन के  ढेर  पर  बैठ  … Read more