इन्तजार पर कविता
इन्तजार पर कविता विसंगति छाई संसृति मेंकरदे समता का संचार।मुझे ,उन सबका इन्तजार…। जीवन की माँ ही है, रक्षकफिर कैसे बन जाती भक्षक ?फिर हत्या, हो कन्या भ्रूण की या कन्या नवजात की ।रक्षा करने अपनी संतान कीजो भरे माँ दुर्गा सा हुँकारमुझे, उस माँ का इन्तजार….। गली गली और मोड़ मोड़ परहोता शोषण छोर … Read more