इन्तजार पर कविता

इन्तजार पर कविता विसंगति छाई संसृति मेंकरदे समता का संचार।मुझे ,उन सबका इन्तजार…। जीवन की माँ ही है, रक्षकफिर कैसे बन जाती भक्षक ?फिर हत्या, हो कन्या भ्रूण की या कन्या नवजात की ।रक्षा करने अपनी संतान कीजो भरे माँ दुर्गा सा हुँकारमुझे, उस माँ का इन्तजार….। गली गली और मोड़ मोड़ परहोता शोषण छोर … Read more

फरियादी हो (बेटी पर कविता)

फरियादी हो (बेटी पर कविता) आज कोख की बेटी ही,अब पूछे बन फरियादी हो। बिना दोष क्यों बना दिया है,मुझको ही अपराधी हो। ईश विधान जन्म मेरा फिर,तुम क्यों पाप कमाते हो।सुख दुःख का अनुमान लगा,हत्यारे बन जाते हो।आज कोख……। घर बगिया की  कोमल कलिका , मुझसे ही घर शोभित हो।अँगना में किलकारी मेरी,रिमझिम ध्वनि पग … Read more

चिड़िया पर कविता

थके पंछी थके पंछी आजफिर तूँ उड़ने की धारले,मुक्त गगन है सामनेतूँ अपने पंख पसारले। देख नभ में, नव अरुणोदयहुआ प्रसूनों का भाग्योदय,सृष्टि का नित नूतन वैभवसाथियों का सुन कलरवअब हौंसला संभाल ले । शीतल समीर बह रहासंग-संग चलने की कह रहा,तरु शिखा पर झूमतेफल फूल पल्लव शोभतेत्याग दे आलस्य निद्राअवरुद्ध मग विकास काआज अब … Read more

भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद

भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद साधे बेटी मौन को, करती  एक गुहार।जीवन को क्यों छीनते ,मेरे सरजनहार।मेरे सरजनहार,बतायें गलती मेरी।कहँ भू पर गोविंद , करे जो रक्षा  मेरी।“कुसुम”कहे समझाय  , पाप   जीवन भर काँधे। ढोवोगे दिन रैन ,दुःख यह मौनहि  साधे। पुष्पा शर्मा “कुसुम”

भावी पीढ़ी का आगामी भविष्य

भावी पीढ़ी का आगामी भविष्य हमें सोचना तो पड़ेगा।परिवार की परंपरासमाज की संस्कृतिमान्यताओं का दर्शनव्यवहारिक कुशलताआदर्शों की स्थापना।निरुद्देश्य तो नहीं!महती भूमिका है इनकीसुन्दर,संतुलित और सफल जीवन जीने में। जो बढता निरंतरप्रगति की ओरदेता स्वस्थ शरीर ,सफल जीवन और सर्वहितकारी चिन्तन।हम रूढियों के संवाहक न बने।कुरीतियों की हामी भी क्यों भरें। बचें छिछले ,गँदले गड्ढों के … Read more