Tag: श्री कृष्ण पर हिंदी कविता

  • श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी

    shri Krishna
    Shri Krishna

    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    1

    नन्द यशोदा की छवि प्यारी
    गोकुल धाम की महिमा न्यारी
    नाम तुम्हारा कृष्ण मुरारी
    माधव गिरिधारी त्रिपुरारी

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    2

    कारागार का खोला ताला
    यमुना की लहरों को नवाया
    तृणावर्त वत्सासुर तारा
    दैत्य बकासुर को संहारा

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    3

    गोवर्धन पर्वत को उठाया
    वारिश से मथुरा को बचाया
    पूतना को यमलोक भिजाया
    दैत्य अघासुर को भी सुलाया

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    4

    द्रुपद सुता का शील बचाया
    मोह पाश अर्जुन का काटा
    ज्येष्ठ कर्ण को दे ललकारा
    जरासंध को तुम ने मारा

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    5

    द्वापर युग के तुम अवतारी
    प्रकट भये मानव हितकारी
    गीता ज्ञान है कृपा तुम्हारी
    धर्म ध्वजा तुम पर बलिहारी

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    6

    वृंदावन के तुम अधिकारी
    देवकीनंदन मुरलीधारी
    भक्त तुम्हारे सभी पुजारी
    कृपा निरंतर बांके बिहारी

    श्रीकृष्ण जय कृष्ण हरे मुरारी
    जय गोपी बल्लभ कुञ्ज बिहारी

    गोविन्द माधव श्याम बिहारी
    यशोदा नंदन जय त्रिपुरारी

    रमेश

  • सुफल बनालो जन्म कृष्णनाम गायके – बाबूराम सिंह

    सुफल बनालो जन्म कृष्णनाम गायके

    कृष्ण सुखधाम नाम परम पुनीत पावन ,
    पतित उध्दार में भी प्यार दिखलाय के।
    कर की मुरलिया से मोहे त्रिलोक जब ,
    सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के।

    चौदह भुवन ब्रह्मांण्ड त्रिलोक सारा ,
    पालन संहार सृष्टि छन में रचाय के ।
    कलिमल त्रास से उदास आज जन-जन ,
    वेंणु स्वर फूंक फिर भारत में आय के ।

    ललाटे तिलक भाल गीता में सुन्दर माल ,
    अधरन पर प्रेम सर मुरली सहाय के ।
    आँख रतनारे केश घुंघर के लट सोहे ,
    मोहे देव किन्नर नाग छवि छांव पाय के ।

    खलहारी कारीकृष्ण खेल यशोदाके गोद ,
    ब्रज को बचायो नख पर्वत उठाय के ।
    सखियन के रोम-रोम बसत बिहारी ब्रज ,
    सार रस सुधा अतुलित वर्षाय के।

    बन्धन छुडा़इ बसुदेव देवकी के जेल ,
    कुब्जा को काया दीन्ही बांसुरी बजाय के ।
    गीता उपदेश भेष सारथी बनाइ आपन ,
    अर्जुनको दीन्हो हरि शिष्य सदपाय के ।

    पांव में पैजनी पीताम्बरी बदन हरि ,
    चारों फल राखे करतल में छुपाय के ।
    शेष महेश सुरेश और सरस्वती संत ,
    पार नाही पावे कोई रूप गुण गाय के ।

    कण-कणमें वासकर हरअघ हर -हर के ,
    सारा जग रहे लौ तोही से लगाय के ।
    भाव में विभोर प्रेम नेम तार नर्की के ,
    होत ना विलम्ब नाथ नंगे पांव धाय के ।

    होत ना बखान बलिहारी जाऊँ बार-बार ,
    हारे शत कोटि काम रूप से लजाय के ।
    बस वही रूप हरि हृदय में बास करे ,
    कहे “बाबूराम कवि”शीश पद नाय के ।

    ———————————————–
    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)851508
    मो॰ नं ॰ – 9572105032

    ———————————————–

  • शोकहर/सुभांगी छंद में कविता

    छंद
    छंद

    शोकहर/सुभांगी छंद में कविता

    ~ *शोकहर/सुभांगी छंद* ~
    *विधान- 8,8,8,6*
    *तुकांत- पहली दूसरी यति अंत तुकांत* 
    *चरण- चार चरण सम तुकांत*

    नंद दुलारे
    जन जन प्यारे,
    हे गोपाला,
    ध्यान धरो।
    हे कमलनयन
    हे मनमोहन
    नाथ द्वारिका
    कृपा करो।

    अजया अच्युत
    अनया अदभुत
    लाल यशोदा
    कष्ट हरो।

    हे ज्ञानेश्वर
    हे मुरलीधर
    पार्थसारथी
    राह वरो।

    हेआदिदेव
    देवाधिदेव
    वैकुंठनाथ
    मतवाला।

    हे परब्रह्मन
    सत्य सनातन
    नाच नचाए
    ब्रज बाला।

    हे मधुसूदन
    हे नारायण
    गाय चराए
    रखवाला।

    रूप मनोहर
    प्रेम सरोवर
    हे जगतारक
    प्रतिपाला।

    *©डॉ एन के सेठी*

  • आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    जन्माष्टमी महोत्सव पर कविता

    shri Krishna
    Shri Krishna

    गोपियों के संग रास रचैया तुम हो मेरे किशन कन्हैया।
    तेरे आराधक तुम्हें बुला रही है,चले आओ मेरे साॅंवरिया।।

    मीरा के प्रभु गिरधर नागर।
    राधा के तुम हो मुरलीधर।।

    मेरे लिए तो तुम श्रीराम हो।
    और तुम ही मेरे घनश्याम हो।।

    इस प्यासी नयन की प्यास बुझाने आओ।
    मन प्रफुल्लित हो जाए ऐसी बंशी बजाओ।।

    एक बार आओ कान्हा बांसुरी की स्वर में हम सबको नचाने।
    या फिर राम बनकर आओ हम सबको मर्यादा सिखाने।।

    भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष दिन अष्टमी को श्याम रूप में आओ।
    या फिर चैत्र मास शुक्लपक्ष नवमी को श्रीराम बन आओ।।

    श्रीराम मेरे घनश्याम मेरे।
    रटू नाम सुबह-शाम तेरे।।

    राधारमण हरे श्रीकृष्ण हरे।
    मैं नित्य पखारू चरण तेरे।।

    तूम प्रेम रंग में मुझको रंग दे।
    अंग-अंग में प्रीत के रंग भर दे।।

    मीरा नहीं हूॅं मैं,न मैं राधा हूॅं, मैं तुम्हारी दासी हूॅं।
    सांवरे-सलोने मैं तुम्हारी प्रेम की प्यासी हूॅं।।

    आओ नंदलाला मेरे मनमोहना।
    मेरी आराधना तुम सुन लो ना।।

    तुम्हें पुकारू हे गोविन्दा,हे गोपाला।
    सुन लो पुकार मेरी हे बांसुरी वाला।।

    तूने वादा किया था जब-जब पाप बढ़ेगा मैं आऊंगा।
    अत्याचारी, पापी,अंहकारी दुष्टों का सर्वनाश करुंगा।।

    हमारी रक्षा करने तुमआओ दाता।
    हे जगतगुरु, श्रीहरि हे मेरे विधाता।।

    मुझ मूढ़,अभागा पर उपकार करो।
    दुःख , पीड़ा,कष्ट, संकट मेरे दूर करो।।

    इस भयंकर प्रलयकारी संकट से हमें उबारो।
    हे सुदर्शन धारी रक्षा करो हमारी रक्षा करो।‌।

    हे पालनकर्ता हे पालन हार।
    हे दुःख हर्ता,हे मुरलीधर।।

    दिन-दिन ले रही है,जान हमारी।
    चुन-चुन के ले रही है, प्राण हमारी।।

    रोको-रोको बढ़ रही है, विपत्ति भारी।
    आओ-आओ हे नाथ,हे गिरधारी।।

    पापी महामारी का, सर्वनाश करो अंतर्यामी।
    अधर्मी,अनाचारी का विनाश करो मेरे स्वामी।।



    बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’
    जिला रायपुर छत्तीसगढ़