Tag: #सुकमोती चौहान ‘रूचि’

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुकमोती चौहान ‘रूचि’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • निर्भया न्याय दिवस पर कविता

    निर्भया न्याय दिवस पर कविता

    सन् दो हजार बीस,बीस मार्च रहा अनुपम।
    स्वर्णिम दिन है आज,शांत मन तन है शुद्धम।
    हुई न्याय की जीत,निर्भया तेरी जय हो।
    दुराचार का अंत,सजा देना अब तय हो।
    सात साल के बाद में,फाँसी में झूले सभी।
    अब हो नहीं समाज में, फिर ऐसी घटना कभी।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया ,महासमुन्द,छ.ग.

  • मिट्टी की घट पर कविता की महिमा बताती सुकमोती चौहान रुचि की छप्पय छंद में यह अनूठा काव्य

    मिट्टी की घट पर कविता

    मिट्टी घट की ओर ,चलो अब लौटे हम सब।
    प्लास्टिक का प्रतिबंध,मनुज स्वीकारोगे कब।
    मृदा प्रदूषण रोक,पीजिए घट का पानी।
    स्वस्थ रहेगा गात, स्वच्छता बने निशानी।
    घड़ा सुराही की शुद्धता, मान रहा विज्ञान भी।
    लाइलाज रोगों की दवा,मिट्टी यह वरदान भी।

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

  • धनतेरस पर कविता-सुकमोती चौहान रुची

    धनतेरस पर कविता

    सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
    धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
    जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
    लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
    खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
    रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”

  • सुकमोती चौहान के हाइकु

    सुकमोती चौहान के हाइकु

    सुकमोती चौहान के हाइकु

    हाइकु

    पितर पाख~
    पति की तस्वीर में
    फूलों की माला।

    पूस की रात~
    भुट्टे भून रही है
    अलाव में माँ।

    श्मशान घाट~
    कुत्ते के भौंकने से
    सहमा रामू।

    श्रृंगार पेटी~
    गौरैया नोंचे देख
    शीशा में छवि।

    गौरैया झुँड़
    चुग रहे हैं दाने~
    धूप सुगंध।

    पीपल पात
    खा रही बकरियाँ~
    वृक ताक में।

    गौ टीले पर~
    शेरनी के मुँह में
    बछड़ा ग्रीवा।

    मयूर नृत्य~
    मोबाइल देखते
    बच्चों की टोली।

    कश्ती में छेद~
    मृतकों को खोजते
    रेसक्यू टीम।

    हिना के छाप
    बच्चा के गाल पर-
    माँ फोन मग्न।

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि

  • धूल पर दोहे

    धूल पर दोहे

    पाहन नारी हो गई,पाकर पावन धूल
    प्रभु श्रीराम करे कृपा,काँटे लगते फूल

    महिमा न्यारी धूल की,केंवट करे गुहार
    प्रभु पग धोने दीजिए,तभी चलूँ उस पार

    मातृभूमि की धूल भी,होता मलय समान
    बड़भागी वह नर सखी,त्यागे भू पर प्रान

    आँगन में सब खेलते,धूल धूसरित ग्वाल
    मात यशोदा गोद ले,चुमती मोहन गाल

    कृष्ण पाद रज धो रहे,बहा नैन जलधार
    भक्त सुदामा है चकित,देख मित्र सत्कार

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद