शह-मात पर कविता-विनोद सिल्ला

शह-मात पर कविता जाने क्योंशह-मात खाते-खातेशह-मात देते-देतेकर लेते हैं लोगजीवन पूरामुझे लगासब के सबहोते हैं पैदाशह-मात के लिएनहीं हैकुछ भी अछूताशह-मात सेलगता हैशह-मात ही हैपरमो-धर्मशह-मात हैकण-कण में व्याप्तशह-मात ही हैअजर-अमर

रूढ़ीवाद पर कविता

रूढ़ीवाद पर कविता उन्होंने डाली जयमालाएक-दूसरे के गले मेंहो गए एक-दूसरे केसदा के लिएप्रगतिशील लोगों नेबजाई तालियांहो गए शामिलउनकी खुशी मेंरूढ़ीवादियों नेमुंह बिचकाएनाक चढ़ाईकरते रहे कानाफूसीकरते रहे निंदाअन्तर्जातीय प्रेम-विवाह कीदेते रहे दुहाईपरम्पराओं कीदेखते ही देखतेढह गया किलासड़ी-गलीव्यवस्था का

कदम-कदम पर कविता

कदम-कदम पर कविता यहां हैप्रतिस्पर्धाइंसानों मेंएक-दूसरे से।आगे निकलने कीचाहे किसी केसिर पर या गले पररखना पड़े पैर,कोई परहेज़-गुरेज नहीं ।किसी को कुचलने मेंनहीं चाहता कोईसबको साथ लेकरआगे बढ़ना।होती है टांग-खिंचाईरोका जाता हैै।आगे बढ़ने सेडाले जाते हैं अवरोध।लगाया जाता है,एड़ी-चोटी का जोर।एक-दूसरे के खिलाफकदम-कदम पर।।

रोटी पर कविता

रोटी पर कविता सांसरिक सत्य तोयह है किरोटी होती हैअनाज कीलेकिन भारत में रोटीनहीं होती अनाज कीयहाँ होती हैअगड़ों की रोटीपिछड़ों की रोटीअछूतों की रोटीफलां की रोटीफलां की रोटीऔर हांयहाँ परनहीं खाई जातीएक-दूसरे की रोटी -विनोद सिल्ला

जात-पात पर दोहे

जात-पात पर दोहे जात-पात के रोग से, ग्रस्त है सारा देश|भेद-भाव ने है दला, यहाँ पर वर्ग विशेष|| जात-पात के जहर से, करके बंटा-धार|मरघट-पनघट अलग हैं, करते नहीं विचार|| जात-पात के भेद में, नित के नए प्रपंच|जात मुताबिक संगठन, जात मुताबिक मंच|| जात-पात है भयावह, जात भयानक रोग|करें नहीं उपचार क्यों, झेल रहे हैं लोग|| … Read more