मुस्कान पर कविता

मुस्कान पर कविता मुझे बाजार मेंएक आदमी मिलाजिसके चेहरे परन था कोई गिलाजो लगतारमुस्करा रहा थाबङा ही खुशनजर आ रहा थामैंने उससे पूछा किकमाल है आजजिसको भी देखोमुंह लटकाए फिरता हैतनावग्रस्त-सा दिखता हैआपकी मुस्कान काक्या राज हैमुस्करा रहे होकुछ तो खास हैउन्होंने कहामुझपे भीमहंगाई की मार हैमुझपे भीगम सवार हैयहाँ दुखदाईभ्रष्टाचार हैऐसे मेंखुश रहना कैसामुस्कराता … Read more

शह-मात पर कविता-विनोद सिल्ला

शह-मात पर कविता जाने क्योंशह-मात खाते-खातेशह-मात देते-देतेकर लेते हैं लोगजीवन पूरामुझे लगासब के सबहोते हैं पैदाशह-मात के लिएनहीं हैकुछ भी अछूताशह-मात सेलगता हैशह-मात ही हैपरमो-धर्मशह-मात हैकण-कण में व्याप्तशह-मात ही हैअजर-अमर

रूढ़ीवाद पर कविता

रूढ़ीवाद पर कविता उन्होंने डाली जयमालाएक-दूसरे के गले मेंहो गए एक-दूसरे केसदा के लिएप्रगतिशील लोगों नेबजाई तालियांहो गए शामिलउनकी खुशी मेंरूढ़ीवादियों नेमुंह बिचकाएनाक चढ़ाईकरते रहे कानाफूसीकरते रहे निंदाअन्तर्जातीय प्रेम-विवाह कीदेते रहे दुहाईपरम्पराओं कीदेखते ही देखतेढह गया किलासड़ी-गलीव्यवस्था का

कदम-कदम पर कविता

कदम-कदम पर कविता यहां हैप्रतिस्पर्धाइंसानों मेंएक-दूसरे से।आगे निकलने कीचाहे किसी केसिर पर या गले पररखना पड़े पैर,कोई परहेज़-गुरेज नहीं ।किसी को कुचलने मेंनहीं चाहता कोईसबको साथ लेकरआगे बढ़ना।होती है टांग-खिंचाईरोका जाता हैै।आगे बढ़ने सेडाले जाते हैं अवरोध।लगाया जाता है,एड़ी-चोटी का जोर।एक-दूसरे के खिलाफकदम-कदम पर।।

रोटी पर कविता

रोटी पर कविता सांसरिक सत्य तोयह है किरोटी होती हैअनाज कीलेकिन भारत में रोटीनहीं होती अनाज कीयहाँ होती हैअगड़ों की रोटीपिछड़ों की रोटीअछूतों की रोटीफलां की रोटीफलां की रोटीऔर हांयहाँ परनहीं खाई जातीएक-दूसरे की रोटी -विनोद सिल्ला