नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

hasdev jangal

एकर सेती भैया हो , जम्मो मनखे मन,ला मिलजुल के,लालच ला दुरीहा के पर्यावरण बचाए बर कुछ करना
पड़ही। लेकिन ये हा केवल मुंह अउ किताब भर मा तिरिया जाथे।