छिपे चंद्रिका से हम बैठे
छिपे चंद्रिका से हम बैठे छिपे चंद्रिका से हम बैठेकक्षों में पर्दे लटके।धूप सुहाती नही आज क्योंतारों की गिनती खटके। प्राकृत की छवि कानन भूलेदेख रहे तरु चित्रों कोवन्य वनज वन जीव उजाड़ेभूल गये खग मित्रों को विहग नृत्य की करे कल्पनाखग मृग व्याल मनुज गटके।छिपे चंद्रिका……….।। निज संस्कृति के झूले मेलेकिले महल मरु धोरे … Read more