सुबह पर कविता

सुबह पर कविता सुबह-सुबह सूरज ने मुझेआकर हिचकोलाऔर पुचकारते हुए बोलाउट्ठो प्यारेसुबह हो गई हैआलस त्यागोमुँह धो लो मैंने करवट बदलते हुएअंगड़ाई लेते हुएलरजते स्वर में बोलासूरज दादाबड़ी देर में सोया थाथोड़ी देर और सोने दो नमुझे आजअपने उजास के बदलेथोड़ा-सा अंधकार दो न सूरज दादा नेहँसते हुए बोलाअरे पगले !जो है नहीं मेरे पासवह … Read more

आख़िर गुस्तागी पर कविता

आख़िर गुस्तागी पर कविता अहम से भरा मूर्तिमानराजन ऊँचे आसन परविराजमान थाचाटुकार मंत्रीगणउनके नीचे इर्द गिर्द बैठे हुए थे दरबार में मेरी पेशी थीमुझे ही मेरी गुस्ताख़ी पता नहीं थामुझ पर कुछ आरोप भी नहीं थेमन ही मन सोचा–आख़िर मेरी पेशगी क्यों..?मन से ही उत्तर मिलाहाँ ! यह पेशगी राजा के ‘अहम’ के वास्ते होगा … Read more

आविष्कारों पर कविता

आविष्कारों पर कविता ये जो रेफ्रीजरेटरवैज्ञानिकों ने बनाया हैकमाल हैसब्ज़ी भाजी को सड़ने नहीं देताऔर खाने पीने की चीजों कोरखता है बड़ा ठंडा-ठंडा कुल-कुल ये एयर कंडीशनर भीबड़े कमाल के हैंबड़ी ज़ल्दी हीछू मंतर कर देती हैहमारे शरीर की सारी तपन इतने आविष्कारों के बावजूदइन दिनोंएक भी मशीननहीं है हमारे पासजो लोगों कीमनसिकता को सड़ने … Read more

मुझे पता है कविता

मुझे पता है कविता खौफ़ में क्या बोलेगा मुझे पता है। रात को दिन बोलेगा मुझे पता है।1। वक़्त आने पर  मेरे पक्ष में कोई नहीं बोलेगा मुझे पता है।2। साजिशें हैं उनकी गवाह भी उनके जज क्या बोलेगा मुझे पता है।3। ज़ुल्म के ख़िलाफ़ इस जंग में आखिर ईमान बोलेगा मुझे पता है।4। मेरी … Read more

गंजापन पर कविता

गंजापन पर कविता मेरा मित्र गंजाथा बहुत हिष्ट पुष्ट और चंगातपती धूप में अकेले खड़ा थाउसका दिमाग़ न जानेकिस आइडिया में पड़ा था?मेरा बदन तो धूप में जल रहा थापर गंजा मित्र धूप में खड़ा होकरअपने सर में सरसो तेल मल रहा था?मैंने कहा-मित्र टकलेहो गया है क्या तू पगलेतेज धूप में खड़े होकरसर क्यों … Read more