ग़ज़ल -विनोद सिल्ला
ग़ज़ल -विनोद सिल्ला कैसी-कैसी हसरत पाले बैठे हैं।गिद्ध नजर जो हम पर डाले बैठे हैं।। इधर कमाने वाले खप-खप मरते हैं,पैसे वाले देखो ठाले बैठे हैं।। खून-पसीना खूब बहाते देखे जो,उनसे देखो छीन निवाले बैठे हैं।। नफरत करने वाले दोनों और रहे,कुछ मस्जिद तो बाकि शिवाले बैठे हैं।। खेत कमाते मिट्टी में मिट्टी होकर,सेठ बही … Read more