सतत् क्रिया है खोज- मनोरमा चन्द्रा
सबकी अपनी दृष्टि है,
एक अलग ही खोज।
जो मन को अच्छा लगे,
वही करत जन रोज।।
जीव खोजता ईश को,
लेकिन है अंजान।
ईश्वर हृदय विराजते,
सार बात यह मान।।
चले निरंतर खोज जब,
आते हैं परिणाम।
त्याग लगन प्रिय साधना,
होता जग में नाम।।
मेरी आँखें खोजती,
नटवर नागर श्याम।
कृपा करो इस दीन पर,
जपूँ भोर अरु शाम।।
सतत् क्रिया है खोज यह ,
जब तक है संसार।
कहे रमा ये सर्वदा,
धरलो ध्येय अपार।।
*~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”*
*रायपुर (छ.ग.)*
