आदमी और कविता – हरदीप सबरवाल द्वारा रचित आज के कविताओं के विषय पर यथार्थ और करारा व्यंग्य किया गया है।
आदमी और कविता
सिर्फ आदमी ही नहीं बंटे हुए,
जाति, धर्म, संप्रदाय या वर्ण में,
इन दिनों
जन्म लेती कविता भी,
ऐसे कई साँचों में ,
ढल कर निकलती है,
यूँ कहने भर को
कविता का उद्देश्य था
आदमी को
सांचों से मुक्त करना,
पर आदमी ने
कविता को ही
अपने जैसे बना दिया…..
© हरदीप सबरवाल