आज भी बिखरे पड़े हैं – गंगाधर मनबोध गांगुली
गंगाधर मनबोध गांगुली ” सुलेख “
समाज सुधारक ” युवा कवि “
कल तक बिखरे पड़े थे ,
आज भी बिखरे पड़े हैं ।
अपने आप को देखो ,
हम कहाँ पर खड़े हैं ।।01।।
बट गये हैं लोग ,
जाति और धर्म पर ।
गर्व करते रहो ,
मूर्खतापूर्ण कर्म पर ।।02।।
महापुरुषों के महान कार्य,
लोगों को नजर नहीं आ रहे हैं ।
जो जिस जाति में पैदा हुए ,
सिर्फ वही दिवस मना रहे हैं ।।03।।
हर कोई कहता है,
यह हमारा नहीं ,उनका कार्यक्रम है ।
महापुरुषों की महानता ,
उनकों दिखता बहुत कम है ।।04।।
आजादी सिर्फ नाम के रह गए,
गुलामी के कगार पे खड़े हैं ।
कल तक बिखरे पड़े थे,
आज भी बिखरे पड़े हैं ।।05।।
जातिवाद बढ़ रहा है ,
महापुरुषों को भी बाट रहे हैं ।
किसे यहाँ अपना कहें,
जो अपनों का गला काट रहे हैं।।06।।
हमारी स्थिति वैसी कि वैसी है ,
आज भी रास्ते पे पड़े हैं ।
कल तक बिखरे पड़े थे,
आज भी बिखरे पड़े हैं ।।07।।
गंगाधर मनबोध गांगुली