Author: कविता बहार

  • भाषाओं के अतिक्रमण

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    भाषाओं के अतिक्रमण

    kavita

    सर्वनाम से पूछ रहे हैं, संज्ञा नाम कहाँ जाएँ…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    स्वर व्यंजन के मेल सुहाने, संयुक्ताक्षर देते हैं।
    वर्ण-वर्ण की संधि देखिये, नव हस्ताक्षर देते हैं।
    हिंदी की बिंदी को देखो, अनुस्वार है छोटा सा।
    अर्ध चंद्र अनुनासिक मानों, काजर आँजे मोटा सा।

    साधारण से मिश्र वाक्य अब, पूर्ण विराम कहाँ जाएँ…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    लुप्त हो रहे नामों को अब, कविता ही अपनाती है।
    काव्य जगत में उपनामों को, कुण्डलियाँ महकाती है।
    छंदों के बन्धों से सजती, शब्द प्रभाव बढ़ाती है।
    अलंकार श्रृंगार करे तो, नव उपमा गढ़ जाती है ।

    हिंदी में जो साधक बनता, वह विश्राम कहां पाये…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…
    सिद्ध पुरोधा के नामों की, हिंदी ही महतारी है।
    कला भाव सह लोचकता है, हर भाषा में भारी है।
    “मृदुल” करे करबद्ध निवेदन, अब हिंदी की बारी है।
    नाम कमाओ इस भाषा में, हिंदी ही सरकारी है।

    नाम अमर कर लें जग में हम, नेह प्रणाम सदा पाएँ….
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    ==डॉ ओमकार साहू मृदुल 07/10/20==

  • भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी की महत्ता (चौपाई)

    भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी की महत्ता (चौपाई)

    हिन्दी की महत्ता : हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी।

    हिन्दी की महत्ता (चौपाई)

    hindi divas


    भारत मात भाल पर बिन्दी।
    भाषा भूषण रानी हिन्दी।।
    हिन्द देश हर हिन्दुस्तानी।
    चाहत बोले हिन्द जुबानी।।१

    जन्म देव वाणी से इसका।
    हुआ हस्तिनापुर मेंं जिसका।।
    सुगम पंथ प्रसरी प्रभुताई।
    हिन्दी जन जन के मन भाई।।२

    देवनागरी लिखित सुहावन।
    लिखते छंद गीत मनभावन।।
    सुन्दर वर्ण सु व्यंजन सारे।
    करते बालक याद हमारे।।३

    रचे ग्रंथ बहु भाँति सुहाई।
    गद्य पद्य दोउ रीत कहाई।।
    कथा कहानी बात जुबानी।
    उपन्यास बहु रूप रुहानी।।४

    एक राष्ट्र की एकल भाषा।
    मिटे विवाद यही अभिलाषा।।
    प्रादेशिक भाषा भी जाने।
    देश हिते हिन्दी पहचाने।।५
    . _______
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा

  • हिन्दी वंदना -डी कुमार अजस्त्र

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    (हिंदी दिवस पर विशेष -हिंदी-वन्दना)

    Kavita-bahar-Hindi-doha-sangrah

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    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    भारत का है गौरव तू ,
    चमकी बन भानु प्रभा ।
    जन-जन में है सौरव तू ,
    महकी हर दिशा दिशा ।
    भारत-सुत में तू ही ,
    नया स्वाभिमान जगाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    अ से अज्ञानी जन को ,
    तू ज्ञ से ज्ञान कराए ।
    भ से भारत का जग में ,
    तू ध से ध्वज फहराए ।
    वर्णमाला ये तेरी ,
    नव-नव गीत बनाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    संस्कृति में तूने लिया जन्म,
    जन-जन ने तुझे अपनाया ।
    मैथिली बने संरक्षक तेरे ,
    भारतेंदु ने जीना सिखाया ।
    देवी ,सुभद्रा,प्रेम ,निराला ,
    तू कब से बनाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    (महादेवी वर्मा ,सुभद्रा कु.चौहान ,प्रेमचन्द ,सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला )

    ‘खड़ी बोली’ तू बन कर पनपी ,
    अब व्यापकता ही पाए ।
    तेरे इस इतिहास को शुक्ल,
    सब जन-जन तक पहुँचाए ।
    सरलता ही तेरी हमें,
    अति सफल बनाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    सखी नागरी संग में लेकर,
    लिपि तूने अपनी बनाई ।
    ध्वनि-रूप प्रमाणित करके,
    वैज्ञानिकता सिद्ध कराई ।
    जो जैसा बोला ,वैसा ही,
    तू लिखना सिखाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    अंग्रेजी भाषी मन को भी,
    अब भाने लगी है तू भी।
    भारत-सीमा भी पार कर,
    जग समाने लगी है तू भी ।
    गुरु टैगोर का बन आशीष तू ,
    नई श्रद्धा जगाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको ,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    लिखूँ ,बोलूं तुझको ही गाऊँ ,
    सीखूं तुझसे ही,
    मैं जीना सिखाऊँ ।
    भले कुछ भी मैं पढूं ,पढ़ाऊँ,
    तेरा ही बस वन्दन चाहूँ।
    तू ही तो *डी कुमार* को,
    अब *अजस्र* बनाती है ।
    नए बोल सिखाती है ,
    मुझे ज्ञान कराती है ।
    ए माँ भाषा तू ही मुझको,
    सम्मान दिलाती है ।
    नए बोल सिखाती है ……..

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)*

  • स्वर्ग से सुन्दर मेरा हिंदी हिंदुस्तान

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    स्वर्ग से सुन्दर मेरा हिंदी हिंदुस्तान

    tiranga
    भारत देश तिरंगा झंडा

    स्वर्ग से सुन्दर मेरा हिंदी हिंदुस्तान ,
    इसमे है सभी धर्मो की जान ,
    संघर्षो के बाद मिली आज़ादी ,
    आज़ादी के दीवाने जब हुए थे कुर्बान |
    स्वर्ग …

    हरे भरे जंगलो में रहते लोग ,
    कल कल करती नदिया बहती पुरे हिंदुस्तान |
    बर्फ से ढकी ऊँची ऊँची चोटिया ,
    हिमालय सीना तान खड़ा बना देश की शान |
    स्वर्ग ..

    गंगा जमुनी तहजीब यहा ,
    मिलकर रहते सभी तभी तो है भारत महान |
    फिल्मे देखकर लोग जीते यहा ,
    बॉलीवुड की फिल्मो ने भी दिलाया हमको सम्मान |
    स्वर्ग …
    हजारो भाषा बोलिया बोलते लोग यहा ,
    फिर भी हिंदी में ही है हिंदी हिदुस्तान |
    कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम सब एक समान ,
    देश की समरसता बनी देश की आन बान शान |
    स्वर्ग ..

    मजहबो के सौदगर बेचते नफरते ,
    प्यार फ़ैलाने वाले से ये होते परेशान |
    सरहदों पर लड़ते देश के सिपाही ,
    दुश्मनों से जीतते ही रहेंगे इनको है शिव का वरदान |
    स्वर्ग ….

    द्वारा : कमल कुमार “आजाद”
    बिलासपुर छत्तीसगढ़

    पता : फ्लैट नो ३०४
    सिल्वर ओकग्रीन गार्डन कॉलोनी
    बिलासपुर ४९५००१
    मोबाइल ९१३१२३१९३५
    Email : [email protected]

  • हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘ की कवितायेँ

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘ की कवितायेँ हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    tiranga

    भारत महान हो

    पूजा हो मन्दिरों में,
    मस्जिद में अजान हो|
    सारे जहाँ से अच्छा,
    भारत महान हो ||


    फिर कोई तैमूर या
    बाबर न आ सके,
    कोई लुटेरा लूट कर
    हमको न जा सके |
    मजहब के नाम पर
    फिर यह मुल्क न बंटे –
    कोई न कौम प्यार की
    मोहताज रह सके |
    अरुणाभ छितिज से पुनः
    नूतन बिहान हो ||
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||1।।


    सांझ के सुअंक पर
    हो भोर की किरण नवल,
    नेह से सने – सने हों
    चारु-दृग -चषक -कंवल |
    झूम- झूम वात -चपल
    उर्वी श्रृंगार करे –
    धूप -छॉव लीन हो
    नित सृजन – विमल |
    उत्कर्ष के उद्धोष में
    संयम निदान हो |
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||2!।


    चांदनी पुलक भरे
    प्राण में अमरता,
    द्वार – द्वार बह चले
    ले मलय मधुरता |
    सूर्य के प्रताप से
    शस्य श्यामला ये सृष्टि –
    नित नये संधान हो।
    हर हृदय प्रचुरता
    चिर बसन्त के अधर
    पर देश गान हो ||
    सारे जहाँ से अच्छा
    भारत महान हो ||3!


    रचनाकार :-हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश ‘

    कोरोना सम्बन्धी दोहे

    जीवन की यह त्रासदी,
    नहीं सकेंगे भूल,
    एक भाव दिखने लगा,
    माटी,सोना,फूल ।1।

    नहीं कोरोना थम रहा ,
    असफल सभी प्रयास ,
    राजनीति नेता करें,
    जनता हुई उदास ।2।

    राम-भरोसे चल रही,
    जीवन की हर सॉस,
    प्राण वायु बिन मर रहे,
    पड़ी गले में फॉस 3।

    अगर बहुत अनिवार्य तो,
    घर से बाहर जाय ,
    समझ-बूझ मुख-आवरण,
    तुरतहिं लेय लगाय।4।

    संक्रमण के दौर में,
    बचें बचायें आप,
    मास्क लगा दूरी बना,
    ना माई ना बाप ।5।

    कोरोना के नाश-हित ,
    इतना है अनुरोध,
    ए सी ,कूलर भूल कर,
    नहीं चलायें लोग ।6।

    जी भर काढ़ा पीजिये,
    सुबह-शाम लें भाप,
    कोरोना भग जाएगा,
    देखो अपने आप ।7।

    पोषण समुचित लीजिए,
    चाहें, रहें निरोग ,
    नहीं संक्रमण छू सके,
    करें अगर नित योग ।8।


    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ ‘हरीश’,

    संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है

    मातृभूमि प्रिय भरत भूमि पर ,
    मॉं की भाषा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती,
    सबकी भाषा हिन्दी है।टेक।

    यदि करें सभी सम्मान,
    देश के संविधान का ,
    पंथ प्रशस्त स्वयम् हो जाये,
    हिन्दी के उत्थान का ।
    कोटि-कोटि कंठों में मचलती,
    मन की आशा हिन्दी है ।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।1।

    शासन और प्रशासन सुन लो ,
    इतना अनुरोध हमारा है ,
    चुल्लू भर पानी ले डूबो,
    हिन्दी ने तुम्हें संवारा है ।
    थोथे नारे , संकल्पों में,
    बनी तमाशा हिन्दी है ।
    नित नूतन परिवेश सजाती,
    सबकी भाषा हिन्दी है।2।

    हमने ही तो प्रगतिशील बन,
    हिन्दी को ठुकराया है ,
    फूट डाल कर राज कराती,
    अंग्रेजी अपनाया है।
    चीर-हरण की आशंका में,
    उत्कट अभिलाषा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।3।

    आओ स्नेह लुटाये मिलकर,
    हरें सभी की पीरा,
    इसके हर अक्षर में ढूँढें,
    तुलसी ,सूर,कबीरा ।
    भारतेन्दु व महावीर की,
    संकल्पित जिज्ञासा हिन्दी है।
    नित नूतन परिवेश सजाती ,
    सबकी भाषा हिन्दी है।4।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश,
    ई — 85
    मलिकमऊ नई कालोनी,
    रायबरेली 229010 (उप्र)
    9415955693,9125908549