Author: कविता बहार

  • श्रीगणेश पर हिंदी कविता

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    kavita

    श्रीगणेश पर हिंदी कविता

    गजानन आराधना

    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    धूप दीप और फल फूलों से ,
    तुझ को भोग लगाऊँ ।
    लगा तेरे अगर और चंदन ,
    मैं श्रृंगार सजाऊँ ।
    तुमसे करूं एक ही बिनती ,
    दर्शन अब दे जाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता ,
    ज्ञान-बुद्धि के सागर ।
    जीवन मेरा कोरा कागज ,
    रीती पड़ी है गागर ।
    बूंद-बूंद से प्यास बुझे न ,
    बन के मेघ बरसाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    यह दुनिया मद में है आंधी ,
    मैं मंदबुद्धि कहलाऊँ ।
    ज्ञान-सरिता मुझ तक मोडों ,
    मैं ‘अजस्र’ बन जाऊँ ।
    रख के हाथ शीश पर मेरे ,
    कृपा-आशीष बरसाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    शुभ और लाभ , रिद्धि और सिद्धि ,
    विद्या-लक्ष्मी साथ ।
    घर आंगन में मेरे पधारो ,
    सबको लेकर आप ।
    मूषक-सवार मेरे मन-मंदिर ,
    आकर के बस जाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र (दुर्गेश मेघवाल)*
    पता:- पुराना माटुदा रोड इंद्रा कॉलोनी बून्दी (राजस्थान)

  • गुलाब की अभिलाषा – अकिल खान

    गुलाब की अभिलाषा – अकिल खान

    गुलाब

    मैं गुलाब हूंँ फेंकना न मुझे यहांँ वहांँ,
    मेरी खुशबू से सुगंधित है सारा जहांँ।
    देख कर मुझे खुश होता है उदास मन,
    मेरी काया से सुशोभित है धरा – गगन।
    दुःखी मन हो प्रसन्न और दूर करूँ हताशा,
    सम्मान की प्रत्याशा,गुलाब की अभिलाषा।

    मेरी बाहों में कांँटे हैं जैसे जीवन में संघर्ष,
    मधुकर के गुणगान से मन होता अति हर्ष।
    मेरा सौभाग्य ,लोग करते हैं मुझसे नित्य पूजा,
    लोगों के मन मै ही भाऊँ और कोई न रहे दूजा।
    खिलूँ में हर समय दिन-रात हो या चौमासा,
    सम्मान की प्रत्याशा,गुलाब की अभिलाषा।

    जन्मदिन हो या विवाह करें सभी उपयोग,
    मेरे साए में प्रेम का इज़हार करते हैं लोग।
    कहता है गुलाब मेरी ख्वाहिश को पुरा कर देना,
    कब्र में और राहें वीरों को गुलाब से भर देना।
    हे मानव इस संसार मे मेरी छोटी सी आशा,
    सम्मान की प्रत्याशा,गुलाब की अभिलाषा।

    गुलाब तेरी खुशबू से महक उठता मेरा तन-मन,
    कोई घुमे यत्र-तत्र किसी को याद आए वृंदावन।
    कोई रखे पुस्तक में कोई करे बालों में श्रृंगार,
    गुलाब कहे मैं प्रेम हूंँ और प्रेम ही मेरी पुकार।
    मुझे देकर उपहार लोग करें प्रेम-प्रत्याशा,
    सम्मान की प्रत्याशा,गुलाब की अभिलाषा।

    दुखियों को मनाऊंँ और मैं रोते हुए को हंसाऊँ,
    विरह काल में प्रेमी के लिए प्रेम की गीत गाऊंँ।
    मैं खुदगर्ज नहीं कैसे अपनों को भूल जाऊंँ,
    उदास गमगीन चेहरे पर मै मुस्कान ले आऊंँ।
    देखकर मुझे भाग जाती है प्रबल निराशा,
    सम्मान की प्रत्याशा,गुलाब की अभिलाषा।

    मुझे बेचकर असहाय लोग करते हैं गुजारा,
    मेरी सजावट से समारोह में होती उजियारा।
    कर उपयोग देते हो यत्र-तत्र मुझे फेंक,
    मेरा हृदय दुःखता है यह अपमान देख।
    जिंदगी संवार दो यही है गुलाब की पिपासा
    सम्मान की प्रत्याशा ,गुलाब की अभिलाषा।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.

  • शिक्षक का ज्ञान – अकिल खान

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    “शिक्षक दिवस मनाने का यही उद्देश्य है कि कृतज्ञ राष्ट्र अपने शिक्षक राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के प्रति अपनी असीम श्रद्धा अर्पित कर सके और इसी के साथ अपने समर्थ शिक्षक कुल के प्रति समाज अपना स्नेहिल सम्मान और छात्र कुल अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सके।

    शिक्षक का ज्ञान

    kavita

    अशिक्षा रूपी अंधकार को करने दूर,
    फूंँक दिए चहुँ दिशाओं में शिक्षा का सूर।
    ज्ञान की दीपक से रोशन हुआ देखो सारा जहांँ,
    अज्ञानता ने सोचा अब मैं जाऊंँ तो जाऊंँ कहांँ।
    शिक्षा के प्रभाव से इंसान बना है महान।
    है पवित्र-अनमोल दान,शिक्षक का ज्ञान।

    शिक्षा से समाजिक कुरीतियों का करो दमन,
    श्रेष्ठ शिक्षा से नहीं होता अधिकारों का हनन।
    अब मिले शिक्षा सबको हर्षित है धरा-गगन,
    शिक्षा का महिमा है अपार करो गहन-मनन।
    मानव-उद्धार के लिए करो शिक्षा-दान,
    है पवित्र-अनमोल दान,शिक्षक का ज्ञान।

    5 सितम्बर को मनाओ शिक्षक दिवस – त्यौहार,
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का है ये उपकार।
    शिक्षक है मानव समाज-राष्ट्र का निर्माता,
    गुरू शिष्य को राष्ट्र रक्षा के लिए पुकारता।
    मै नित करूं शिक्षक का सहृदय गुणगान,
    है पवित्र-अनमोल दान, शिक्षक का ज्ञान।

    विद्यार्थी में न कोई गरीब है न कोई अमीर,
    सभी को दें समान शिक्षा शिक्षक का ज़मीर।
    मजबूर-लाचारों को देते हैं शिक्षक-शिक्षा,
    शिष्य करें उचित- अनुचित पर समीक्षा।
    एक आदर्श विद्यार्थी है शिक्षक की शान,
    है पवित्र-अनमोल दान,शिक्षक का ज्ञान।

    जीवन रूपी नाव का शिक्षक है खिवैया,
    सच्चा ज्ञान से पार कराते हमारी नैय्या।
    मुश्किल घड़ी में कर स्मरण गुरू का उपदेश,
    मिलती है शांति और समाप्त होते द्वेष-क्लेश।
    मैं लेखनी से नित करूं गुरू का बखान,
    है पवित्र-अनमोल दान,शिक्षक का ज्ञान।

    अशिक्षित मानव स्वयं का करता विनाश,
    ज्ञान की अज्ञानता से नित रहता हताश।
    कहता है अकिल शिक्षा का अलख जगाओ,
    राष्ट्र – रक्षा के लिए अशिक्षा को दूर भगाओ।
    शिक्षा ने लाया आविष्कारों का तूफान,
    है पवित्र-अनमोल दान,शिक्षक का ज्ञान।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.

  • मनुष्य पर कविता

    मनुष्य पर कविता

    पिता

    मनुष्य

    केवल उसे पुकारने में
    क्या वह
    मनुष्य बनता है?
    समाज से, परिवार से
    अलग रहकर
    अधर्म व
    अनीती
    क्रूर व्यवहार करते
    एक तरफ़
    पागल बन
    घुमते-फिरते
    मनुष्य को
    मनुष्य कैसे कहें

    असल में
    मनुष्य बनता है
    या उसे पुकारने का
    योग्यता तब मिलता है
    जब उसे
    मनुष्यता का अहसास हों
    मानवीय संवेदना
    उठें
    अंदर से
    दूसरों के प्रति

    नंदना अय्यर

  • नारियल पर कविता

    नारियल एक बहुवर्षी एवं एकबीजपत्री पौधा है। इसका तना लम्बा तथा शाखा रहित होता है। मुख्य तने के ऊपरी सिरे पर लम्बी पत्तियों का मुकुट होता है। ये वृक्ष समुद्र के किनारे या नमकीन जगह पर पाये जाते हैं। इसके फल हिन्दु | हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता है। बांग्ला में इसे नारिकेल कहते हैं।

    नारियल पर कविता

    नारियल के वृक्ष भारत में प्रमुख रूप से केरल,पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में खूब उगते हैं। महाराष्ट्र में मुंबई तथा तटीय क्षेत्रों व गोआ में भी इसकी उपज होती है। नारियल एक बेहद उपयोगी फल है। नारियल देर से पचने वाला, मूत्राशय शोधक, ग्राही, पुष्टिकारक, बलवर्धक, रक्तविकार नाशक, दाहशामक तथा वात-पित्त नाशक है।

    नारियल पर कविता


    सागर तट पर खड़े हुए हैं
    नारिकेल के लम्बे पेड़,
    ऊँचे उठ ये नभ छूते हैं
    कैसे कोई सकता छेड़।


    एक तना ऊपर तक जाता
    नहीं शाख का नाम निशान,
    सिर पर लम्बी सघन पत्तियाँ
    छतरी जैसे रखता तान ।


    इन्हीं पत्तियों के झुरमुट से
    झाँक रहे हैं फल के झुण्ड,
    हरे हरे इन बड़े फलों में
    भरा हुआ है जल का कुण्ड।


    कच्चे नारिकेल का पानी
    पौष्टिकता से होता युक्त,
    शुद्ध पेय यह कर देता है
    सब थकान से हमको मुक्त।


    तीन पर्त का यह फल पककर
    हो जाता है बहुत कठोर,
    और दूधिया जल से गूदा
    बन जाता अन्दर की ओर।


    सूखे नारिकेल के फल का
    भोजन में होता उपयोग,
    कच्ची गिरी अगर खा लें तो
    भागें सभी उदर के रोग ।


    सभी पदार्थ काम के इसके
    पर उपयोगी तेल विशेष,
    यह खाने का स्वाद बढ़ाता
    और स्वस्थ रखता है केश।


    भारत की सब संस्कृतियों में
    नारिकेल का रहा महत्व,
    पाए जाते इस तरुवर में
    सचमुच कल्पवृक्ष के तत्व।
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    लेखक :सुरेश चन्द्र “सर्वहारा”